Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    कोहड़े के फूल और रेशम कीट से बनी नयी त्वचा कैंसर रोधी दवा, एनआईटी राउरकेला के शोधकर्ताओं को मिला पेटेंट

    Updated: Sat, 20 Sep 2025 01:26 PM (IST)

    राउरकेला एनआईटी और बारीपदा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कोहड़ा के फूल और रेशम कीट से एक अनोखी दवा बनाई है। यह दवा मृत त्वचा को पुनर्जीवित करने और त्वचा कैंसर के इलाज में मददगार है। भारत सरकार ने इस खोज को पेटेंट दिया है। दवा में सिल्वर नैनोकण सेरिसिन प्रोटीन और काइटोसन शामिल हैं जो इसे प्रभावी बनाते हैं। यह खोज भारतीय विज्ञान और परंपरा का मेल है।

    Hero Image
    कोहड़े के फूल और रेशम कीट से बनी नयी त्वचा कैंसर रोधी दवा

    जागरण संवाददाता, राउरकेला। विज्ञान की दुनिया में एक बड़ी सफलता मिली है। एनआईटी राउरकेला और महाराजा श्रीरामचंद्र भंज देव विश्वविद्यालय, बारिपदा के शोधकर्ताओं ने कोहड़ा के फूल और रेशम कीट से ऐसी दवा तैयार की है, जो मृत त्वचा को पुनर्जीवित कर सकती है और त्वचा कैंसर के इलाज में भी मददगार है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इस अनोखे खोज को भारत सरकार ने पेटेंट प्रदान किया है। कोहड़ा (जिसे कुकुर्बिता मैक्सिमा भी कहते हैं) भारत में खाने-पीने और औषधि के रूप में पुरानी परंपरा रखता है।

    रेशम के कीट से प्राप्त सेरिसिन नामक प्रोटीन का त्वचा की मरम्मत और कैंसर रोधी गुणों के लिए इस्तेमाल किया गया है। इस खोज में सिल्वर के नैनोकणों के साथ सेरिसिन को मिलाकर एक नई दवा विकसित की गई है। यह शोध कार्य 2012 में शुरू किया गया था।

    डॉ. विस्मिता नायक (एनआईटी राउरकेला) और डॉ. देवाशीष नायक (एमएसबी विश्वविद्यालय, बारिपदा) ने मिलकर इस दवा का निर्माण किया। हाल ही में भारत सरकार ने इस खोज को पेटेंट संख्या 568887 के तहत मान्यता भी दी है।

    दवा का निर्माण और खास तकनीक

    इस नई दवा में मुख्य रूप से तीन चीजें शामिल हैं । सिल्वर नैनोकण, रेशम से मिलने वाला सेरिसिन प्रोटीन तथा काइटोसन। काइटोसन एक ऐसा पदार्थ है जो अम्लीय (एक तरह का खट्टा) वातावरण में अपघटित होता है।

    कैंसर जैसी जगहों पर यह अम्लीय माहौल होता है, जिससे दवा धीरे-धीरे रिलीज होती रहती है। दवा को एथोसोम्स नामक माध्यम से शरीर पर लगाए जाने के लिए तैयार किया गया है, जिससे यह सीधे प्रभावित क्षेत्र पर असर करती है।

    यह दवा ना केवल त्वचा कैंसर के इलाज में, बल्कि जीवाणुरोधी पट्टियाँ, घाव भरने वाली सामग्रियां, टांके लगाने के उपकरण, क्रीम और लोशन आदि में भी उपयोगी साबित हो सकती है।

    भारत की पारंपरिक औषधि और आधुनिक विज्ञान का मेल

    भारत में कोहड़ा खाने और औषधि दोनों तरह से पुराने समय से इस्तेमाल में है। रेशम कीट से मिलने वाला सेरिसिन भी पारंपरिक उद्योग का अवांछित हिस्सा माना जाता था, लेकिन अब इसके औषधीय गुणों को आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक से जोड़कर नई दवा बनाई गई है।

    यह शोध भारतीय विज्ञान और परंपरा का सुंदर मिला जुला रूप है।यह खोज भारत की चिकित्सा और विज्ञान के लिए बड़े सपनों की शुरुआत है। इससे न केवल त्वचा कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का उपचार आसान होगा, बल्कि देश का औषधि और फार्मा उद्योग भी मजबूत होगा।

    वैज्ञानिकों की मेहनत और परंपरागत ज्ञान के साथ आधुनिक तकनीक मिलकर भविष्य की चिकित्सा को नई दिशा दे रही है।

    यह दवा त्वचा कैंसर के इलाज में प्रभावी है, जबकि यह पूरी तरह से जैव अपघटनीय और सुरक्षित भी है। इसका इस्तेमाल क्रीम या मलहम के रूप में किया जा सकता है, जिससे मरीजों को कोई कठिनाई नहीं होगी। यह शरीर के रक्त के समान ही जैव संगत है, जिससे यह हानिकारक प्रभाव नहीं फैलाती।- डॉ. देवाशीष नायक, सहायक प्रोफेसर, एमएसबी विश्वविद्यालय, बारीपदा