ILS-IIT भुवनेश्वर को मिली बड़ी सफलता: टीबी नियंत्रण के लिए एचएसपी 16.3 डीसी 4 नामक नया टीका किया विकसित
आईएलएस-आईआईटी भुवनेश्वर ने टीबी नियंत्रण के लिए एचएसपी 16.3 डीसी 4 नामक एक नया टीका विकसित किया है। यह टीका इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस) और आईआईटी भुवनेश्वर के वैज्ञानिकों के संयुक्त प्रयासों का परिणाम है। यह टीबी के नियंत्रण और रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिससे इस गंभीर बीमारी से निपटने में मदद मिलेगी।

जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। टीबी रोगियों के लिए एक अच्छी खबर आई है। ओडिशा स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस) और आईआईटी भुवनेश्वर के वैज्ञानिकों ने टीबी नियंत्रण के लिए एचएसपी 16.3 डीसी4 नामक नया टीका विकसित किया है। इस टीके के फॉर्मूले को मुंबई स्थित टेक इन्वेंशन लाइफकेयर कंपनी को हस्तांतरित किया गया है।
चूहों पर इसका परीक्षण सफल रहा है और अब आगे मानव परीक्षण शुरू होगा। बताया जा रहा है कि यह टीका बहुत जल्द बाजार में उपलब्ध हो सकता है।
जानकारी के मुताबिक, संक्रामक रोग टीबी पिछले चार हजार वर्षों से दुनिया में मौजूद है। विश्वभर में हर साल लाखों लोग इससे संक्रमित होते हैं और पिछले वर्ष ही 12 लाख से अधिक लोगों की जान गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक दुनिया को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा है।
हालांकि, वर्तमान में टीबी से बचाव के लिए सौ साल पहले विकसित बीसीजी टीका लगाया जाता है, जो बच्चों को सीमित सुरक्षा देता है, लेकिन किशोरों और वयस्कों के लिए यह प्रभावी नहीं है। ऐसे समय में टीबी नियंत्रण के लिए नए टीके की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी।
ऐसे में अब आईआईटी भुवनेश्वर के प्रोफेसर आशीष विश्वास और आईएलएस भुवनेश्वर के डॉ. सुनील कुमार राघव ने यह नया टीका विकसित किया है, जो बीसीजी टीके की तुलना में अधिक प्रभावशाली माना जा रहा है।
राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (एनआरडीसी) ने इसके तकनीकी मूल्यांकन के बाद लाइसेंसिंग के लिए कंपनी चयन में मदद की है। टीका फॉर्मूला हस्तांतरण के लिए आईएलएस में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। आईएलएस, आईआईटी, एनआरडीसी और टेक इन्वेंशन लाइफकेयर के बीच एक एमओयू हस्ताक्षरित हुआ है।
आईएलएस की ओर से बताया गया कि बीसीजी टीके के साथ सब-यूनिट के रूप में इस नए टीके को देने पर इसका प्रभाव और बढ़ जाएगा।
मानव परीक्षण प्रयोगशालाओं में संभव नहीं है, इसलिए इसके लिए टीका निर्माता कंपनियों की मदद आवश्यक है। इस कार्यक्रम में आईएलएस के निदेशक डॉ. देवाशीष दास, आईआईटी भुवनेश्वर के निदेशक प्रोफेसर श्रीपद कर्मालकर, डीन (आर एण्ड आइसी) प्रोफेसर दिनकर पासला, एनआरडीसी के वरिष्ठ क्षेत्रीय महाप्रबंधक और प्रमुख (आउटरीच ऑफिस) डॉ. बी.के. साहू, टेक इन्वेंशन लाइफकेयर के निदेशक व सीईओ सैयद एस. अहमद, आईएलएस के वैज्ञानिक डॉ. सुनील राघव और आईआईटी भुवनेश्वर के स्कूल ऑफ बेसिक साइंस के प्रोफेसर डॉ. आशिष विश्वास सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, टीबी दुनिया की सबसे घातक संक्रामक बीमारियों में से एक है, जो अकेले 2024 में 1.23 मिलियन लोगों की जान ले लेती है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के तहत 2030 तक टीबी महामारी को समाप्त करना एक प्रमुख वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकता है।
हालांकि, दुनिया में एक सदी पहले विकसित बैसिलस कैल्मेट गुएरिन (बीसीजी) वैक्सीन पर भरोसा करना जारी रखा है, जो मुख्य रूप से शिशुओं को केवल सीमित सुरक्षा प्रदान करती है और किशोरों और वयस्कों में फुफ्फुसीय टीबी को रोकने में काफी हद तक अप्रभावी है।
इस महत्वपूर्ण अधूरी आवश्यकता को पूरा करने के लिए, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) भुवनेश्वर के प्रोफेसर आशीष विश्वास और इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (आईएलएस), भुवनेश्वर के डॉ. सुनील कुमार राघव के नेतृत्व में सहयोगात्मक अनुसंधान के माध्यम से अगली पीढ़ी की एचएसपी सब-यूनिट वैक्सीन विकसित की गई है। इस नई वैक्सीन को मौजूदा बीसीजी वैक्सीन की सुरक्षात्मक प्रभावकारिता को बढ़ाते हुए कोशिका-मध्यस्थ प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को ट्रिगर करने के लिए डिजाइन किया गया है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।