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    ग्रामीण पुनर्जागरण के शिल्पकार थे नानाजी देशमुख, जेपी के अभियान में भी रहे सक्रिय

    By Sandeep BhardwajEdited By: Swaraj Srivastava
    Updated: Fri, 10 Oct 2025 08:52 PM (IST)

    भारत रत्न नानाजी देशमुख का जन्म दिवस 11 अक्टूबर को है। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ में महत्वपूर्ण योगदान दिया। दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से ग्रामीण भारत में परिवर्तनकारी प्रयास किए। उन्होंने राजनीति में संन्यास की उम्र तय करने का विचार रखा। नानाजी ने मंत्री पद ठुकराकर समाज सेवा को समर्पित किया। उनका ग्रामीण विकास मॉडल भारतीय मूल्यों पर आधारित था। चित्रकूट में उन्होंने ग्रामीण विकास के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए।

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    संदीप भारद्वाज, नई दिल्ली। 11 अक्टूबर को भारत रत्न से सम्मानित नानाजी देशमुख का जन्म दिवस है। वे एक सिद्धांतवादी, दृढ संकल्पी, समर्पित, प्रतिबद्ध और उत्साही व्यक्ति थे, जिनका राष्ट्र हमेशा ऋणी रहेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ में उनके कार्यों के साथ-साथ दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से ग्रामीण भारत में उनके परिवर्तनकारी प्रयास यह दर्शाते हैं कि समाज में सार्थक बदलाव कैसे लाया जा सकता है। उनके सामाजिक समानता के प्रयासों और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी परिवर्तन लाने की दिशा में किए गए अभूतपूर्व कार्य शोध का विषय है।

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    नानाजी देशमुख उन राजनेताओं में से थे जिन्होंने भारतीय राजनीति में सबसे पहले संन्यास की उम्र तय करने का विचार प्रस्तुत किया, जो जिम्मेदारी और जवाबदेही की दिशा में एक सकारात्मक कदम था। वे न केवल जमीनी स्तर के राजनेता थे, बल्कि गठबंधन राजनीति के कुशल रणनीतिकार भी थे, जिनका विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रहा। अपने जीवन काल में वे जनसंघ से जुड़कर कांग्रेस के खिलाफ वैकल्पिक राजनीति के लिए संगठन विस्तार किया। वटवृक्ष जैसा विशाल रूप धारण कर चुकी भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान स्वरूप के पीछे नानाजी जैसे कई समर्पित कार्यकर्ताओं का ही योगदान है।

    आपातकाल के विरोध में जय प्रकाश नारायण द्वारा चलाए जा रहे देशव्यापी अभियान में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही और इस वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा। मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी सरकार में मंत्री पद का प्रस्ताव ठुकरा कर राजनीति में एक मिसाल कायम की और अपना शेष जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया। अपने कार्यों के माध्यम से उन्होंने एक राष्ट्रवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जो सांस्कृतिक पहचान और आत्मनिर्भरता के महत्व को दर्शाता था।

    नानाजी देशमुख का वैचारिक दृष्टिकोण पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा प्रतिपादित एकात्म मानववाद की विचारधारा में गहराई से निहित था। उनकी अंत्योदय और ग्रामोदय की अवधारणा ग्रामीण विकास के लिए भारतीय दृष्टिकोण पर केंद्रित थी, जो साम्यवाद, पूंजीवाद और समाजवाद जैसी पश्चिमी विचारधाराओं से अलग थी। उनके द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण विकास मॉडल भारतीय सभ्यता के मूल्यों पर आधारित था और जिसे बिना किसी वर्ग-संघर्ष के समाज में लागू किया जा सकता था।

    यह मॉडल ग्रामीण समाज के उत्थान और विकसित एवं आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक सशक्त पहल थी। उनके मॉडल में परिवार और सामाजिक मूल्यों को विशेष स्थान दिया गया, जिससे यह भारतीय समाज के अनुरूप बना रहा। उन्होंने पश्चिमी समाज की संरचना पर आधारित विकास मॉडल को खारिज किया, क्योंकि वे भारतीय समाज की जटिलताओं को सही ढंग से नहीं समझ पाते और अधिकांश सामुदायिक विकास मॉडल अमेरिका जैसे देशों के सामाजिक ढांचे पर केंद्रित होते हैं।

