Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    दूसरी जाति में शादी की सजा: बुजुर्ग के शव को पड़ोसियों ने नहीं लगाया हाथ, आखिरकार इन चार कंधों ने मिला सहारा

    Odisha News 80 साल के साधु बाग का निधन हो जाने पर किसी ने उसके शव को हाथ तक नहीं लगाया। कसूर इतना था कि उसने दूसरी जाति में शादी की थी। उसकी पहली शादी उकिया बाग से सामाजिक रीति-रिवाज से हुई थी बाद में साधु ने बिंझल जाति की हाड बरिहा नाम की महिला से प्रेम विवाह कर लिया था। इसी की सजा उसे ताउम्र मिली।

    By Sheshnath RaiEdited By: Arijita SenUpdated: Thu, 14 Sep 2023 01:28 PM (IST)
    Hero Image
    शव को अंतिम संस्‍कार के लिए ले जाते सामाजिक कार्यकर्ता।

    जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर। Odisha News: हिंदुस्तान चांद पर पहुंच गया है और अब सूर्य पर जाने की तैयारी कर रहा है, बावजूद इसके देश एवं प्रदेश में आज भी जातिगत भेदभाव बदस्तूर जारी है। एक जाति से दूसरी जाति में शादी करने पर कहीं लोग उस व्यक्ति एवं परिवार को गांव से निकाल देते हैं, तो कहीं उस परिवार के साथ सामूहिक रूप से खान-पान बंद कर देते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शव को किसी ने भी नहीं लगाया हाथ

    ओडिशा से एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसकी चर्चा पूरे प्रदेश में हो रही है। दूसरी जाति में शादी करने वाले एक व्यक्ति की मृत्यु होने के बाद पड़ोसी ग्रामीणों ने उसके शव को हाथ नहीं लगाया, जिससे शव घर के बाहर चार घंटे तक पड़ा रहा। सूचना मिलने पर कुछ सामाजिक कार्यकर्ता सामने आए और शव को कंधा देकर श्मशान घाट ले गए।

    दूसरी जाति में शादी की मिली सजा

    जानकारी के मुताबिक, यह घटना ओडिशा के बलांगीर जिले के पटनागढ़ प्रखंड के मरुआं पंचायत के गंजाभडार गांव की है।

    ग्रामीण साधु बाग की शादी पहले उकिया बाग से सामाजिक रीति-रिवाज से हुई थी, बाद में उन्होंने बिंझल जाति की हाड बरिहा नाम की महिला से प्रेम विवाह कर लिया था।

    यह भी पढ़ें: किराए के कमरे में जिस्‍मफरोशी का गंदा खेल, कॉन्‍ट्रैक्‍ट पर बुलाई जाती लड़कियां, संबलपुर पुलिस का बड़ा खुलासा

    पिता को कंधा देने बेटा भी नहीं पहुंचा

    नतीजतन, उनके परिवार को जातिभाई द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। साधु अपनी दो पत्नियों और बच्चों के साथ रहता था। साधु का बुधवार को 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया।

    यह बात सामने आने के बाद भी जाति विरादरी से कोई भी व्यक्ति उनके पास नहीं आया। यहां तक कि बलांगीर में रहने वाला उनका बेटा भी नहीं पहुंचा है।

    आखिर में ऐसे हुआ अंतिम संस्‍कार

    शव के पास केवल दो पत्नियां और बेटियां मौजूद थीं। ऐसे में शव घर के बाहर पड़ा रहा क्योंकि कोई कंधा देने वाला नहीं मिल रहा था।

    यह खबर आने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता सुनील सिंह, गिरिधारी भोई, रंजीत साहू, बिकास साहू, मंटू बिशी सहित अन्य लोग गंजाभडार गांव पहुंचे और शव को कंधे पर लेकर गांव के श्मशान घाट पहुंचे और अंतिम संस्कार किया।

    यह भी पढ़ें: ओडिशा में लगातार छठवें वर्ष नहीं होगा छात्र संसद चुनाव, युवा संगठनों में दरार नहीं पैदा करना चाहती बीजद