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    पद्मश्री विनोद पशायत का 91 साल की उम्र में निधन, कुल 45 पुरस्कारों से हो चुके थे सम्मानित

    Updated: Wed, 20 Aug 2025 04:48 PM (IST)

    संबलपुरी भाषा के प्रसिद्ध कवि लेखक और नाटककार पद्मश्री विनोद पशायत जिनका 91 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वृद्धावस्था से जुड़ी बीमारियों के कारण उन्हें संबलपुर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। विनोद पशायत ने संबलपुरी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें पद्मश्री के साथ कई राज्य स्तरीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।

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    पद्मश्री विनोद पशायत का 91 साल की उम्र में निधन

    संवाद सहयोगी, संबलपुर। संबलपुरी भाषा के जानेमाने कवि, लेखक, गीतकार, नाट्य आयोजक पदमश्री विनोद पशायत का बुधवार के पूर्वान्ह निधन हो गया। वह 91 वर्ष की आयु के थे। वृद्धावस्था जनित बीमारी के इलाज के लिए उन्हें संबलपुर जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।

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    विनोद पशायत का जन्म 3 दिसंबर 1935 को बलांगीर जिले में हुआ था। बचपन से ही उन्हें नाटक और अभिनय में रुचि थी। जब वे 10 वर्ष के थे, तब उन्होंने पहली बार बाल कलाकार के रूप में एक नाटक में अभिनय किया था, फिर वर्ष 1953 में वे संबलपुर आ गए।

    वे एक पेशेवर कलाकार थे, इसलिए उन्होंने याहां आकर एक सैलून खोला। यह सैलून उनके परिवार की आय का मुख्य स्रोत था। फिर उन्होंने इस काम के साथ-साथ गीत और कविताएं लिखना भी शुरू कर दिया। संबलपुरी गीत कविता ने उन्हें कम समय में ही प्रसिद्धि दिला दी।

    उन्होंने संबलपुरी भाषा साहित्य में बहुत योगदान दिया है। पदमश्री प्राप्त करने से पहले, उन्हें कई राज्यस्तरीय साहित्यिक पुरस्कार मिल चुके थे।

    उन्हें वर्ष 2008 में राज्य सरकार का ट्रांसमैन पुरस्कार, 2010 में ओडिशा साहित्य अकादमी पुरस्कार और 2019 में ओडिशा संगीत नाटक अकादमी द्वारा शारदा प्रसन्ना पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें 2023-24 में भारत सरकार द्वारा पदमाश्री से सम्मानित किया गया।

    उन्हें संबलपुर विश्वविद्यालय द्वारा पश्चिम ओडिशा संस्कृति पुरस्कार सहित कुल 45 पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया।

    उन्होंने "ऐ नानी सुलोचना..", " हाय कृष्णा हाय कृष्णा बोली जान मोर जीवन" जैसे हिट संबलपुरी गीतों की रचना की है और ओडिया फिल्मों "समर्पण", "आदिवासी" और "पर सेठरा" के लिए भी गीत लिखे हैं। इसके साथ ही, उन्होंने "उखी", "मुईं नाई मारें" जैसे 12 संबलपुरी नाटकों की रचना की है।

    उनके परिवार में एक बेटा, बहू और पोते-पोतियां हैं। उनके निधन से संबलपुर शहर में शोक की लहर है।