Odisha News: केंद्रापाड़ा में प्रवासी पक्षियों का बसेरा, उजाड़ भूमि बनी आशियाना
ओडिशा के केंद्रापाड़ा जिले में उजाड़ भूमि प्रवासी पक्षियों के लिए रात बिताने का ठिकाना बन गई है। यह क्षेत्र पक्षियों के लिए एक नया आशियाना बनकर उभरा है ...और पढ़ें

उजाड़ भूमि बना पक्षियों का आशियाना। फोटो जागरण
संतोष कुमार पांडेय, अनुगुल। वर्षों तक उपेक्षित और बेकार पड़ा रहा वेटलैंड आज सर्दियों में प्रकृति की अनोखी तस्वीर पेश कर रहा है। केंद्रापाड़ा जिले के राजनगर वन प्रभाग अंतर्गत गहिरमाथा वन क्षेत्र में स्थित यह वेटलैंड अब प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा ठिकाना बन गया है।
हर साल ठंड शुरू होते ही दूर-दराज के ठंडे देशों से हजारों की संख्या में जलपक्षी यहां पहुंचते हैं और कई महीनों तक यहीं डेरा जमाए रहते हैं। यह वेटलैंड वर्ष 1990 के दशक में ओड़िशा राज्य मत्स्य विभाग और विश्व बैंक की संयुक्त योजना के तहत विकसित किया गया था।
लगभग 500 हेक्टेयर वन भूमि में बड़े पैमाने पर तालाब बनाए गए थे, ताकि मछली पालन को बढ़ावा दिया जा सके, लेकिन 1999 में आए विनाशकारी सुपर साइक्लोन के बाद यह परियोजना पूरी तरह ठप हो गई। तालाबों की देखभाल बंद हो गई और धीरे-धीरे यह इलाका वीरान हो गया। समय बीतने के साथ इन तालाबों में बारिश का पानी जमा होने लगा।
प्राकृतिक रूप से जलीय घास, काई और छोटे जीव विकसित हुए। मछलियां, केकड़े, घोंघे और अन्य जलीय जीव बढ़ने लगे। यही प्राकृतिक भोजन प्रवासी पक्षियों को यहां खींच लाया। आज यह परित्यक्त वेटलैंड उनके लिए सुरक्षित आश्रय स्थल बन चुका है।
प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा
वन अधिकारियों के अनुसार, इस क्षेत्र में बार-हेडेड गीज, रुड्डी शेल्डक, नॉर्दर्न पिंटेल, शॉवेलर, गैडवाल, स्टिल्ट, सैंडपाइपर सहित कई प्रजातियों के जलपक्षी देखे जा रहे हैं। ये पक्षी दिन में तालाबों में भोजन करते हैं और शाम के समय झुंड बनाकर उड़ते हुए पास के मैंग्रोव और कैसुएरिना वनों में चले जाते हैं, जहां वे रात बिताते हैं। सुबह होते ही फिर तालाबों की ओर लौट आते हैं।
गहिरमाथा के अलावा हुकीतोला, लुंचघोला, बातीघर, मलाडी, हेटा मुंडिया, कंदरा और तांडा कैसुएरिना वन क्षेत्र भी इन दिनों प्रवासी और स्थानीय पक्षियों से भरे हुए हैं। पक्षियों की चहचहाहट और उड़ानें पूरे इलाके को जीवंत बना देती हैं। स्थानीय लोग भी सुबह-शाम इस दृश्य को देखने पहुंचते हैं।
महत्वपूर्ण पक्षी स्थल के रूप में विकसित होने की संभावना
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस वेटलैंड को संरक्षित किया जाए तो यह एक महत्वपूर्ण पक्षी स्थल के रूप में विकसित हो सकता है। हालांकि अवैध शिकार और जहर डालकर मछली पकड़ने जैसी गतिविधियां पक्षियों के लिए खतरा बन सकती हैं। इसे देखते हुए सामाजिक संगठनों ने प्रशासन से सुरक्षा बढ़ाने की मांग की है।
राजनगर वन प्रभाग के अधिकारियों ने बताया कि क्षेत्र में गश्त बढ़ाई गई है और स्थानीय ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है। लोगों से अपील की जा रही है कि वे पक्षियों को नुकसान न पहुंचाएं और इस प्राकृतिक धरोहर को बचाने में सहयोग करें।
कभी बेकार और उजाड़ माना जाने वाला यह वेटलैंड आज यह साबित कर रहा है कि यदि प्रकृति को समय और संरक्षण मिले, तो वह खुद को फिर से संवार लेती है। प्रवासी पक्षियों की मौजूदगी ने न केवल इलाके की पहचान बदली है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया है।

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