5 लाख रुपए के इनामी पूर्व माओवादी का नया जीवन, बंदूक छोड़कर संभाल रहे ब्लड बैंक में सुरक्षा गार्ड की जिम्मेदारी
कभी 5 लाख के इनामी माओवादी रहे एक व्यक्ति ने हिंसा का रास्ता छोड़कर ब्लड बैंक के सुरक्षा गार्ड की जिम्मेदारी संभाली है। यह बदलाव उनके जीवन में शांति की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है। अब वे समाज की सेवा में योगदान दे रहे हैं और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं, जो दूसरों के लिए प्रेरणादायक है।
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24 फरवरी 2019 को कोरापुट में दक्षिण पश्चिमी रेंज के पुलिस उपमहानिरीक्षक हिमांशु लाल के समक्ष आत्मसमर्पण करते हुए। फोटो जागरण
संतोष कुमार पांडेय, अनुगुल। कभी जंगलों में बंदूक थामे शासन-प्रशासन के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाला माओवादी आज समाज की सेवा में जुटा है। 5 लाख रुपये के इनामी रहे धनंजय गोप (उर्फ सुधीर) अब मलकानगिरी जिले के ब्लड बैंक में सुरक्षा गार्ड की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।
ओडिशा के मलकानगिरी जिले के निवासी धनंजय ने करीब 14 से 15 वर्ष तक माओवादी संगठन की सक्रियता में रहते हुए कई घटनाओं में हिस्सा लिया था। वह सीपीआई (माओवादी) की कलिमेला एरिया कमेटी से जुड़ा हुआ था और आंध्र-ओडिशा बॉर्डर स्पेशल जोन कमेटी में भी उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। उन पर हत्या, लूट, विस्फोट और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे 27 से अधिक गंभीर मामलों में आरोप थे।
2019 में किया था आत्मसमर्पण
लगातार बढ़ते पुलिस दबाव और माओवादी नेतृत्व की आंतरिक कलह से निराश होकर धनंजय ने फरवरी 2019 में कोरापुट पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था।
आत्मसमर्पण के समय पुलिस ने उसे समाज की मुख्यधारा में लौटने का अवसर देने का भरोसा दिया था। राज्य सरकार की पुनर्वास नीति के तहत धनंजय को न केवल वित्तीय सहायता मिली, बल्कि आज वह मलकानगिरी ब्लड बैंक में सुरक्षा गार्ड के रूप में कार्यरत हैं।

बंदूक छोड़ समाजसेवा की राह
धनंजय का कहना है कि अब वह युवाओं को यह संदेश देना चाहते हैं कि हिंसा किसी समस्या का समाधान नहीं है। उनका कहना है कि पहले मैं यह सोचता था कि बंदूक से बदलाव लाया जा सकता है, पर अब समझ आया है कि असली बदलाव शिक्षा और शांति से ही संभव है।
प्रशासन ने दी नई पहचान
स्थानीय प्रशासन और पुलिस अधिकारियों का कहना है कि धनंजय जैसे उदाहरण माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में उम्मीद की किरण हैं। पुलिस अधिकारियों के अनुसार, यदि कोई भी नक्सली आत्मसमर्पण कर शांति की राह अपनाना चाहता है, तो सरकार हर संभव मदद देने को तैयार है।
समाज के लिए मिसाल
आज धनंजय का जीवन उन युवाओं के लिए एक प्रेरक उदाहरण है जो कभी बंदूक उठाने को मजबूर हुए थे। मलकानगिरी जैसे पिछड़े जिले में उनका यह बदलाव यह साबित करता है कि अगर इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो कोई भी व्यक्ति अपनी जिंदगी की दिशा बदल सकता है।
धनंजय की कहानी सिर्फ एक व्यक्ति के बदलाव की नहीं, बल्कि उस नई सोच की मिसाल है जो हिंसा छोड़कर विकास और शांति की राह चुनती है। इनकी कहानी दिखाती है कि समाज के मुख्य धारा में लौटने की हर कोशिश का स्वागत होना चाहिए।

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