पहली पत्नी ने मांगा गुजारा भत्ता; पति ने दूसरी पत्नी और मां को बताया अपनी जिम्मेदारी; फिर कोर्ट ने दिया ये फैसला
शादी के तीन साल बाद पत्नी बेटी के साथ घर छोड़कर चली गई। पत्नी ने गुजारा भत्ता के लिए अदालत में याचिका दायर की जिसे पति ने खारिज करने की मांग की। हाईकोर्ट ने पत्नी के हक में फैसला सुनाया और पति को पत्नी और बेटी दोनों को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जब तक बेटी की शादी नहीं हो जाती।

संवाद सहयोगी, कटक। शादी के महज़ तीन साल बाद ही पत्नी वर्ष 2004 में अपनी छोटी बच्ची के साथ पति का घर छोड़कर चली गई और फिर कभी वापस नहीं लौटी। आज वही छोटी बच्ची एक वयस्क हो चुकी है और कॉलेज में पढ़ रही है। पत्नी के चले जाने के बाद पति ने दूसरी शादी कर ली।
वर्ष 2012 में पत्नी ने खुद और बेटी के लिए गुजारा भत्ता मांगते हुए अदालत में याचिका दाखिल की। पति ने इसके खिलाफ जवाबी हलफनामा दाखिल कर गुजारा भत्ता देने से इनकार कर दिया। उसका कहना था कि पत्नी अपनी मर्जी से घर छोड़कर चली गई और अब वह उससे ज्यादा कमा रही है।
मामला क्या है?
इस दंपति की शादी 19 जनवरी 2001 को जाति और रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी। लेकिन अतिरिक्त दहेज की मांग के आरोपों को लेकर आपसी मनमुटाव और तनाव के चलते पत्नी ने महिला समिति, बरगढ़ में शिकायत की और बाद में उसने दावा किया कि पति ने उसे 2004 में छोड़ दिया। जबकि पति का कहना था कि पत्नी ही घर छोड़कर चली गई थी।
बाद में पति ने संबलपुर सिविल जज की अदालत में तलाक का केस दायर किया। पत्नी अदालत में हाजिर नहीं हुई, जिसके चलते 8 मार्च 2007 को पति के पक्ष में डिग्री हो गई।
इसके बाद पत्नी ने 1908 की सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत याचिका दायर की, लेकिन 2 फरवरी 2012 को वह खारिज हो गई। इसके बाद पत्नी ने ओडिशा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और पूर्व पति से गुजारा भत्ता दिलाने का आदेश देने की मांग की।
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
16 सितंबर 2025 को ओडिशा हाईकोर्ट ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया और उसकी अपील स्वीकार कर ली।
अदालत ने कहा:
- यदि पति ने दूसरी शादी कर ली है या रखैल रखता है, तो पत्नी को पति से अलग रहने का वैध अधिकार है।
- पति का यह तर्क मान्य नहीं है कि पत्नी ने परित्याग किया।
- पत्नी भले ही वकील हो, लेकिन उसके पास पर्याप्त आय के सबूत पेश नहीं किए गए।
- यह मान लेना गलत होगा कि हर वकील अच्छी आय कर ही लेता है।
- पत्नी की आय न के बराबर है, जबकि उसके खर्चे 7-8 हजार रुपये मासिक हैं।
- बेटी भी लॉ की पढ़ाई कर रही है और उसके लिए भी खर्च जरूरी है।
पति का तर्क खारिज
पति ने यह दलील दी थी कि पत्नी पढ़ी-लिखी और योग्य है, इसलिए उसे गुजारा भत्ता नहीं मिलना चाहिए। अदालत ने कहा कि यह तर्क हर मामले पर लागू नहीं हो सकता। सिर्फ योग्य होने से यह साबित नहीं होता कि पत्नी जानबूझकर काम नहीं कर रही और पति पर बोझ डाल रही है।
अंतिम फैसला
हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी और बेटी दोनों को पति से गुजारा भत्ता मिलना चाहिए। बेटी को यह अधिकार तब तक रहेगा, जब तक उसकी शादी नहीं हो जाती।
पत्नी को 5,000 रुपये मासिक और बेटी को भी 5,000 रुपये मासिक देने का आदेश बरकरार रखा गया। अदालत ने कहा कि यह राशि न तो ज्यादा है और न ही अनुचित।
फैसला
अंत में, पुनरीक्षण याचिका वाद-विवाद के बाद खारिज की जाती है। परिस्थितियों को देखते हुए किसी तरह के खर्च का आदेश नहीं दिया जाता। परिणामस्वरूप, 23.12.2019 को परिवार न्यायालय, बरगढ़ द्वारा CMC No. 52-734 of 2012-16 में पारित आदेश को यथावत् पुष्टि की जाती है।
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