    उनका चित्रकूट में ग्रामीण विकास कार्य और महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना एक अनूठी पहल थी। यह संस्थान ग्रामीण विकास के लिए एक मॉडल रहा है, जिसमें व्यावहारिक कौशल और सामुदायिक भागीदारी पर ध्यान केंद्रित किया गया है। सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपना शेष जीवन चित्रकूट और अन्य पिछड़े इलाके में व्यतीत करते हुए लगभग 150 गाँव के समग्र विकास में योगदान दिया। सामाजिक समरसता में उनका काम एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश करता है। अपने प्रभावी मार्गदर्शन में उन्होंने गाँवों में सौहार्दपूर्ण और पूर्णतया विवाद-मुक्त समाज का निर्माण कर रामराज्य की अवधारणा को धरातल पर उतारा।

    शिक्षा के अलावा, नानाजी की चित्रकूट में पहले ग्रामीण आजीविका को बढ़ाने में महत्वपूर्ण रही हैं। उनकी जल संरक्षण, औषधीय पौधों की खेती और हरित परियोजनाओं ने न केवल कृषि उत्पादकता में सुधार किया, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी पैदा किए। औषधीय जड़ी-बूटियों को बाजार योग्य उत्पादों में परिवर्तित करना यह दिखाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है कि ग्रामीण संसाधनों का उपयोग रोजगार सृजित करने में कैसे मददगार साबित हो सकता है।

    नानाजी द्वारा स्थापित दीनदयाल शोध संस्थान ने समाज सुधार के लिए कई योजनाएं अपनाई, जिनमें समाज शिल्पी दंपति जैसी संकल्पना शामिल है। यह विचार ग्रामीण समाज में स्थायी परिवर्तन लाने के लिए कार्यकर्ताओं को समुदाय के बीच रहकर कार्य करने के लिए प्रेरित करता है। यह जमीनी स्तर की पहल गांवों में स्थानीय नेतृत्व को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जल संरक्षण, स्वयं सहायता समूहों का गठन और अन्य व्यावहारिक समाधानों पर उनका ध्यान इस बात को दर्शाता है कि वे लोगों को अपने विकास की जिम्मेदारी स्वयं लेने के लिए सशक्त बनाना चाहते थे।

    आज नानाजी की विरासत और उपलब्धियों को संरक्षित और प्रचारित करने की जरूरत है, जिससे आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा और मार्गदर्शन मिले। 21वी सदी में नानाजी देशमुख का दर्शन और योगदान भारतीय समाज के लिए एक प्रकाश पुंज की तरह है। एक ऐसे युग में जब शहरीकरण और तकनीकी प्रगति अक्सर ग्रामीण आवश्यकताओं को पीछे छोड़ देती है, नानाजी का कार्य हमें समावेशी विकास का स्मरण करता है। उनकी विरासत हमें अपनी प्राथमिकताओं पर पुनर्विचार करने और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करती है कि ग्रामीण भारत हमारी प्रगति की दौड़ में पीछे न छूट जाए।

    हालांकि नानाजी देशमुख और उनके संस्थान द्वारा किए गए व्यापक कार्यों के बावजूद, भारतीय अकादमिक विमर्श में उनके योगदान और दृष्टिकोण को अक्सर उपेक्षित कर दिया जाता है। उनके द्वारा विकसित स्थानीय संसाधनों के उचित उपयोग और जनभागीदारी के सिद्धांतों ने न केवल कई सफल परियोजनाओं की नींव रखी, बल्कि पूरे भारत में ग्रामीण विकास के लिए एक अनुकरणीय मॉडल भी प्रस्तुत किया। यदि समकालीन अध्ययन और नानाजी देशमुख की विचारधारा को सही रूप में अपनाया जाए, तो समाज में एक व्यापक और सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। उनके विचारों और अनुभवों से सीखकर एक समतामूलक और समृद्ध वाला भारत बना सकते है।