परिवेश सुरक्षा से ही जीव जगत की रक्षा संभव
हमारे चारों ओर घिरा एवं हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा है वही हमारा परिवेश है।

हमारे चारों ओर घिरा एवं हमारे जीवन को प्रभावित कर रहा है वही हमारा परिवेश है। इसे कोई अस्वीकार नहीं कर सकते। जीवजगत के बने रहने के लिए परिवेश की भूमिका अहम है। यदि परिवेश प्रदूषित हो जाये तो समग्र जीव जगत नष्ट हो जाएगा। परिवेश स्वच्छ एवं निर्मल होने पर अन्य जीव भी स्वस्थ व निरोग जीवन यापन कर सकेंगे। परिवेश के दूषित होने के कई कारण हैं। वर्तमान में तेजी से जंगल की कटाई, कार्बन डाइ आक्साइड की वायुमंडल में वृद्धि, अनियमित वर्षा, ऑक्सीजन की कमी परिवेश में प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। भारत जैसे विकासशील देश में प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य इस क्षेत्र में जागरूक होने, अधिक संख्या में पौधे लगाने, परिवेश को स्वच्छ एवं सुंदर रखना शामिल है। इसके अलावा संयंत्र के विशाक्त वर्ज्य वस्तु को शोधित करने, नदी व तालाब के पानी को शुद्ध रखने के उपायों का पालन करने, अखबार टीवी व रेडियो के माध्यम से संदेश देकर समाज को दिशा देना जरूरी है। प्रत्येक मनुष्य को प्रकृति की सुरक्षा के लिए संकल्प लेने की जरूरत है। परिवेश ठीक रहने से मनुष्य स्वस्थ रह सकता है। परिवेश का पतन होने से मानव जाति का पतन होगा। सुंदरगढ़ जीवन यापन के लिए स्वच्छ परिवेश महत्वपूर्ण है। परिवेश सुरक्षा कार्यक्रम खुद से शुरू करना चाहिए। परिवेश सुंदर रहने से ही जगत सुरक्षित रह सकता है। हम सभी को मिलकर गांधीजी के सपने को साकार करना होगा।
- खगेश्वर मल्लिक, प्रधानाध्यापक वेदव्यास उप्र. विद्यालय। ओड़िया भागवत में जगन्नाथ दास ने उल्लेख किया है कि आपण वास्ते जीवा खेदी, चेता रे ओछी प्रतिवादी। उन्होंने आगे कहा है कि आपना दोषे प्राणी मोरे। यानी हम खुद परिवेश को प्रदूषित कर हमारे जीवन को संकट में डाल रहे हैं। हमारी मूर्खता के कारण ही हम खुद जान न पाने के बावजूद विज्ञानी इसे महसूस कर रहे हैं एवं हमें सावधान कर रहे हैं। विज्ञानियों की चेतावनी के बावजूद हम अपने लोभ एवं मूर्खता के कारण पालन नहीं कर रहे हैं। परिवेश के प्रति जागरूक नहीं होने से परिवेश प्रदूषण सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। इसके द्वारा परिवेश में वास करने वाले प्राणियों की अकाल मौत होगी। शिल्प शहरों में स्थापित विभिन्न प्रकार के कल-कारखानों से निर्गत धुएं से परिवेश दूषित हो रहा है। देश में गंगा यमुना गोदावरी नर्मदा आदि का पानी दूषित हो चुका है। इससे आम लोगों के जीवन की रक्षा के लिए भारत सरकार करोड़ों रुपये परोक्ष रूप से खर्च कर रही है। हमारे जीवन की रक्षा के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता है उसे पेड़ पौधों से पाते हैं। इसका इस्तेमाल हम करते हैं। ऑक्सीजन के लिए हमारे परिवेश में अधिक संख्या में पेड़ पौधों की आवश्यकता है। प्रदूषण निराकरण करना सभी का कर्तव्य है। हमें पहले अपने घर के परिवेश को सुरक्षित करना है। इसके लिए लोगों को जागरूक करना होगा।
- गिरीश चंद्र पंडा, संस्कृत शिक्षक, व्यासदेव हाईस्कूल। परिवेश सुरक्षा की बात आने पर पहले जल का प्रसंग आता है। क्योंकि जल ही जीवन है। जल की शुद्धता पर समस्त जीव निर्भर हैं पर वैज्ञानिक प्रगति, कल कारखानों की स्थापना से प्रदूषण बढ़ रहा है। कल कारखानों के वर्ज्य वस्तु, विशाक्त जल, शहरों की गंदगी आदि नदी जल में मिलकर पानी को दूषित कर रहा है। इसकी सुरक्षा न करने से भविष्य में मानव जीवन एवं सभ्यता पर प्रभाव पड़ेगा। इसी तरह जंगल के विनाश से आक्सीजन कम हो रहा है। ध्वनि प्रदूषण भी परिवेश को दूषित कर रहा है। विपरीत परिस्थिति में परिवेश को सुरक्षित रखना प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य है। जल प्रदूषण को रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक उपकरण का उपयोग करना होगा। इसके अलावा परिवेश की सुरक्षा के लिए बच्चे से