पुरी में भगवान जगन्नाथ के मंदिर के रत्न भंडार में कोई छिपा हुआ कक्ष नहीं: एएसआई
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने स्पष्ट किया है कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार में कोई छिपा हुआ कक्ष नहीं है। जीर्णोद्धार कार्य के दौरान ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वेक्षण किया गया जिसने इसकी पुष्टि की। एएसआई ने बताया कि रत्न भंडार दो भागों में विभाजित है और दोनों कक्षों का गहन निरीक्षण किया गया। संरक्षण कार्य दो चरणों में किया गया।

पीटीआई, पुरी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मंगलवार को कहा कि पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के रत्न भंडार में कोई छिपा हुआ कक्ष नहीं है। एएसआई ने हाल ही में रत्न भंडार का जीर्णोद्धार और मरम्मत का काम पूरा किया है।
दरअसल, एएसआई ने एक्स पर एक पोस्ट साझा की है। इसमें जीर्णोद्धार से जुड़े कार्यों का विवरण देते हुए एएसआई ने कहा है कि रत्न भंडार में कोई छिपी हुई जगह या कक्ष नहीं थी। एएसआई ने यह भी कहा है कि ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर) सर्वेक्षण के आधार पर इसकी पुष्टि की गई है।
पोस्ट में कहा गया है कि रत्न भंडार या खजाना दो भागों में विभाजित है- 'भितारा' रत्न भंडार और 'बहारा' भंडार एक लोहे के गेट से अलग होते हैं, जो कि बाहर से बंद होता है।
इसमें यह भी कहा गया है कि दोनों कक्षों का निरीक्षण करने के बाद, यह पता लगाने के लिए जीपीआर सर्वेक्षण करने का निर्णय लिया गया कि क्या दीवारों के अंदर या फर्श के नीचे कोई छिपा हुआ कक्ष या शेल्फ है।
एएसआई ने आगे कहा है कि सितंबर 2024 में किए गए जीपीआर सर्वेक्षण की रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि कोई छिपी हुई जगह नहीं है।
रिपोर्ट के बाद, 17 दिसंबर 2024 को संरक्षण का काम शुरू हुआ। इसकी शुरुआत भितारा और बहारा भंडारा दोनों में मचान बनाकर की गई थी।
एएसआई ने बताया कि रत्न भंडार मंदिर के जगमोहन या सभा हॉल के उत्तरी प्रवेश द्वार से जुड़ा हुआ है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा है कि खोंडालाइट पत्थर से निर्मित रत्न भंडार का उद्देश्य भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और श्री सुदर्शन की बहुमूल्य वस्तुओं को रखना था।
रत्न भंडार में संरक्षण कार्य दो चरणों में किया गया, 17 दिसंबर 2024 से 28 अप्रैल 2025 तक तथा 28 जून से 7 जुलाई तक।
इसके एक भाग के रूप में एएसआई टीम ने संरचना का आकलन करने के लिए आंतरिक छत, कॉर्बल्स, आलों, दीवारों और बाहरी अग्रभाग का प्लास्टर हटाने का कार्य किया है।
इसके साथ ही क्षतिग्रस्त पत्थर और ढीले जोड़ भी पाए गए थे। जोड़ों को सील कर दिया गया और फिर अंदर और बाहर दोनों जगह रासायनों से सफाई की गई है।
क्षतिग्रस्त पत्थर के टुकड़ों को मूल प्रोफाइल से मेल खाते नए खोंडालाइट ब्लॉकों से बदल दिया गया। सभी कॉर्बेल पत्थरों की जांच की गई और आवश्यकतानुसार उन्हें बदल दिया गया।
एजेंसी ने बताया कि आलों में जंग से क्षतिग्रस्त लोहे के बीमों को भी स्टेनलेस स्टील बॉक्स बीमों से बदल दिया गया है तथा विभिन्न स्थानों पर ग्राउटिंग का काम किया गया है।
रत्न भंडार के फर्श को भी बलुआ पत्थर की जगह पर ग्रेनाइट पत्थर से बदल दिया गया, जिससे जल निकासी के लिए ढलान और दरवाजे ठीक से खुलने-बंद होने लगे हैं। भीतरी लोहे की ग्रिल वाले गेट को भी रासायनों से साफ किया गया और सुनहरे रंग से रंगा गया है।
रत्न भंडार का आंतरिक कक्ष 46 वर्षों के बाद पिछले वर्ष 14 जुलाई को मरम्मत कार्य और सूची तैयार करने के लिए खोला गया था।
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