Odisha News: पुरी में धूमधाम से मना नीलाद्री विजय उत्सव, अपने धाम में विराजे भगवान जगन्नाथ
पुरी में नीलाद्री बिजे भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का अंतिम अनुष्ठान है। भगवान जगन्नाथ बलभद्र सुभद्रा और सुदर्शन की मंदिर में वापसी हुई। माता लक्ष्मी ने द्वार बंद कर भगवान जगन्नाथ को रोका खरी-खोटी सुनाई। भगवान ने रसगुल्ला भेंट कर उन्हें मनाया और मंदिर में प्रवेश पाया। अंत में भगवान रत्न सिंहासन पर विराजमान हुए और रथयात्रा का समापन हुआ।

जागरण संवाददाता, पुरी। नीलाद्री बिजे भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा का अंतिम अनुष्ठान है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, देवी सुभद्रा और चक्रराज सुदर्शन की आज मंदिर में वापसी हो गई है।
एक-एक करके भगवान को उनके संबंधित रथ से जय-विजय द्वार के जरिए मुख्य मंदिर में जुलूस के साथ प्रवेश कराया गया।
महाप्रभु की रथयात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है बल्कि एक पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था का प्रतीक भी है।
इस यात्रा जहां भगवान का भक्तों के से जुड़ाव झलकता है तो वहीं, इस यात्रा के दौरान अपनाई जाने वाली परंपरा खुद भगवान जगन्नाथ की पारंपरिक परंपराएं होती हैं, जिनकी झलक आमतौर पर हमारे घरों में भी देखने को मिलती है।
जानकारी के मुताबिक एक-एक करके प्रभु बलभद्र, देवी सुभद्रा और चक्रराज सुदर्शन को गोटी पहंडी में जुलूस के साथ गर्भगृह में लाया गया।
हालांकि, जैसे ही महाप्रभु जगन्नाथ जी को लेकर सेवक मंदिर के मुख्य द्वार पहुंचे माता लक्ष्मी ने अपने सेवकों के जरिए जय-विजय द्वार को बंद करा दिया।
माता लक्ष्मी ने भगवान जगन्नाथ को मंदिर में प्रवेश रोकने का आदेश दिया। अंदर जाने के लिए महाप्रभु के तमाम अनुरोध को ठुकरा दिया गया और महाप्रभु बाहर खड़े रहे।
इस दौरान माता लक्ष्मी की तरफ से भगवान को खरी-खोटी सुनाई गई और भगवान एक आम आदमी की तरह पत्नी की खरी-खोटी को चुपचाप सुनते रहे।
माता लक्ष्मी उलाहना देते हुए जब थक जाती हैं तब भगवान जगन्नाथ जी बड़े ही प्रेम से लक्ष्मी जी को पुकारते हैं।
इसके बाद अलग-अलग नाम लेकर उन्हें मनाने की कोशिश करते हैं। माता लक्ष्मी के क्रोध मंदिर के अंदर से एक समूह के सेवकों द्वारा व्यक्त की गई जबकि दूसरा समूह भगवान जगन्नाथ का प्रतिनिधित्व किया।
इस बीच महाप्रभु को माता लक्ष्मी की पसंदीदा मिठाई रसगुल्ला की याद आयी और भगवान ने रसगुल्ला माता लक्ष्मी को भेंट किया।
इसके बाद माता लक्ष्मी प्रसन्न हुई और इस प्रकार महाप्रभु जगन्नाथ जी माता लक्ष्मी के हृदय को जीतने में कामयाब हुए और उन्हें मंदिर आने की अनुमति मिली।
महाप्रभु के सेवकों ने महाप्रभु को रत्न सिंहासन पर विराजमान कराया और इसी के साथ महाप्रभु के निलाद्री बिजे के साथ रथयात्रा का अंतिम अनुष्ठान सम्पन्न हुआ।
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