पतंजलि योग शास्त्र के अनुसार करें प्राणायाम
कपाल भाति व अनुलोम विलोम में स्वांस व प्रस्वांस को नहीं रोका जात
जागरण संवाददाता, राउरकेला : कपाल भाति व अनुलोम विलोम में स्वांस व प्रस्वांस को नहीं रोका जाता, इसे प्राणायम कहना गलत है। यह नाड़ी शुद्धि करने तथा योग की अनुपम विधा है, जो विविध शारीरिक व मानसिक रोगों की रोकथाम करती है एवं इससे मुक्ति दिलाती है।
उत्कल योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के योग गुरु गो¨वद राम अग्रवाल ने पतंजलि योग शास्त्र के आधार पर यह तर्क दिया है। गो¨वद राम अग्रवाल ने सेक्टर-2 स्थित कार्यालय परिसर में बताया कि अनुलोम विलोम से शरीर में हल्कापन, चेहरे में चमक व तनाव की कमी होती है तथा मोटापा को भी कम करता है। इससे जठाराग्नि प्रदीप्त होती है। प्राणवायु को रोकने यानी प्राणायाम करने से चित्त की वृतियों का निरोध होने लगा है यह योग का उद्देश्य है। चित्त, मन और प्राण सहधर्मी हैं। एक के शांत होने से दूसरा भी शांत होता है। उन्होंने कहा कि अनुलोम विलोम को प्राणायाम कहना गलत है।
महर्षि पतंजलि का मत है कि चित की वृतियों को रोकना योग है। मन, बुद्धि, अहंकार, चित्त को अंताकरण चतुष्टाय कहा जाता है। चित्त से बहिर्मुखी वृतियों को एकाग्र करने से प्रत्येक कार्य में सुख का आनंद मिलता है। वहीं चित्त की बहिर्मुखी वृतियों को रोक कर अंतर्मुखी करने से आत्मा और परमात्मा से संयोग होता है यही योग है। चित्त की चंचलता के दो कारण हैं एक वासना और दूसरा वायु। इनमें से एक को नष्ट करने से दूसरा भी नष्ट हो जाता है। वासना का स्थान इंद्रियां एवं मन हैं तथा शरीरस्थ वायु को प्राण कहते हैं। योग व ज्ञान मार्ग से इन्हें अपने वश में किया जा सकता है। वायु के चलयमान होने से चित्त चंचल होता है एवं निश्चल होने से स्थिर। इसलिए वायु को रोकने व निरोध करने का अभ्यास करें। वायु के निरोध करने को ही प्राणायाम कहा जाता है। चिकित्सा केंद्र के सलाहकार नारायण पति, चिकित्सक खगेश्वर ओझा, ट्रस्टी निरंजन गोस्वामी ने भी योग एवं चिकित्सा पद्धति पर विभिन्न जानकारियां दी।


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