विश्वप्रसिद्ध हीराकुद बांध उद्घाटन के पूरे हुए 65 वर्ष
देश की तीसरी सबसे लंबी महानदी पर निर्मित विश्वप्रसिद्ध हीराकुद बांध के उद्घाटन के 65 वर्ष पूरे हो गए। बीते 13 जनवरी 1957 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस बहुउद्देशीय बांध का उद्घाटन किया था।
संवाद सूत्र, संबलपुर : देश की तीसरी सबसे लंबी महानदी पर निर्मित विश्वप्रसिद्ध हीराकुद बांध के उद्घाटन के 65 वर्ष पूरे हो गए। बीते 13 जनवरी 1957 को, देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस बहुउद्देशीय बांध का उद्घाटन किया था। आजादी के बाद देश में यह पहला बांध था, जो विश्वप्रसिद्ध हुआ। इस बांध का उद्देश्य पूर्वी ओडिशा के कई जिलों को बाढ़ की त्रासदी से मुक्ति दिलाना, महानदी में बाढ़ नियंत्रित कर खेतों की सिचाई के लिए पानी उपलब्ध कराना और बुर्ला समेत चिपलिमा पॉवरहाउस से पनबिजली उत्पादन करना था।
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान महानदी पर बांध निर्माण को लेकर पहल शुरू हो गई थी, लेकिन देश के आजाद होने के एक वर्ष बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने 12 अप्रैल 1948 को इस बांध का शिलान्यास किया और निर्माण के बाद 13 जनवरी 1957 को इसे देश के नाम लोकार्पित किया।
वर्तमान के छत्तीसगढ़ प्रदेश के धमतरी जिला के सिहाबा की पहाड़ियों से निकली करीब 855 किमी लंबी महानदी छत्तीसगढ़ के बाद ओडिशा के कई जिलों से प्रवाहित होते हुए बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। इसी महानदी पर संबलपुर जिला मुख्यालय से करीब 10 किमी दूरी पर यह बांध है, जिसके दोनों किनारों की पहाड़ियों पर गांधी मीनार और नेहरू मीनार है। बांध से संबलपुर, बरगढ़ और सासन नहर निकलती है, जिससे लाखों हेक्टेयर खेतों की सिचाई होती है। पॉवर चैनल से निकले पानी से पनबिजली उत्पादन होता है।
बताते हैं कि करीब 25. 8 किमी लंबे इस हीराकुद बांध में लगे निर्माण सामग्री से कश्मीर से कन्याकुमारी और अमृतसर से डिब्रूगढ़ तक 8 मीटर चौड़ी सड़क का निर्माण हो सकता है। इस बांध के साथ ओडिशा का विकास हुआ और इसी के साथ हजारों परिवार का विनाश भी हुआ। बांध निर्माण के लिए सैकड़ों गांव के 22 हजार से अधिक परिवार को बेदखल होना पड़ा और लाखों हेक्टेयर खेत बांध के समंदर जैसे जलभंडार में डूब गए। गर्मी के दिनों में जब बांध का जलस्तर कम होता है तब जलभंडार में डूबे गांव और मंदिरों का नजारा देखने को मिलता है।
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