19 अगस्त को भुवनेश्वर बनी थी राजधानी
ओडिशा की विधानसभा में 30 सितंबर 1946 को प्रस्ताव पारित कर भुवनेश्वर में नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया।
भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। तमाम उतार-चढ़ाव की साक्षी रही ओडिशा की राजधानी (भुवनेश्वर) का शनिवार को 69वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। देश आजाद होने से पहले ओडिशा की राजधानी कटक हुआ करती थी, जिसे आज प्रदेश की व्यापारिक राजधानी के रूप में जाना जाता है। राजधानी को विकसित करने एवं क्षेत्रफल को बढ़ाने की जरूरत महसूस होने लगी जो नदियों से घिरे कटक शहर में संभव नहीं दिखा। इसके बाद राजधानी को स्थानांतरित करने पर मंथन शुरू हुआ।
राज्य के विभिन्न क्षेत्र में राजधानी को स्थानांतरित करने की मांग उठने लगी, विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनाई गई कमेटी ने ग्रेटर कटक के स्थान पर भुवनेश्वर को राजधानी बनाने पर सहमति दी और इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री हरेकृष्ण महताब ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। ओडिशा की विधानसभा में 30 सितंबर 1946 को प्रस्ताव पारित कर भुवनेश्वर में नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया। भुवनेश्वर के भौगोलिक संरचना, ऐतिहासिक महत्व, व्यापारिक केंद्र एवं भविष्य में विस्तार
की संभावना के मद्देनजर इसे ही नई राजधानी के लिए उपयुक्त स्थान माना गया। भुवनेश्वर को राजधानी बनाने का निर्णय लिए जाने के बाद प्रख्यात वास्तुकार ओट्टो कोजिनबर्गर को टाउन प्लान का जिम्मा सौंपा गया।
भुवनेश्वर के आसपास पथरीली जमीन और मांकड़ा पत्थरों की बहुलता से यहां नए भवन निर्माण का काम आसान था। बड़ी मात्रा में बंजर जमीन उपलब्ध होने के कारण अधिग्रहण की समस्या भी भुवनेश्वर में नहीं थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकन फौज द्वारा बनाए गये भवन और हवाई अड्डे का होना भविष्य में विस्तार की अपार संभावना का होना भुवनेश्वर के पक्ष में गया। 13 अप्रैल 1948 को अंतत: भुवनेश्वर को प्रदेश की नई राजधानी के तौर पर पहचान मिली जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसकी आधारशिला रखी।
इस तरह 19 अगस्त 1949 को ओडिशा की राजधानी को नए रूप रंग में तैयार भुवनेश्वर में पूर्ण रूप से स्थानांतरित कर दिया गया। नई राजधानी बनने के स्थान को लेकर राज्य के अन्य दो जगहों के लिए जो प्रस्ताव थे, उसमें मुख्य रूप से गंजाम जिला के छत्रपुर एवं अनुगुल जिला का नाम शामिल था। इसके अलावा पहले 1933 में जब देश पराधीन था, उस समय ओडिशा एडमिनिस्ट्रेटिव कमेटी ने कटक जिला के ही चौद्वार में राजधानी बनाने का प्रस्ताव दिया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री हरेकृष्ण महताब ने इन दोनों जगहों पर भुवनेश्वर को तर्कसंगत तरजीह दी।
ओडिशा की राजधानी को अनुगुल में इसलिए नहीं स्थानांतरित किया गया क्योंकि, वहां पर उस समय पानी की कमी थी। गंजाम जिला के छत्रपुर में महानदी मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर थी तथा रेलवे लाइन भी नहीं थी। इन दोनों प्रस्तावित जगहों पर दिख रही समस्या के चलते विधानसभा ने भुवनेश्वर में राजधानी निर्माण के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री के पसंदीदा स्थान भुवनेश्वर पर अपनी मुहर लगा दी। 13 अप्रैल 1948 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भुवनेश्वर में राजधानी के लिए शिलान्यास किया था। इसके बाद राजधानी को 19 अगस्त 1949 को कटक से भुवनेश्वर पूर्ण रूप से स्थानांतरित कर दिया गया।
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