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    Odisha News: संकीर्तन से जंगल को बचाने की मुहिम, महिलाएं बन रहीं पर्यावरण प्रहरी

    Updated: Thu, 31 Jul 2025 07:23 PM (IST)

    ओडिशा के क्योंझर जिले में प्रमिला प्रधान के नेतृत्व में महिलाओं के एक समूह ने संकीर्तन के माध्यम से जंगलों को आग से बचाने की अनूठी पहल की है। ‘राधाकृष्ण संकीर्तन संगम’ नामक इस समूह ने लोकगीतों और कीर्तन के माध्यम से ग्रामीणों को जंगल की आग के खतरों के बारे में जागरूक किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी ‘मन की बात’ में इस प्रयास की सराहना की है।

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    ओडिशा के क्योंझर में लोकसंस्कृति के जरिए पर्यावरण को संरक्षित कर रहीं महिलाएं।

    गिरीधारी लाल, बड़बिल। जहां तकनीक आधारित समाधान पर्यावरण संरक्षण का मुख्य माध्यम बनते जा रहे हैं, वहीं ओडिशा के क्योंझर जिले के एक सुदूर गांव की महिलाओं ने परंपरागत लोकसंस्कृति के जरिये जंगलों को आग से बचाने की अनूठी मिसाल पेश की है।

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    घटगांव रेंज के मुर्गावाड़ी गांव की प्रमिला प्रधान ने न केवल संकीर्तन को जीवित रखा है, बल्कि उसे जंगलों की आग से लड़ने का माध्यम भी बना दिया है।

    उन्होंने "राधाकृष्ण संकीर्तन संगम" नामक एक महिला प्रधान समूह बनाया है, जो मृदंग और झांझ की धुनों पर पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ‘मन की बात’ में इस प्रयास की प्रशंसा करते हुए इसे जमीनी स्तर पर जनभागीदारी का श्रेष्ठ उदाहरण बताया है।

    इन महिलाओं का अभियान बताता है कि कैसे महिलाएं केवल घर की चौखट तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि जंगल की रक्षा में मोर्चा संभाल रही हैं।

    लोकगीतों और कीर्तन के माध्यम से वे ग्रामीणों को समझा रही हैं कि जंगल की आग केवल वनस्पति नहीं जलाती, बल्कि उसका असर पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर होता है। इस तरह से वह प्रहरी बन कर जंगलों की रक्षा करते हुए प्रकृति को संरक्षित करती हैं।

    जंगल में आग की घटनाओं में 80 प्रतिशत कमी

    मुर्गावाड़ी गांव की प्रधान प्रमिला का कहना है कि यह पहल उस समय शुरू हुई जब उन्होंने देखा कि हर साल जंगलों की आग से न केवल जीव-जंतु, बल्कि लोगों की आजीविका भी प्रभावित होती है।

    उन्होंने बताया कि लगभग 17 सदस्यों का एक समूह बनाया जिसमें 10 महिलाएं भी शामिल हैं और इसके माध्यम से उन्होंने विलुप्त हो रही पारंपरिक संकीर्तन संस्कृति को पुनर्जीवित किया है। बीते दो वर्षों में इस पहल के असर दिखने भी लगे हैं।

    वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक घटगांव रेंज में आग की घटनाओं में 80 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। साल 2023 में जहां 288 घटनाएं हुईं, वहीं 2025 में यह घटकर मात्र 26 रह गई।

    वन्यजीवों के प्रति सह-अस्तित्व की भावना जगा रहीं

    मिला और उनकी टीम अब केवल जंगल की आग पर ही नहीं, बल्कि अवैध शिकार, हाथियों के संरक्षण और वन्यजीवों के प्रति सह-अस्तित्व की भावना पर भी जागरूकता फैला रही हैं।

    यह पहल यह दिखाती है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए आधुनिक उपकरणों की जरूरत से पहले संवेदनशीलता, जनभागीदारी और लोकपरंपराओं का सही प्रयोग जरूरी है।

    संकीर्तन और लोकगीतों को केवल भक्ति का माध्यम मानने वालों को प्रमिला प्रधान और उनकी टीम ने दिखाया है कि परंपरा को कैसे सामाजिक परिवर्तन का औजार बनाया जा सकता है।

    यह कहानी केवल जंगल बचाने की नहीं, महिलाओं के नेतृत्व में जन-जागरूकता से बदलाव लाने की है- एक ऐसी मिसाल, जो देशभर के गांवों को प्रेरित कर सकती है।

    लोगों में उत्पन्न हुई भावनात्मक एवं आध्यात्मिक प्रतिक्रिया

    प्रमिला के प्रयासों का उल्लेख करते हुए क्योंझर रेंज के डीएफओ धनराज एचडी ने बताया कि पिछले वर्ष 10 संकीर्तन कार्यक्रम आयोजित किए गए थे।

    इससे लोगों में भावनात्मक और आध्यात्मिक प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई। उक्त जागरूकता के कारण घटगांव रेंज में वनों की आग की घटनाओं में कमी आई है। क्योंझर संभाग में 2023 में 1772 अग्निशमन स्थलों की पहचान की गई, जो 2025 में घटकर 727 रह गईं।