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    हाथियों का कब्रगाह बन रहा ओडिशा, पिछले 6 साल में गई 104 हाथियों की जान; इंसानों की मौत में भी नंबर-1

    ओडिशा में हाथियों की मौत का सिलसिला जारी है खासकर बिजली के करंट से। पिछले छह वर्षों में 104 हाथी बिजली के करंट से मारे गए हैं। मानव-हाथी संघर्ष में भी ओडिशा में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं जहां 2019-20 से 2024-25 के बीच 144 हाथियों की जान गई। प्रोजेक्ट एलिफेंट की रिपोर्ट के अनुसार सरकार को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है

    By Sheshnath Rai Edited By: Krishna Parihar Updated: Tue, 26 Aug 2025 07:57 AM (IST)
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    हाथियों का कब्रगाह बन रहा ओडिशा राज्य

    जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। ओडिशा हाथियों के लिए कब्रगाह बनता जा रहा है। राज्य के संबलपुर, कटक, गजपति, ढेंकानाल, अनुगुल और क्योंझर जैसे जिलों में बिजली के करंट से हाथियों की मौतें थमने का नाम नहीं ले रही हैं।

    कभी शिकारियों द्वारा बिछाए गए तार तो कभी जंगलों और गांवों के बीच झूलते हाईटेंशन तार, दोनों ही हाथियों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। परिणामस्वरूप, हाथियों जैसे विशालकाय जीव असमय मौत के शिकार हो रहे हैं।

    आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि हालात कितने गंभीर हैं। पिछले छह वर्षों में केवल बिजली के करंट से 104 हाथियों ने दम तोड़ा है।

    वर्ष 2019-20 में 9 हाथियों की मौत हुई, 2020-21 में 8, 2021-22 में 13, 2022-23 में 26, 2023-24 में 15 और 2024-25 में 33 हाथियों की जान गई।2019-20 से 2024-25 के बीच ओडिशा में हाथी-मानव संघर्ष में सबसे अधिक हाथियों की जान गई है।

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    ओडिशा में जहां 144 हाथियों की मौत हुई है, वहीं इसके बाद असम में 113, तमिलनाडु में 79, कर्नाटक में 67, पश्चिम बंगाल में 45, छत्तीसगढ़ में 43 और झारखंड में 39 हाथियों की जान गई है। यह जानकारी प्रोजेक्ट एलिफैंट की रिपोर्ट से मिली है।

    प्रोजेक्ट एलिफेंट के निदेशक रमेश कुमार पांडे के अनुसार हाथी-मानव संघर्ष अब पूरे देश के लिए चिंता का विषय बन चुका है। बिजली का करंट, ट्रेन हादसे, विषाक्तता और शिकारियों के कारण ही मुख्य रूप से हाथियों की मौत हो रही है।

    इन चार कारणों में से ओडिशा में बिजली का करंट सबसे ज्यादा चिंता का विषय है। पश्चिम, दक्षिण और मध्य ओडिशा में बिजली के झटके से सबसे अधिक हाथियों की मौत हो रही है।

    ट्रेन हादसे फिलहाल नियंत्रण में हैं। बीते 6 वित्तीय वर्षों में ओडिशा में ट्रेन हादसे में क्रमशः 1, 4, 3, 3, 5 और 3 हाथियों की मौत हुई है। हालांकि यह खुशी की बात है कि विषाक्तता के कारण पिछले 6 वर्षों में कोई हाथी नहीं मरा। लेकिन कुछ हाथियों की जान शिकारी के जाल में फंसकर गई है।

    ओडिशा में सिर्फ हाथियों की मौत ही नहीं हो रही, बल्कि इंसानों की जान भी सबसे ज्यादा यहीं जा रही है

    मानव-हाथी संघर्ष से मौत मामले में नंबर-1

    ओडिशा में सिर्फ हाथियों की मौत ही नहीं हो रही, बल्कि इंसानों की जान भी सबसे ज्यादा यहीं जा रही है। 2021-22 को छोड़कर हर साल ओडिशा देश में मानव-हाथी संघर्ष से मौतों में नंबर-1 पर रहा है।

    2019-20 में 117 लोगों की जान गई थी। 2020-21 में यह आंकड़ा 93 रहा। 2021-22 में 112, 2022-23 में 148, 2023-24 में 154 और 2024-25 में 143 लोग हाथियों के साथ टकराव में मारे गए।

    वहीं 2021-22 में झारखंड में 133 लोगों की मौत हुई थी, जो 2024-25 में घटकर 81 रह गई है। इस पर विशेषज्ञों ने ओडिशा सरकार को चेतावनी दी है कि तुरंत ठोस कदम उठाने होंगे।

    एशिया में हाथियों की हालत

    एशिया महाद्वीप में हाथियों की संख्या 46,726 से 49,490 के बीच है। इनमें अकेले भारत में 29,964 हाथी हैं। श्रीलंका में 5,879 और थाईलैंड में 4,013 से 4,422 हाथी मौजूद हैं।

    इसके अलावा मलेशिया, म्यांमार, इंडोनेशिया, भूटान, कंबोडिया, चीन, बांग्लादेश, नेपाल, लाओस और वियतनाम जैसे देशों में भी हाथियों की मौजूदगी है।

    हर साल 730 इंसान और 336 हाथी मौत के शिकार

    प्रोजेक्ट एलिफैंट की रिपोर्ट के अनुसार, इंसान और हाथी के संघर्ष में एशिया में हर साल औसतन 730 इंसानों और 336 हाथियों की मौत होती है। इनमें से 73% घटनाएं भारत में और 17% श्रीलंका में होती हैं। यानी दोनों देशों में मिलाकर 90% मौतें होती हैं। इसके बाद थाईलैंड, बांग्लादेश और नेपाल का नंबर आता है।

    सवाल यह है कि इंसान-हाथी संघर्ष को रोकने के लिए आखिर कब तक इंतजार किया जाएगा और क्या ओडिशा सरकार समय रहते ठोस रणनीति बना पाएगी?