विचार: ट्रंप फर्स्ट नीति पर चलते अमेरिकी राष्ट्रपति
पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत ने आपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ साहसिक सैन्य कार्रवाई कर वहां स्थित नौ आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया और जब पाकिस्तानी सेना ने पलटवार करने की कोशिश में भारत पर ड्रोन और मिसाइल दागीं तो हमारी सेना ने उसके कई एयरबेस तबाह कर दिए।
ट्रंप फर्स्ट नीति पर चलते अमेरिकी राष्ट्रपति (फाइल फोटो)
संजय गुप्त। पाकिस्तान की ओर से पहलगाम में कराए गए बर्बर आतंकी हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जैसे रवैए का परिचय दे रहे हैं, वह निराशाजनक भी है और चिंताजनक भी। इस रवैए से भारत-अमेरिकी संबंधों को धक्का लग सकता है।
अमेरिका सहित सभी प्रमुख देश यह जानते हैं कि पाकिस्तान में आतंकी गतिविधियों को पोषित किया जाता है और वहां आतंकी सरगना संरक्षित होते हैं। अलकायदा सरगना ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में छावनी के निकट ही मिला था। यह भी जगजाहिर है कि जैश, लश्कर जैसे भारत के लिए खतरा बने आतंकी संगठनों को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ पालती है। इन संगठनों के साथ कई आतंकी सरगना संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका की ओर से प्रतिबंधित भी किए जा चुके हैं।
पाकिस्तानी सेना आतंकी संगठनों को हर तरह का समर्थन देती है और उसके इशारे पर ही वे भारत में हमले करते हैं। पहलगाम का आतंकी हमला इसका प्रमाण है। अमेरिका अपने को विश्व का चौकीदार समझता है और आतंकवाद से लड़ने का दम भी भरता है, परंतु वह पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों और भारत में होने वाले हमलों की अनदेखी भी करता है। उसने 26/11 हमले की कुल मिलाकर अनदेखी ही की थी।
पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत ने आपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के खिलाफ साहसिक सैन्य कार्रवाई कर वहां स्थित नौ आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया और जब पाकिस्तानी सेना ने पलटवार करने की कोशिश में भारत पर ड्रोन और मिसाइल दागीं तो हमारी सेना ने उसके कई एयरबेस तबाह कर दिए। भारत की यह नीति पहले से है कि यदि पाकिस्तान आतंकी हमले कराएगा तो भारत उनका प्रतिकार करेगा। इसके पहले भारत पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक कर चुका है।
आपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने यह भी साफ किया कि अब हर आतंकी हमले को युद्ध के रूप में लिया जाएगा। इस पर अपनी बात रखने के लिए भारत ने अमेरिका सहित कई देशों में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भी भेजे, परंतु पाकिस्तान पोषित आतंकवाद पर अमेरिका की असामान्य और ढुलमुल सोच के कारण कई पश्चिमी देश खुलकर यह नहीं कह पा रहे हैं कि भारत को आतंकी हमलों का जवाब देने का अधिकार है।
यदि ट्रंप के नेतृत्व वाले अमेरिका की आतंकवाद पर दोहरी नीति की तह में जाएं तो यही मिलेगा कि वह पश्चिम एशिया में अपना आधिपत्य जमाने के लिए एक बार फिर पाकिस्तान का इस्तेमाल करना चाहता है। एक समय रोनाल्ड रीगन ने सैन्य शासक जनरल जिया उल हक को गले लगाया था, फिर जार्ज बुश ने परवेज मुशर्रफ को। अब ट्रंप ने आसिम मुनीर को गले लगा लिया, जबकि वह अभी वहां के शासनाध्यक्ष भी नहीं हैं। पिछले दिनों ट्रंप ने मुनीर को अमेरिका बुलाकर उनसे मुलाकात की और पाकिस्तान को अपना प्रिय देश बता दिया। उन्होंने मुनीर की तारीफ भी की। ऐसा किया जाना खुद अमेरिका के लिए तो अपमानजनक है ही, भारत के लिए निश्चित तौर पर चिंताजनक है।
