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    लैंगिक असमानता में देश के टॉप 10 राज्यों में ओडिशा का नाम, सामने आई चौंकाने वाली रिपोर्ट

    Updated: Wed, 28 May 2025 01:00 PM (IST)

    ओडिशा में लैंगिक असमानता की स्थिति चिंताजनक है। केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की संख्या घट रही है। लैंगिक असमानता के मामले में ओडिशा देश के शीर्ष राज्यों में शामिल है। जागरूकता के बावजूद लड़के-लड़कियों के बीच भेदभाव कम नहीं हो रहा है। सरकार बालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए प्रयास कर रही है।

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    प्रस्तुति के लिए इस्तेमाल की गई तस्वीर

    जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। ओडिशा में लैंगिक असमानता पर एक गंभीर तस्वीर उभरी है। प्रदेश में पहले जहां लड़कियों की संख्या बढ़ रही थी। वहीं, अब इस पर ब्रेक लग गया है।

    केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) ओडिशा में लैंगिक असमानता को दर्शाती है।

    रिपोर्ट के मुताबिक, 2011-12 में जन्म के समय प्रति हजार लड़कों पर 979 लड़कियां थीं। 2021 तक यह आंकड़ा घटकर 933 हो गया था। लैंगिक असमानता के मामले में ओडिशा देश के शीर्ष 10 राज्यों में शामिल है।

    असम सूची में सबसे नीचे

    राज्य सरकार की ओर से व्यापक जागरूकता और प्रोत्साहन के बावजूद समाज में लड़के-लड़कियों के बीच भेदभाव दूर नहीं हो पाया है। असम सूची में सबसे नीचे है।

    असम में प्रति 1,000 में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या 863, राजस्थान में 905, बिहार में 908, गुजरात में 909, महाराष्ट्र में 910, हरियाणा में 911 और तेलंगाना में 922 हैं।

    2017 में राज्य में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में 930 थी। हालांकि, 2019 में यह अचानक बढ़कर 947 हो गई। कयास लगाए जा रहे थे कि लोग लड़कियों के प्रति ज्यादा जागरूक हो रहे हैं।

    हालांकि, अगले वर्ष जारी की गई रिपोर्ट ने ओडिशा को सामान्य स्थिति में वापस ला दिया है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार एक परिवार में अभी भी बेटों का वर्चस्व है।

    वर्तमान में जब एक दंपति का पहला बच्चा पैदा होता है तो वे दूसरे बच्चे की इच्छा नहीं रखते हैं। साथ ही लड़कियों को लोग बोझ समझते हैं।

    परिवार में कई लड़कियां लड़के-लड़कियों की पसंद के कारण कुपोषण और एनीमिया से पीड़ित हैं। हालांकि, पीसीपीएनडीटी अधिनियम से अवैध लिंग निर्धारण में कमी आई है, लेकिन यह ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी जारी है।

    हालांकि, यह केवल लोगों के बीच अधिक जागरूकता और शिक्षा के माध्यम से है कि लोगों की मानसिकता को बदला जा सकता है।

    दंपती अपना रहे वन चाइल्ड पॉलिसी

    दूसरी ओर, राज्य के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि न केवल लड़कियां, बल्कि समग्र जन्म दर घट रही है। यह स्थिति इसलिए देखने को मिल रही है कि दंपती वन चाइल्ड पॉलिसी अपना रहे हैं।

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    प्रदेश में लिंग निर्धारण जारी है। जिला कलेक्टरों को भी इसे जारी रखने के लिए कहा गया है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार लोगों में जागरूकता पैदा करने का प्रयास कर रही है।

    मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी ने हाल ही में राज्य में लैंगिक असमानता पर चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि सरकार बालिकाओं को सशक्त बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी।

    ओडिशा सरकार ने ममता-पीएमएमवीवाई योजना के विलय की भी घोषणा की है ताकि लड़की के जन्म के मामले में माताओं को 12,000 रुपये प्रदान किए जा सकें। लेकिन इस आर्थिक मदद का लोगों पर कितना असर पड़ेगा यह तो आने वाले दिनों में ही साफ होगा।

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