Odisha News: अक्टूबर आते ही सताने लगता है ‘चक्रवात’ का डर, क्या इस बार भी आएगी तबाही?
ओडिशा में अक्टूबर का महीना चक्रवातों के डर के साथ आता है। 1999 के सुपर साइक्लोन जैसी कई आपदाओं ने राज्य को तबाह किया है। मौसम विभाग के अनुसार अभी चक्रवात का कोई संकेत नहीं है लेकिन आशंका बनी रहती है। ला-नीना और अन्य समुद्री कारकों के चलते चक्रवात का खतरा मंडराता रहता है।

शेषनाथ राय, भुवनेश्वर। ओडिशा का तटीय इलाका हर साल अक्टूबर महीने में चक्रवातों की मार झेलता है। इतिहास गवाह है कि इस महीने कई भीषण तूफानों ने न सिर्फ समुद्री तटों को तबाह किया बल्कि हजारों लोगों की जिंदगी पर भी गहरा असर छोड़ा।
सबसे भयावह सुपर साइक्लोन 1999 रहा, जिसने 29 अक्टूबर को ओडिशा के पारादीप तट पर प्रहार किया।करीब 260 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चली हवाओं और समुद्र में उठी 7–8 मीटर ऊंची लहरों ने तटीय जिलों को खंडहर बना दिया।
लाखों लोग बेघर हुए और हजारों की जानें चली गईं।केवल 1999 का सुपर साइक्लोन ही नहीं बल्कि इसका बाद के वर्ष 2013 में फाइलिन 2014 में हुदहुद, 2018 में तितली ने गंजाम और गजपति जिलों को बुरी तरह प्रभावित किया। बाढ़, भूस्खलन और भारी नुकसान की घटनाएं सामने आईं।
अभी पिछले वर्ष 2024 में दाना चक्रवात अक्टूबर के अंत में आया, जिसने पेड़ उखाड़ दिए, बिजली के खंभे गिरा दिए और तटीय जिलों में जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया। ऐसे में अक्टूबर आते ही मन में शंका पैदा होती है कि कहीं चक्रवात न आ जाए।
मौसम विभाग ने किया आश्वस्त
हालांकि मौसम वैज्ञानिक इसको लेकर लोगों को आश्वस्त कर रहे हैं। आईएमडी के डीजी मृत्युंजय महापात्र के अनुसार, अभी तक चक्रवात का कोई संकेत नहीं है।
मौसम वैज्ञानिक मृत्युंजय महापात्र ने बताया कि अक्टूबर से दिसंबर के बीच बंगाल की खाड़ी में अधिक चक्रवात बनते हैं। हर साल बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में औसतन 5 चक्रवात बनते हैं, जिनमें से 3 अक्टूबर से दिसंबर के बीच होते हैं।
इस साल अब तक बंगाल की खाड़ी या अरब सागर में कोई चक्रवात नहीं बना है। लेकिन अक्टूबर से दिसंबर के दौरान बंगाल की खाड़ी में चक्रवात बनने की आशंका से इनकार भी नहीं किया जा सकता।
मौसम वैज्ञानिक सुरेंद्रनाथ पशुपालक ने कहा कि अक्टूबर से दिसंबर तक राज्य में ला-नीना की स्थिति बनी रहेगी। माना जाता है कि ला-नीना चक्रवात का कारण बनता है। यह कुछ हद तक सही भी है, लेकिन चक्रवात बनने के लिए कई और कारक जिम्मेदार होते हैं।
पिछले 24 वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि ला-नीना के समय बंगाल की खाड़ी में चक्रवातों की संख्या थोड़ी अधिक होती है। उल्लेखनीय है कि 1999 का महाचक्रवात और 2020 का ‘अम्फान’ भी ला-नीना के समय ही आया था।
इसके अलावा समुद्री स्थिति जैसे एनएसओ (एल-नीनो सदर्न ऑस्सीलेशन) के अलावा एमजेडओ (मेडन-जूलियन ऑस्सीलेशन) भी चक्रवात बनाने और उसे प्रबल करने में सहायक होता है।
जब एमजेडओ बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर में सक्रिय रहता है तो चक्रवात बनने की स्थिति अनुकूल हो जाती है। बादल बनने, हवा के ऊपर उठने की गति, निम्नचाप और अवपात के चक्र बढ़ जाते हैं, जिससे चक्रवात बनने और प्रबल होने की संभावना बढ़ती है।
दूसरी ओर, जब आईओडी (हिंद महासागर द्विध्रुवीय) निगेटिव रहता है तो बंगाल की खाड़ी में समुद्र सतह का तापमान बढ़ जाता है। सामान्यतः यह स्थिति एल-नीनो के बाद बनती है।
यह चक्रवात को और शक्तिशाली करने में मदद करती है। फिलहाल सितंबर में आईओडी निगेटिव है और अक्टूबर में भी ऐसा ही रहने की संभावना है।
इन सभी चक्रवात बनाने वाले कारकों की स्थिति अक्टूबर में कैसी रहेगी, इसी पर चक्रवात होगा या नहीं, यह निर्भर करता है। इसलिए अभी से चक्रवात का अनुमान निराधार है, पशुपालक ने कहा।
सामान्यतः मानसून की वापसी के बाद और कभी-कभी वापसी के समय चक्रवात बनते हैं। मानसून के दौरान चक्रवात नहीं बनते, क्योंकि ऊपर उठने वाली हवा की गति घर्षण के कारण धीमी हो जाती है।
साथ ही मानसूनी प्रवाह से वातावरण अस्थिर रहता है, जो चक्रवात के लिए अनुकूल नहीं है, लेकिन वापसी के समय जब मानसून ट्रफ बंगाल की खाड़ी तक खिंच जाती है तो यह चक्रवात बनने के लिए अनुकूल साबित होती है।
2 से 10 अक्टूबर के बीच राज्य में मानसूनी बारिश होने की संभावना है। इसलिए 10 तारीख तक चक्रवात की संभावना नहीं है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि बंगाल की खाड़ी का गरम पानी और मौसमी दबाव परिवर्तन अक्टूबर महीने को चक्रवातों के लिए सबसे अनुकूल बनाते हैं। यही वजह है कि हर साल यह महीना ओडिशा के लोगों के लिए भय और आशंका लेकर आता है।
वर्ष 1999 से 2024 तक पांच बड़े चक्रवात
1. 1999 में अब तक का सबसे बड़ा चक्रवात सुपर साइक्लोन
2. 2013 में फाइलिन
3. 2014 में हुदहुद
4. 2018 में तितली
5. 2024 में दाना
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