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    कॉफी की खेती के बाद अब काली हल्दी से मालामाल हो रहे किसान, बाजार में है भारी डिमांड

    Updated: Sun, 21 Dec 2025 03:57 PM (IST)

    ओडिशा के कोरापुट में कॉफी की सफलता के बाद, काली हल्दी एक आशाजनक फसल के रूप में उभरी है। इसकी खेती किसानों के लिए एक आकर्षक विकल्प बन गई है, क्योंकि बा ...और पढ़ें

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    काली हल्दी की खेती से मुनाफा कमा रहे किसान। फाइल फोटो

    जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। कॉफी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पहचान हासिल करने के बाद अब कोरापुट जिला मसाला और औषधीय फसलों के बाजार में कदम रखने के लिए तैयार है।जिले में पहली बार काली हल्दी की खेती पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू की गई है, जिसमें क्षेत्र की अनुकूल जलवायु और मिट्टी की परिस्थितियों का लाभ उठाया जा रहा है।

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    पायलट परियोजना में उत्साहजनक परिणाम

    इस वर्ष प्रायोगिक खेती की शुरुआत ओडिशा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ओयूएटी) के सहयोग से की गई। एकीकृत आदिवासी विकास एजेंसी (आइटीडीए) के माध्यम से दसमंतपुर ब्लॉक के आदामुंडा गांव की महिला किसान लक्ष्मी नायक को 50 किलोग्राम काली हल्दी का बीज उपलब्ध कराया गया।

    जून माह में जैविक खेती पद्धति से फसल बोई गई थी, जो अब तक स्वस्थ रूप से विकसित हो रही है।इसकी कटाई मार्च में होने की संभावना है और शुरुआती निरीक्षणों में अच्छी पैदावार की उम्मीद जताई जा रही है।अपने अनुभव साझा करते हुए लक्ष्मी नायक ने बताया कि काली हल्दी के औषधीय गुणों के बारे में जानकारी मिलने के बाद उन्होंने बिना किसी पूर्व अनुभव के इसकी खेती करने का निर्णय लिया।

    उन्होंने कहा कि हमें करीब 50 किलो बीज दिया गया था और फसल बहुत अच्छी तरह उग आई है।वास्तविक कीमत तो बाजार में पहुंचने के बाद ही पता चलेगी, हालांकि अनुमान 500 से 1,000 रुपये प्रति किलो के बीच है।

    क्षेत्र में पहली बार हुई खेती

    लक्ष्मी नायक के पुत्र रमेश नायक ने बताया कि उनके इलाके में पहले कभी काली हल्दी की खेती नहीं हुई थी।उन्होंने कहा कि परिवार नियमित रूप से फसलें और सब्जियां उगाता है, लेकिन उनकी जमीन काली हल्दी के लिए बेहद उपयुक्त साबित हुई है।

    उन्होंने यह भी बताया कि फसल की देखभाल में काफी मेहनत लगी है और अब कई लोग, जिनमें मीडिया प्रतिनिधि भी शामिल हैं, खेती की प्रक्रिया को समझने के लिए खेतों का दौरा कर रहे हैं।

    ऊंचा बाजार मूल्य बना आकर्षण

    काली हल्दी अपने प्रबल औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है और इसका उपयोग औषधि तथा पारंपरिक चिकित्सा में व्यापक रूप से होता है।सामान्य हल्दी जहां 100 से 200 रुपये प्रति किलो में बिकती है, वहीं काली हल्दी की कीमत 1,200 से 2,000 रुपये प्रति किलो तक होती है।कीमत में इस बड़े अंतर ने दवा कंपनियों का भी ध्यान खींचा है और उनके प्रतिनिधि खेती स्थल का दौरा कर रहे हैं।

    अनुकूल कृषि-जलवायु परिस्थितियां

    जिला उद्यान विभाग के सुधाम बिस्वाल ने बताया कि ओयूएटी ने दसमंतपुर ब्लॉक का चयन उसकी विशिष्ट कृषि-जलवायु परिस्थितियों को देखते हुए किया है।यहां अच्छी वर्षा, मिट्टी में उच्च जैविक तत्व और अपेक्षाकृत ठंडा तापमान पाया जाता है, जो काली हल्दी की खेती के लिए अनुकूल है।

    विस्तार की संभावनाएं और किसानों की समृद्धि

    जिला कलेक्टर मनोज सत्यवान महाजन ने बताया कि इस वर्ष काली हल्दी की खेती पायलट परियोजना के रूप में शुरू की गई है और इसकी सफलता के आधार पर इसे बड़े पैमाने पर विस्तार देने की योजना है।अधिकारियों का मानना है कि यह फसल किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकती है और कोरापुट को उच्च मूल्य वाली औषधीय फसलों के केंद्र के रूप में स्थापित कर सकती है।अपनी मजबूत आर्थिक संभावनाओं और स्वास्थ्य लाभों के साथ, कोरापुट की काली हल्दी से उम्मीद की जा रही है कि यह जिले की कॉफी की सफलता की कहानी को दोहराएगी और नए बाजार अवसर खोलेगी।