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    एशियन यूथ गेम्स में ओडिशा की बेटी का जलवा, प्रीतिस्मिता भोई ने गोल्ड जीतकर बनाया विश्व रिकॉर्ड

    By Santosh Kumar PandeyEdited By: Nishant Bharti
    Updated: Mon, 27 Oct 2025 12:57 AM (IST)

    ओडिशा की प्रीतिस्मिता भोई ने एशियन यूथ गेम्स 2025 में 44 किलोग्राम वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा। उन्होंने 158 किलो भार उठाकर विश्व युवा रिकॉर्ड बनाया। ढेंकानाल की रहने वाली प्रीतिस्मिता भुवनेश्वर में प्रशिक्षण ले रही हैं। मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री ने उनकी प्रशंसा की। उनका लक्ष्य सीनियर वर्ग में भी भारत का नाम रोशन करना है। वह छोटे शहरों की बेटियों के लिए प्रेरणा हैं।

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    प्रीतिस्मिता भोई ने गोल्ड जीतकर बनाया विश्व रिकॉर्ड

    संतोष कुमार पांडेय, अनुगुल। ओडिशा की उभरती भारोत्तोलन स्टार प्रीतिस्मिता भोई ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है। बहरीन में आयोजित एशियन यूथ गेम्स 2025 में 44 किलोग्राम वर्ग में उन्होंने स्वर्ण पदक जीतकर न केवल भारत का परचम लहराया बल्कि विश्व युवा रिकॉर्ड भी अपने नाम किया।

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    158 किलो भार उठा कर किया कमाल

    महज 17 वर्ष की प्रीतिस्मिता ने स्नैच में 66 किलोग्राम और क्लीन एंड जर्क में 92 किलोग्राम उठाकर कुल 158 किलोग्राम का भार उठाया। यह प्रदर्शन इतना शानदार रहा कि उन्होंने सभी प्रतिस्पर्धियों को पीछे छोड़ दिया और स्वर्ण पदक के साथ नया विश्व रिकॉर्ड कायम किया।

    ओडिशा से एशिया तक सफलता की उड़ान

    ओडिशा के ढेंकानाल जिले की रहने वाली प्रीतिस्मिता भोई वर्तमान में भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम हाई परफॉर्मेंस सेंटर में प्रशिक्षण ले रही हैं। उनकी इस अभूतपूर्व उपलब्धि पर पूरा ओडिशा गर्व महसूस कर रहा है।

    ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने ट्वीट कर कहा ओडिशा की बेटी प्रीतिस्मिता भोई ने एशियन यूथ गेम्स में गोल्ड जीतकर राज्य और देश का मान बढ़ाया है। उन्हें हार्दिक बधाई!”

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    वहीं केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भी प्रशंसा करते हुए कहा "प्रीतिस्मिता की यह उपलब्धि भारतीय खेल जगत के लिए प्रेरणादायक है। यह युवाओं के लिए नया मानक है।”


    गौरतलब है कि प्रीतिस्मिता ने बीते वर्ष वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप में भी शानदार प्रदर्शन किया था। अब उनका लक्ष्य है कि इसी आत्मविश्वास के साथ वह सीनियर वर्ग में भी भारत का नाम रोशन करें।

    प्रीतिस्मिता भोई आज उन तमाम बेटियों के लिए प्रेरणा हैं जो छोटे शहरों और सीमित संसाधनों के बावजूद बड़े सपने देखने की हिम्मत रखती हैं। उनके स्वर्ण पदक और विश्व रिकॉर्ड ने एक बार फिर साबित कर दिया कि

    “सपनों को पंख मेहनत देती है, और मेहनत को सफलता का आसमान।”