La Nina impact: बंगाल की खाड़ी से आ रही टेंशन! ओडिशा में ला-नीना का खतरा
विश्व मौसम संगठन के अनुसार दिसंबर तक ला-नीना की सक्रियता बंगाल की खाड़ी में तूफानों का खतरा बढ़ा सकती है। प्रशांत महासागर में उच्च तापमान और अंडमान सागर में आंतरिक तरंगों से चक्रवातों की शक्ति बढ़ सकती है जिससे ओडिशा समेत पूर्वी तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा और विनाशकारी तूफान आने की आशंका है। अतीत में भी ऐसे चक्रवात ओडिशा को प्रभावित कर चुके हैं।

जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। विश्व मौसम संगठन के आकलन के अनुसार दिसंबर तक जलवायु प्रक्रिया ला-नीना की सक्रिय स्थिति चिंता पैदा कर रही है।
प्रशांत महासागर में जब ला-नीना की स्थिति बनती है, तो यह बंगाल की खाड़ी में समुद्री तूफानों की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ाने में सहायक होती है।
विश्व मौसम संगठन के अनुसार दिसंबर तक ला-नीना की सक्रिय स्थिति बनी रहेगी, जिससे गंभीर चिंता पैदा हो गई है। प्रशांत महासागर में उत्पन्न यह जलवायु प्रक्रिया बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की आवृत्ति और उनकी शक्ति को बढ़ावा देती है।
ला-नीना प्रभाव के कारण पश्चिमी प्रशांत महासागर और चीन सागर क्षेत्र में उच्च समुद्री सतह तापमान मौजूद रहता है।
वहां उत्पन्न चक्रवातों के अवशेष बंगाल की खाड़ी में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे मॉनसून के बाद का चक्रवात मौसम अधिक सक्रिय हो जाता है। ये अवशेष विशेष रूप से अंडमान सागर क्षेत्र में प्रवेश करते हैं।
इस समय अंडमान क्षेत्र में समुद्री लहरों की प्रतिक्रिया से कुछ विशेष आंतरिक तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो समुद्र की सतह के तापमान को 30 डिग्री या उससे अधिक बनाए रखती हैं।
इसके परिणामस्वरूप, अक्टूबर से दिसंबर के बीच उच्च आर्द्रता, कम वायु प्रवाह अंतर और ऊंचे समुद्री सतह तापमान के कारण ये अवशेष और भी शक्तिशाली बन जाते हैं। इस स्थिति में भारत के पूर्वी तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा, बाढ़ और विनाशकारी चक्रवात आ सकते हैं।
इसके उदाहरण हैं
1999 का महाचक्रवात, 2009 का ‘आईला’, 2018 का ‘तितली’, 2021 के ‘गुलाब’ और ‘जवाद’, 2022 का ‘असानी’। इसी प्रकार प्री-मॉनसून चक्रवात मौसम में 2019 का ‘फनी’, 2020 का ‘अम्फान’, और 2021 का ‘यास’। इनमें से 1999, 2018, 2019, 2020, 2021 और 2022 में बंगाल की खाड़ी से उत्पन्न चक्रवातों ने ओडिशा को प्रभावित किया था।
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