अमेरिका फर्स्ट नीति का नारा देकर चुनाव जीते और इसी नीति पर चलने का दावा करने वाले डोनाल्ड ट्रंप वस्तुतः ट्रंप फर्स्ट नीति पर चल रहे हैं और ऐसा करते हुए गुमराह करने वाली गलतबयानी भी कर रहे हैं। वह भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम का श्रेय लेने से बाज नहीं आ रहे हैं। अभी हाल में उन्होंने माना कि संघर्षविराम में उनकी कोई खास भूमिका नहीं थी। इसका अर्थ है कि आपरेशन सिंदूर के समय पाकिस्तान ने सचमुच भारत से सैन्य कार्रवाई रोकने की गुहार लगाई थी।
चूंकि हाल में कनाडा गए प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप से फोन पर बात करते हुए संघर्षविराम में अमेरिका की भूमिका सिरे से साफ तौर पर खारिज की, इसलिए मुनीर यह साबित करने में जुटे कि संघर्षविराम ट्रंप ने ही कराया और इसके लिए तो उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए। उन्होंने इसका प्रस्ताव भी आगे बढ़ा दिया। इससे ट्रंप का इगो संतुष्ट हुआ और उन्होंने मुनीर को भोज देकर उपकृत किया। इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि कुछ समय पहले ट्रंप परिवार की क्रिप्टो कंपनी और पाकिस्तान की क्रिप्टो काउंसिल में रहस्यमय तरीके से समझौता हुआ है। इसका मतलब है कि ट्रंप और मुनीर अपने-अपने देश के हित भूलकर अपने निजी हितों को प्राथमिकता देने और क्रिप्टो कारोबार से पैसे कमाने का प्रबंध करने में लगे हुए हैं।
ट्रंप की ओर से आसिम मुनीर को उपकृत करने के पीछे एक मकसद परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहे ईरान पर नियंत्रण पाना भी है, जो अमेरिका की चेतावनी पर ध्यान नहीं दे रहा था। ईरान के तानाशाह अयातुल्ला खामेनेई ने अमेरिका के साथ इजरायल और यूरोपीय देशों की भी नींद उड़ा रखी है। खामेनेई परमाणु हथियार हासिल करने की जिद छोड़ने को तैयार नहीं।
ईरान हमास, हिजबुल्ला जैसे उन आतंकी संगठनों की खुलकर मदद करता है, जो इजरायल को निशाना बनाते हैं। साफ है कि ट्रंप ने अपने करीबी इजरायल को आगे कर उससे ईरान पर हमला कराया। ये हमले शायद तब तक रुकने वाले नहीं, जब तक परमाणु संवर्धन पर ईरान कोई समझौता न कर ले अथवा खामेनेई का तख्तापलट न हो जाए। ऐसे में आसार यही हैं कि इजरायल-ईरान युद्ध लंबा चल सकता है और तब अमेरिका को ईरान के पड़ोसी पाकिस्तान की जरूरत पड़ सकती है।
ट्रंप अपने स्वार्थों के आगे भारत के हित को नजरअंदाज कर रहे हैं। अमेरिका पहले भी ऐसा कर चुका है। वह अतीत में भी अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेनाओं को निकालने और फिर वहां काबिज हुए तालिबान को सत्ता से बाहर करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल चुका है। ट्रंप जो कुछ कर रहे हैं, उससे भारत को सतर्क रहना चाहिए। भारत-अमेरिका रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। बीते कुछ वर्षों में वे अवश्य प्रगाढ़ हुए, पर ट्रंप के रवैए से भारत को चेतने की आवश्यकता तो है ही, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के समक्ष अपना पक्ष रखने और उस पर अडिग रहने की भी जरूरत है। इसी के साथ उसे चीन से संबंध बढ़ाने की भी संभावना टटोलनी चाहिए, लेकिन सावधानी के साथ, क्योंकि वह भी पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है और आपरेशन सिंदूर के समय उसके साथ ही खड़ा था।
[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]
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