लेकर बूढ़े तक को ध्यान देना होगा। सरकारी एवं गैर सरकारी स्तर पर इस क्षेत्र में प्रयास किया जा रहा है पर इसमें सफलता नहीं मिल रही है। परिवेश सुरक्षा जरूरी आवश्यकता है। प्रदूषण के चलते जितनी क्षति हो रही है इसकी भरपाई करने के लिए मनुष्य को बड़ी कीमत चुकानी होगी। कोरोना जैसी महामारी भविष्य में और नया रूप ले सकता है। परिवेश के चलते कोरोना विश्व के 220 राष्ट्र में व्याप्त हो गया है। जिस पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चिता प्रकट किया है। वर्तमान समय में मानव समाज को दृढ़ता के साथ परिस्थिति से मुकाबला करना होगा एवं परिवेश को संतुलन रखना होगा।
- मंजूबाला त्रिपाठी, सहायक शिक्षिका, व्यासदेव हाईस्कूल। जन जीवन में प्रदूषण का प्रभाव : सुबह जागने के बाद मनुष्य के लिए स्वच्छ हवा पाना मुश्किल हो गया है। जल, थल आकाश जहां भी नजर दौड़ाये मनुष्य प्रदूषण से नहीं बच पा रहा है। केवल मनुष्य ही नहीं पशु पक्षी के साथ कीट पतंगें भी परिवेश प्रदूषण के चलते कई तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं। अनेक पशु पक्षी का लोप होने लगा है। इसका मुख्य कारण परिवेश के प्रति मनुष्य की अनदेखी करना है। इससे मनुष्य का स्वास्थ्य बिगड़ने के साथ ही प्रकृति की सुंदरता बिगड़ रही है। एक सर्वे से आकलन किया गया है कि 1135 व्यक्ति एक मिनट में जिस परिमाण में कार्बन डाइ आक्साइड छोड़ते हैं उतना एक वाहन एक मिनट में छोड़ता है। इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति शुरू होने के दौरान वायुमंडल में कार्बन डाइ आक्साइड की मात्रा एक मिलियन में 295 थी वह बढ़कर 350 हो गई है। वायुमंडल में धुआं प्रति साल 1500 टन अधिक कार्बन डाइ आक्साइड वायुमंडल में छोड़ रहा है। ऑक्सीजन कम हो रहा है एवं ओजोन मंडल में छिद्र बन रहे हैं। सूर्य की क्षतिकारक किरण पृथ्वी में नुकसान पहुंचा रही है। कल-कारखाना के लिए प्रतियोगिता इस परिस्थिति को और जटिल बना रहा है। इस कारण युवा समाज को विलासपूर्ण जीवन छोड़ कर प्रकृति संपदा की सुरक्षा के लिए प्रयास करें। यहां विज्ञान के अवदान को माया मृग जाना समझा जाना चाहिए तभी मानविक मूल्यबोध का विकास होगा अन्यथा आधुनिक मनुष्य एवं बुद्धिजीवी परिवेश के चलते युग यंत्रणा भोग करेंगे।
- सुशांत कुमार पाढ़ी, विज्ञान शिक्षक, व्यासदेव हाईस्कूल। स्वास्थ्य संपदा के क्षेत्र में परिवेश को मुख्य संसाधन के रूप में लिया जा सकता है। क्योंकि स्वास्थ्य ही श्रेष्ठ संपदा है। स्वास्थ्य ठीक रहने से मनुष्य का शरीर व मन ठीक रहता है। इसके लिए मनुष्य को और जीव जगत को परिवेश पर निर्भर रहना पड़ता है। कुल मिलाकर कहा जाये तो हम अत्याधुनिक समाज में पहुंचे हैं। अतीत के पाषाण युग, लौह युग खत्म हो चुके हैं। वर्तमान युग में गंदगी वायुमंडल में जो समस्या उत्पन्न कर रहा है। विज्ञानी भी समाधान क्षेत्र में अक्षमता प्रकट करने लगे हैं। इसके लिए जन जागरण की जरूरत है। भारत में तटवर्ती राज्यों में गर्मी के दिनों में तापमान में तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है। अमेरिका के विज्ञानी अब कहने लगे हैं कि अब वायुमंडल में ताप अधिक होगा जो जीव जगत के लिए अच्छा संकेत नहीं है। निकट भविष्य में ऐसा दिन भी आयेगा जब पृ्थ्वी के सभी ग्लेशियर पिघल जायेंगे एवं समुद्र की लहरें 300 फीट ऊंची हो जाएंगी। तब प्रलय पयोधि में जीव जगत बह जाएगा एवं आधुनिक युग की सभ्यता समाप्त हो जाएगी। परिवेश के संतुलन व सुरक्षा हमारा दायित्व है। गांव टोला से लेकर शहर तक सरकारी संस्थान एवं स्वेच्छासेवी संगठनों को मुख्य भूमिका निभानी होगी अन्यथा मानव सभ्यता घोर संकट में पड़ जाएगा। परिवेश की सुरक्षा की चिता आज किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि देश की समस्या है। इससे मानव सभ्यता दैवीय सभ्यता में परिणत हो सकेगा एवं आधुनिक मानव सभ्यता को स्वर्गीय शांति मिलेगी।
उमेश चंद्र दास, सहायक शिक्षक, व्यासदेव हाईस्कूल।
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