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    Nuapada By-Election: नुआपड़ा उपचुनाव में मूल मुद्दे गायब, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे प्रत्याशी

    By SHESH NATH RAIEdited By: Piyush Pandey
    Updated: Thu, 30 Oct 2025 08:52 AM (IST)

    नुआपड़ा उपचुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला है, लेकिन चुनाव प्रचार मूल मुद्दों से भटक गया है। पार्टियां भत्ते और मुफ्त बिजली जैसे वादों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रही हैं। चुनावी माहौल में गरमाहट है, लेकिन मतदाताओं को वास्तविक मुद्दों का इंतजार है।

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    नुआपड़ा उपचुनाव में मूल मुद्दे गायब। (जागरण)

    शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। 11 नवंबर को होने वाले नुआपड़ा उपचुनाव के लिए भाजपा, बीजद और कांग्रेस उम्मीदवारों का प्रचार अभियान अब तेज हो गया है। यह उपचुनाव सत्तारूढ़ भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है, जबकि बीजद अपने गढ़ को बचाने के लिए जोरदार प्रयास कर रही है।

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    दूसरी ओर, कांग्रेस अपने उम्मीदवार के भरोसे चुनाव जीतकर राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने की उम्मीद लगाए बैठी है। हालांकि चुनावी माहौल गरमाता जा रहा है, लेकिन नुआपड़ा के लोगों के मूल मुद्दे गायब होते दिख रहे हैं। सभी दलों के नेता केवल आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में व्यस्त हैं।

    नुआपड़ा का मुख्य मुद्दा है दादन (मजदूरी के लिए पलायन)। इसके साथ ही आज भी स्वास्थ्य, शिक्षा और सिंचाई जैसी बुनियादी सुविधाएं मजबूत नहीं हो पाई हैं। जिले के गठन से पहले और बाद में भी नुआपड़ा पिछड़ा ही बना हुआ है।

    यह जिला अब तक मजदूर पलायन जिला की पहचान से मुक्त नहीं हो पाया है। दादन, स्वास्थ्य, शिक्षा और सिंचाई जैसे बुनियादी क्षेत्रों में जिला बहुत पीछे है। अपर जोंक सिंचाई परियोजना जैसी महत्वपूर्ण योजना वर्षों से अधूरी पड़ी है।

    नतीजतन, कृषि पर निर्भर जनसंख्या को मजबूरन प्रवासी मजदूर बनना पड़ रहा है। राज्य सरकार की 2024 की सर्वे रिपोर्ट बताती है कि नुआपड़ा सहित 11 जिलों के लगभग 70 प्रतिशत परिवार अलग-अलग समय पर मजदूरी के लिए पड़ोसी राज्यों में पलायन करते हैं। जिले में उद्योगों और कौशल केंद्रों का भी अभाव है।

    बेरोजगारी की समस्या गंभीर होने के कारण स्थानीय युवक-युवतियां बंधुआ मजदूर की समस्या से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं। नुआपड़ा की लगभग 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है, लेकिन जिले में केवल 35 प्रतिशत (1.2 लाख हेक्टेयर भूमि) पर ही सिंचाई की सुविधा है।

    अपर जोंक सिंचाई परियोजना का कार्य अब तक केवल 40 प्रतिशत ही पूरा हुआ है। सिंचाई, कोल्ड स्टोरेज और बाजार संपर्क जैसी समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं निकल पाया है। जिला अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं भी बेहद कमजोर हैं।

    30 प्रतिशत से अधिक डॉक्टरों के पद खाली हैं, और उन्नत चिकित्सा सेवाएं अब भी जिलेवासियों के लिए एक सपना बनी हुई हैं।

    2023 के आंकड़ों के अनुसार, जिले की साक्षरता दर मात्र 49 प्रतिशत है। आदिवासी और अनुसूचित जाति छात्रों में माध्यमिक स्तर पर ड्रॉपआउट दर लगभग 50 प्रतिशत है।

    उच्चस्तरीय शिक्षा का बुनियादी ढांचा भी बेहद कमजोर है। जिले के लगभग 1.30 लाख मतदाता आदिवासी और अनुसूचित जाति वर्ग के हैं, लेकिन उनके लिए आजीविका के अवसरों का विकास नहीं हो पाया है।

    इतनी सारी मूलभूत समस्याएं होने के बावजूद, इस उपचुनाव में तीनों प्रमुख राजनीतिक दल इन मुद्दों पर बात नहीं कर रहे हैं। इसके विपरीत, सभी दल भत्ता, मुफ्त बिजली जैसे वादों को लेकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में उलझे हुए हैं।