Floating Solar Panel: अब पानी में तैरेंगे सोलर पैनल से बनेगी बिजली, पढ़ें कैसे करता है यह काम?
ओडिशा में बिजली उत्पादन के क्षेत्र में एक नई पहल होने जा रही है। राज्य सरकार और ग्रिडको अब पहली बार बड़े पैमाने पर फ्लोटिंग सोलर पावर प्रोजेक्ट (Floati ...और पढ़ें

फ्लोटिंग सोलर पैनल। (जागरण)
जागरण संवाददाता, अनुगुल। ओडिशा में बिजली उत्पादन के क्षेत्र में एक नई पहल होने जा रही है। राज्य सरकार और ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ ओडिशा लिमिटेड (ग्रिडको) अब पहली बार बड़े पैमाने पर फ्लोटिंग सोलर पावर प्रोजेक्ट विकसित करने की तैयारी कर रही है। इस तकनीक के तहत सोलर पैनल जमीन पर नहीं, बल्कि जलाशयों की सतह पर तैरते हुए लगाए जाएंगे।
ग्रिडको के मुख्य परियोजना प्रबंधक महेश दास ने शनिवार को बताया कि ओडिशा में जमीन की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती है। अधिकतर भूमि कृषि के लिए उपयोग हो रही है, जबकि 18 से 30 प्रतिशत क्षेत्र वन या अन्य उपयोग में है।
ऐसे में ग्राउंड माउंटेड यानी जमीन पर लगाए जाने वाले सोलर पावर प्लांट के लिए बड़े भूखंड मिलना मुश्किल है। इसी कारण अब जलाशयों का विकल्प चुना गया है।
कैसे काम करेगा फ्लोटिंग सोलर पैनल?
फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट में विशेष प्रकार के मजबूत फ्लोटर का उपयोग किया जाता है, जो पानी की सतह पर तैरते रहते हैं। इन फ्लोटरों पर सोलर पैनल लगाए जाते हैं और उन्हें आपस में जोड़कर पूरे जलाशय के एक हिस्से में फैलाया जाता है।
पैनल को एंकरिंग सिस्टम के जरिये जलाशय की तलहटी या किनारों से बांधा जाता है, ताकि पानी के स्तर में बदलाव या हवा के दबाव से वे हिलें नहीं। पैनल से उत्पन्न बिजली केबल के माध्यम से किनारे स्थित सबस्टेशन तक पहुंचाई जाती है।
स्थिर सोलर पैनल से क्या है अंतर?
ग्राउंड माउंटेड सोलर पैनल जमीन पर स्थायी ढांचे पर लगाए जाते हैं, जिसके लिए बड़े क्षेत्र की जरूरत होती है। इसके विपरीत फ्लोटिंग सोलर पैनल पानी की सतह पर तैरते हैं, जिससे कृषि भूमि या वन क्षेत्र पर कोई असर नहीं पड़ता।
इसके अलावा जलाशय का पानी पैनलों को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है। सामान्य तौर पर फ्लोटिंग सोलर पैनल जमीन पर लगे पैनलों की तुलना में अधिक बिजली उत्पादन करने में सक्षम होते हैं।
लागत के लिहाज से कौन सा सस्ता?
शुरुआती चरण में फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट की लागत ग्राउंड माउंटेड सोलर की तुलना में थोड़ी अधिक होती है, क्योंकि इसमें विशेष फ्लोटर, एंकरिंग और वाटरप्रूफ केबलिंग की जरूरत पड़ती है।
हालांकि लंबे समय में जमीन अधिग्रहण का खर्च न होने, कम सफाई लागत और अधिक दक्षता के कारण यह परियोजना आर्थिक रूप से लाभकारी साबित होती है।
ओडिशा में बड़े प्रोजेक्ट की तैयारी
महेश दास ने बताया कि राज्य में मध्यम, लघु और प्रमुख श्रेणी के कुल 185 जलाशय उपलब्ध हैं। इन्हें चरणबद्ध और समग्र तरीके से फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट के लिए विकसित किया जाएगा।
रेंगाली जलाशय में करीब 1000 मेगावाट क्षमता का टेंडर पहले ही जारी किया जा चुका है। इसके बाद अपर इंद्रावती में 225 मेगावाट और हीराकुंड जलाशय में लगभग 1.5 गीगावाट क्षमता के प्रोजेक्ट प्रस्तावित हैं।
उन्होंने कहा कि ग्रीन एनर्जी का विकास और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी आज की जरूरत है। ओडिशा देश के कुल इस्पात उत्पादन का करीब 30 प्रतिशत उत्पादन करता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन भी होता है। ऐसे में फ्लोटिंग सोलर जैसी परियोजनाएं पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा जरूरतों के बीच संतुलन बनाने में अहम भूमिका निभाएंगी।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।