पुरी जगन्नाथ मंदिर में खून के छींटे गिरने के बाद महाप्रभु को कराया गया महास्नान, फिसलकर चोटिल हो गया था एक सेवादार
पुरी जगन्नाथ मंदिर में एक हादसे के बाद महाप्रभु का महास्नान कराया गया है। मंदिर के अंदरूनी भाग में एक सेवक के हाथ से खून निकलने के कारण महास्नान कराया गया। इसके बाद परंपरा के अनुसार रीति नीति शुरू की गई और भक्तों की दर्शन व्यवस्था फिर से शुरू की गई। पुरी जगन्नाथ मंदिर के जनसंपर्क अधिकारी जितेन्द्र महांति ने इसकी जानकारी दी।

संवाद सहयोगी, पुरी (ओडिशा)। Odisha News: ओडिशा के पुरी जगन्नाथ मंदिर में महाप्रभु का महास्नान कराया गया है। अंदरूनी भाग में खून के छींटे पड़ने की वजह से महास्नान कराया गया, जिससे कुछ समय के लिए भक्तों के दर्शन को बंद करना पड़ा है। महाप्रभु का महास्नान कराए जाने के बाद परंपरा के अनुसार रीति नीति शुरू करने के साथ ही भक्तों की दर्शन व्यवस्था शुरू की गई।
पुरी जगन्नाथ मंदिर के जनसंपर्क अधिकारी जितेन्द्र महांति से मिली जानकारी के मुताबिक अवकाश नीति खत्म होने के बाद महाप्रभु की वेश नीति चल रही थी। इसी दौरान भीतरकाठ के समीप पाणियापट सेवक (कुआं से पानी लाने वाला सेवक)कृष्ण चन्द्र आपट अचानक सुबह 8:38 बजे पैर फिसलकर गिर गए। इससे उनके हाथ में पीतल के घड़ा से चोट लगी और खून निकल आया।
ऐसे में परंपरा अनुसार भीतरकाठ के समीप खून का छींटा पड़ने से महाप्रभु का महास्नान कराया गया।इस दौरान लगभग 28 मिनट तक सर्वसाधारण दर्शन बंद रहा।इससे मंदिर के बाहर भक्तों की लम्बी कतारें लग गई।
विधि के मुताबिक महाप्रभु की महास्नान नीति खत्म होने के बाद अन्य नीति संपन्न की गई और भक्तों की दर्शन व्यवस्था शुरू हुई।
सेवक को अस्पताल में कराया गया भर्ती
वहीं, घायल होने वाले सेवक को पहले पुरी मेडिकल अस्पताल ले जाया गया, जहां स्वास्थ्य में सुधार ना होने पर सेवक को पुरी जगन्नाथ मंदिर एम्बुलेंस के जरिए भुवनेश्वर अपोलो अस्पताल भेजा गया। अपोलो अस्पताल में सेवक का इलाज चल रहा है।फिलहाल सेवक की स्वस्थ्य अवस्था ठीक बतायी गई है।
ऐसे होता है महाप्रभु का महास्नान
परंपरा के मुताबिक जगन्नाथ मंदिर परिसर में कहीं भी खून के छीटे पड़ने से महाप्रभु का महास्नान कराया जाता है।मंदिर का शुद्धिकरण किया जाता है।इसके तहत घटना वाले स्थल को पहले पानी से अच्छी तरह साफ किया जाता है।इसके बाद पानी में चुना मिलाकर पोछा लगाया जाता है।
ऐसे में आज माता विमला मंदिर जहां कुआं है वहां से मंदिर के अंदर भीतरकाठ तक उक्त विधि के तहत साफ-सफाई की गई।इसके बाद नीति शुरू हुई और भक्तों को दर्शन करने की अनुमति मिली।
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