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    दृष्टिदोष पीड़ित स्वीकृति परीडा सीए परीक्षा में सफल

    By JagranEdited By:
    Updated: Fri, 11 Feb 2022 09:47 PM (IST)

    नगर के उदितनगर में शांति मेमोरियल अस्पताल गली निवासी अधिवक्ता शुभेंदु परीडा एवं संयुक्ता महापात्र की बेटी स्वीकृति दूष्टिदोष के बावजूद सीए (चार्टर्ड एकाउंटेंट) की परीक्षा में उत्तीर्ण हुई हैं।

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    दृष्टिदोष पीड़ित स्वीकृति परीडा सीए परीक्षा में सफल

    जागरण संवाददाता, राउरकेला : नगर के उदितनगर में शांति मेमोरियल अस्पताल गली निवासी अधिवक्ता शुभेंदु परीडा एवं संयुक्ता महापात्र की बेटी स्वीकृति दूष्टिदोष के बावजूद सीए (चार्टर्ड एकाउंटेंट) की परीक्षा में उत्तीर्ण हुई हैं। इसमें स्वीकृति के साथ माता पिता एवं उनकी नानी सावित्री महापात्र ने भी अथक प्रयास किया और कामयाबी दिलाई। स्वीकृति को 80 फीसद से अधिक दृष्टिदोष होने के बावजूद वह अपने को कमजोर नहीं समझती है। स्वीकृति ने कार्मेल स्कूल से मैट्रिक व इंटर 93 फीसद अंक के साथ उत्तीर्ण करने के बाद वाणिज्य में म्यूनिसिपल कालेज से डिस्टिग्शन के साथ 2019 स्नातक की डिग्री में लेने के बाद सीए बनने का लक्ष्य लेकर पढ़ाई करने लगी। गुरुवार को आइसीएआइ की ओर से सीए का परिणाम घोषित किया गया जिसमें वह सफल हुई हैं। वह इस सफलता का श्रेय अपने माता पिता व नानी को देना चाहती है जिन्होंने दिन रात उसका साथ दिया है। शैक्षिक संस्थानों में समानता जरूरी : कुसुम : कर्नाटक के उड् डुपी स्थित पीयू कालेज में हिजाब को लेकर उपजा विवाद चिताजनक है। सभी शैक्षिक संस्थानों में बच्चों के लिए समान पोशाक को प्रधानता मिलनी चाहिए तथा सरकार को इसकी उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ नेता शांतनु कुसुम ने की है। शांतनु कुसुम ने कहा है कि देश के अधिकतर स्कूल और कालेजों में ड्रेस कोड लागू है। सभी धर्म संप्रदाय के विद्यार्थी समान पोशाक पहन कर संस्थान में जा रहे हैं, यह उपयोगी व जरूरी भी है क्योंकि इससे विद्यार्थियों के मन में समानता का भाव आता है। इससे गैर छात्रों को संस्थान के अंदर जाने से रोकने में भी सहायक होता है। ऐसे में कर्नाटक में उठा विवाद स्वाभाविक नहीं है। योजनाबद्ध तरीके से इस मामले को हवा देने की कोशिश की जा रही है। इसका खुलासा करने के लिए उच्च स्तरीय कमेटी बननी चाहिए। धर्म व अवैज्ञानिक प्रथा सभी के लिए नुकसानदायक है। छात्रों को आदर्श अनुशासन, नया करने की सोच, गुणवत्तापूर्व शिक्षा व जीवन शैली सिखाना चाहिए न कि धर्मिक संकीर्णता। इस तरह की गतिविधि पर रोक लगाने का हर तरह का प्रयास जरूरी है।

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