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    NIT राउरकेला की नई पहल, बनाया प्रकृति आधारित वॉटर ट्रीटमेंट सिस्टम; ऐसे करता है काम

    By Kamal Kumar BiswasEdited By: Rajat Mourya
    Updated: Thu, 04 Dec 2025 04:46 PM (IST)

    एनआईटी राउरकेला ने धोबी घाटों को बचाने के लिए प्रकृति आधारित जल उपचार प्रणाली बनाई है। यह प्रणाली धोबी घाटों से निकलने वाले प्रदूषित पानी को साफ करने ...और पढ़ें

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    प्रकृति आधारित वॉटर ट्रीटमेंट सिस्टम। जागरण

    जागरण संवाददाता, राउरकेला। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) राउरकेला के शोधकर्ताओं ने धोबी घाटों और शहरी जलाशयों को प्रदूषण से बचाने के उद्देश्य से एक प्रकृतिआधारित वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट मॉडल विकसित किया है। यह प्रणाली प्रदूषित पानी को स्वच्छ बनाकर दोबारा उपयोग योग्य करती है। जिससे ताजे पानी पर निर्भरता कम की जा सकेगी।

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    एनआईटी के बायोटेक्नोलॉजी एवं मेडिकल इंजीनियरिंग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर कस्तूरी दत्ता के नेतृत्व में शोधार्थी दिव्यानी कुमारी (पीएचडी) और कार्तिका शनमुगम (एमटेक) ने कंस्ट्रक्टेड वेटलैंड माइक्रोबियल फ्यूल सेल (सीडब्ल्यू-एमएफसी) नामक प्रणाली तैयार की है। यह प्रणाली प्राकृतिक अवयवों और सूक्ष्मजीवों की सहायता से बिना रसायनों के प्रदूषित जल को शुद्ध करती है।

    संस्थान ने इस प्रणाली का पायलट परीक्षण एनआईटी कैंपस स्थित धोबी घाट पर किया। जहां प्रतिदिन लगभग 1,400 लीटर डिटर्जेंट युक्त अपशिष्ट जल निकलता है। परीक्षण में यह प्रणाली सफलतापूर्वक सर्फेक्टेंट और केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) को ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स की निर्धारित सीमा (1 पीपीएम) तक घटाने में सक्षम रही।

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    परिणामस्वरूप प्राप्त जल गंधहीन व रंगहीन था। जिसे पुनः कपड़े धोने के लिए उपयोग किया गया। यह मॉडल प्रकृति से प्रेरित है और इसकी संरचना में बजरी, रेत, मिट्टी, वेटलैंड पौधे और ग्रेफाइट आधारित एनोड-कैथोड लेयर शामिल है। इससे जल शोधन के साथ-साथ जैव-विद्युत (बायोइलेक्ट्रिसिटी) भी उत्पन्न होती है। यह व्यवस्था ऊर्जा के लिए आत्मनिर्भर है और रखरखाव का खर्च भी बहुत कम है। जिससे यह झुग्गियों, गांवों और शहरी धोबी घाटों के लिए आदर्श बनती है।

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    शोधकर्ताओं के अनुसार, इस प्रणाली का आकार और इकाइयों की संख्या बढ़ाकर इसकी क्षमता में विस्तार किया जा सकता है। यह मॉडल देशभर के प्रमुख धोबी घाटों जैसे मुंबई के महालक्ष्मी या बेंगलुरु के हलासुरु के लिए भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

    यह पहल न केवल जल संरक्षण की दिशा में नवाचार का उदाहरण है, बल्कि यह विकेंद्रित जल उपचार की ओर देश को एक नया मॉडल भी प्रदान करती है। अब शोधकर्ता इस प्रणाली को नीति-निर्माताओं, नगर निगमों और सामाजिक संगठनों के सहयोग से देशभर में विस्तार देने की योजना बना रहे हैं।

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    प्रो दत्ता ने कहा हमने प्रदूषित पानी की समस्या के समाधान के लिए कुदरती स्रोतों से एक टिकाऊ प्रणाली विकसित की है। इसके माध्यम से धोबी समुदाय न केवल पानी की बचत करेगा, बल्कि स्थानीय नालों और तालाबों को प्रदूषण से भी बचाया जा सकेगा। उन्होंने हायर एजुकेशन फंडिंग एजेंसी का आभार जताया। जिसने कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) के तहत आर्थिक सहयोग दिया।