ओडिशा में बनेगा दुनिया का पहला काला टाइगर सफारी, सुप्रीम कोर्ट ने दी अंतिम मंजूरी
ओडिशा के मयूरभंज जिले में दुनिया का पहला काला टाइगर सफारी बनेगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना को मंजूरी दे दी है। यह सफारी मांचाबंधा में बनेगी, जिसे पहले ही केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण से मंजूरी मिल चुकी है। इस परियोजना से ओडिशा में वन्यजीव पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और पूर्वी भारत के लिए वन्यजीव बचाव तंत्र मजबूत होगा। पहले चरण में नंदनकानन और रांची से बाघ लाए जाएंगे।

काला बाघ सफारी
जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। ओडिशा के मयूरभंज जिले में दुनिया के पहले मेलानिस्टिक (काले) टाइगर सफारी की योजना को अंतिम मंजूरी मिल गई है।सुप्रीम कोर्ट ने इस सप्ताह परियोजना को हरी झंडी दे दी, जिससे महीनों से अटकी योजना का आखिरी कानूनी अवरोध भी हट गया।सफारी का प्रस्ताव मांचाबंधा (बारीपदा से लगभग 10 किमी दूर) में रखा गया था।
इसे पहले ही केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए) और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) से मंजूरी मिल चुकी थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय में लंबित याचिका के कारण परियोजना आगे नहीं बढ़ पा रही थी।
अधिकारियों ने पुष्टि की कि कोर्ट के फैसले के साथ ही अब ओडिशा सफारी के संचालन की दिशा में आगे बढ़ सकता है। अधिकारियों ने कहा कि यह पहल ओडिशा को वन्यजीव पर्यटन के क्षेत्र में अग्रणी बनाएगी और पूर्वी भारत के लिए एक समग्र वन्यजीव बचाव तंत्र को भी मजबूत करेगी।
साइट निरीक्षण पूरा
सूत्रों ने बताया कि एनटीसीए, और राज्य वन्यजीव अधिकारियों की संयुक्त सर्वे टीम ने क्षेत्रीय निरीक्षण के बाद मांचाबंधा स्थल को चुना। सफारी लगभग 200 हेक्टेयर भूमि पर विकसित होगी, जिसमें 100 हेक्टेयर बाघों के आवास के लिए और बाकी 100 हेक्टेयर सहायक सुविधाओं—जैसे रेस्क्यू सेंटर, पशु चिकित्सा इकाई, कर्मचारी अवसंरचना और पार्किंग—के लिए निर्धारित किए गए हैं।
200 हेक्टेयर का चयन
बारीपदा के आरसीसीएफ प्रकाश चंद्र गुगनानी ने कहा कि हमने कुल 1,000 हेक्टेयर में से 200 हेक्टेयर का चयन किया और उसी अनुसार प्रस्ताव दिया था।यहां समग्र सुविधा होगी जिसमें एक रेस्क्यू सेंटर भी शामिल होगा।
आगे की प्रगति पीसीसीएफ के निर्देशों के अनुसार होगी।राज्य अधिकारियों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने परियोजना को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दी है—जैसे विकास कार्य केवल क्षतिग्रस्त या बफर ज़मीन पर ही होगा और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 तथा संबंधित इसीजे़ड प्रावधानों का पालन अनिवार्य होगा, ताकि बाघ संरक्षण पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
पहले चरण में 5 बाघों को लाया जाएगा
रिपोर्ट्स के अनुसार, पहले चरण में नंदनकानन जूलॉजिकल पार्क से तीन और रांची जू से दो मेलानिस्टिक बाघों को लाने की तैयारी की जा रही है।इन बाघों को विशेषज्ञों की निगरानी में रखा जाएगा, जिसके बाद इन्हें प्रदर्शन और संरक्षण इकाइयों में शामिल किया जाएगा।
यह खबर सामने आने के बाद स्थानीय लोग और वन्यजीव विशेषज्ञों ने इस परियोजना का स्वागत किया है। मांचाबंधा निवासी जगदीश चंद्र ने कहा कि ये बाघ मयूरभंज की पहचान हैं।अब बारीपदा आने वाले लोग इन्हें देखने के लिए सिमिलिपाल तक जाने की जरूरत नहीं होगी।
इससे पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।वन्यजीव विशेषज्ञ विजय केतन पटनायक ने कहा कि जब से मेलानिस्टिक बाघों की तस्वीरें नेशनल ज्योग्राफिक के कवर पर आईं, विदेशी पर्यटकों की रुचि और बढ़ गई है। यहां सफारी बनने से बड़ी संख्या में पर्यटक आकर्षित होंगे।
दुर्लभ मेलानिस्टिक बाघों में वैश्विक रुचि
ओडिशा के सिमिलिपाल क्षेत्र में मिलने वाले मेलानिस्टिक (काला) बाघ दुनिया में अनोखे माने जाते हैं।इस दुर्लभ जीन पर वैश्विक वैज्ञानिकों और पर्यटकों की रुचि बढ़ती जा रही है।
सफारी का रेस्क्यू सेंटर पूर्वी भारत के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन केंद्र के रूप में उभरने की उम्मीद है।परियोजना वर्तमान में तैयारी के चरण में है, और राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट की शर्तों के अनुसार आगे की कार्ययोजना तय कर रही है।विस्तृत कार्यान्वयन कार्यक्रम तैयार होते ही वन विभाग जमीनी काम शुरू करेगा।

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