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    Dhanu Sankranti 2025: महाप्रभु जगन्नाथ की पहली भोग नीति कैसी होती है? आलस छोड़ने की देती है प्रेरणा

    Updated: Tue, 16 Dec 2025 12:40 PM (IST)

    ओडिशा में धनु संक्रांति एक प्रमुख पर्व है, जो सूर्य के धनु राशि में प्रवेश पर मनाया जाता है। श्रीमंदिर में, इस महीने महाप्रभु की नीतियां सूर्योदय से प ...और पढ़ें

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    ओड़िया संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है धनु संक्रांति। फाइल फोटो

    शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। ओड़िया संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है धनु संक्रांति। यह dhanu sankranti पर्व अनादि काल से मनाया जाता आ रहा है।सूर्य के धनु राशि में प्रवेश को धनु संक्रांति कहा जाता है। इस संक्रांति से लेकर मकर संक्रांति तक का समय कड़ाके की ठंड का होता है। इस अवधि में सामान्यतः लोग आलसी हो जाते हैं और देर से बिस्तर छोड़ना स्वाभाविक हो जाता है, लेकिन श्रीमंदिर की परंपरा इससे बिल्कुल विपरीत है।

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    इस पूरे महीने महाप्रभु की नीति सूर्योदय से काफी पहले संपन्न होती हैं। जब सामान्य लोग अभी नींद से जागना नहीं चाहते, उस समय महाप्रभु का स्नान, अवकाश आदि नीतियां पूरी हो चुकी होती हैं और बाल भोग भी अर्पित कर दिया जाता है।

    आलस्य छोड़ने की मिलती है सीख 

    पहिली भोग नीति हमें यह शिक्षा देती है कि शीत ऋतु में आलस्य छोड़कर कर्मठ बनना चाहिए। यह समय फसल कटाई का भी होता है। मेहनत और परिश्रम के साथ इस महीने कृषि कार्य में लगने की प्रेरणा यह नीति देती है, क्योंकि एक महीने की फसल पूरे वर्ष का भोजन सुनिश्चित करती है।

    जानकारी के मुताबिक श्रीमंदिर में धनु संक्रांति से मकर संक्रांति तक सुबह की गोपालवल्लभ भोग नीति के साथ-साथ पहिली भोग की विशेष व्यवस्था होती है। इन दिनों रात दो घड़ी के समय द्वारफिटा नीति, मंगल आरती और अवकाश संपन्न होते हैं।

    इसके बाद वस्त्र एवं आभूषण धारण कर भगवान का श्रृंगार किया जाता है। तत्पश्चात भीतर-बाहर शुद्धिकरण कर अनसर पिंडी में गोपालवल्लभ भोग अर्पित किया जाता है।

    बेहद खास होता है भोग

    इसके बाद अहमुड़िया पानी पड़ने के पश्चात पहिली भोग छेक आने के लिए भोग बुलाया जाता है। इस भोग में उड़द और गेहूं से घृतपाक विधि से बने विभिन्न प्रकार के पिठा पंचोपचार पूजा के साथ अर्पित किए जाते हैं।

    पहिली भोग में अर्पित किए जाने वाले प्रमुख पीठा इस प्रकार हैं। बड़ा झिली, दरसुआ बड़ी, दरसुआ झिली, बड़ा बड़ा, काकेरी, सान अमालु, नली, काकेरा, अरिसा, मुगेई, एंडुरी, लड्डू, गजा, खीर चूड़ा, मंडा, चूड़ा पुआ, बड़ी, कंटेई आदि।

    श्रीमंदिर के स्वत्वलिपि में इन सभी भोगों की मात्रा का भी स्पष्ट उल्लेख है। इन सभी पदार्थों को समय पर तैयार करने के लिए इन दिनों मंगल आरती के बाद ही रोष होम (रसोई कार्य) आरंभ किया जाता है।

    लोक मान्यता के अनुसार इस महीने मां लक्ष्मी अपने मायके जाती हैं। पौष महीने में बहू के मायके जाने की परंपरा ओड़िया समाज में प्रचलित है।इसलिए मां लक्ष्मी अपने बच्चों के प्रति स्नेहवश ठंड के मौसम में सुबह-सुबह गरम-गरम भोजन खिलाती हैं। यह पहिली भोग उसी स्नेह की स्मृति को ताजा कर देता है।