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    Jagannath Puri Rath Yatra 2021: जानिए क्यों निकाली जाती है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, क्या है खासियत

    By Sachin Kumar MishraEdited By:
    Updated: Sun, 04 Jul 2021 03:12 PM (IST)

    Jagannath Puri Rath Yatra 2021 इस बार 12 जुलाई को पुरी में रथयात्रा का आयोजन प्रस्तावित है। इस साल भी यह कोविड के नियमों को ध्यान में रखकर ही संपन्न होगा। रथयात्रा से पूर्व महाप्रभु बीमार चल रहे हैं क्योंकि उन्हें 108 घड़ों के जल से स्नान कराया गया।

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    जानिए क्यों निकाली जाती है भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, क्या है खासियत। फाइल फोटो

    भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। सदियों पूर्व जब कोरोना नाम की बीमारी नहीं थी, तब बुखार होने पर 14 दिनों के क्वारंटाइन और पौष्टिक खानपान जैसी सावधानी बरतने का संदेश महाप्रभु जगन्नाथ दे चुके हैं। उनसे जुड़ी कहानी में इसकी बानगी देखी जा सकती है। कहानी यह है कि महाप्रभु जगन्नाथ ने जैसे ही देव स्नान पूर्णिमा को ठंडे पानी से स्नान किया, तो वे बीमार पड़ गए। बुखार से तपने लगे। तब उन्होंने 14 दिनों के लिए एकांतवास (क्वारंटाइन) का निर्णय लिया। इस दौरान वह जड़ी-बूटियों का सेवन करने लगे। वे 14वें दिन पूरी तरह स्वस्थ होकर 15वें दिन सबके सामने आए। आज भी ओडिशा के पुरी में हर साल जो भव्य रथयात्रा का आयोजन होता है, उसके दौरान महाप्रभु जगन्नाथजी की वही कहानी दोहराई जाती है।

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    पुरी की रथयात्रा

    कोरोना संक्रमण के दौर में यह कहानी और भी प्रासंगिक हो जाती है। इस बार 12 जुलाई को पुरी में रथयात्रा का आयोजन प्रस्तावित है। इस साल भी यह कोविड के नियमों को ध्यान में रखकर ही संपन्न होगा। इस बार भी रथयात्रा से पूर्व महाप्रभु बीमार चल रहे हैं, क्योंकि उन्हें 108 घड़ों के जल से स्नान कराया गया है। जगन्नाथ जी को 35 स्वर्ण कलश शीतल जल, उनके बड़े भाई बलभद्रजी को 33 स्वर्णकलश, 22 स्वर्ण कलश से बहन सुभद्राजी तथा 18 स्वर्ण कलश शीतल जल से सुदर्शनजी को स्नान कराया गया है। इस कारण सभी बीमार हैं। श्रीमंदिर के बीमार कक्ष में क्वारंटाइन यानी एकांतवास में हैं। उनका आयुर्वेदसम्मत उपचार किया जा रहा है। पुरी जगन्नाथ मंदिर का कपाट दर्शन के लिए बंद है। 14 दिन की अवधि पूर्ण कर जब सभी स्वस्थ होंगे तो 15वें दिन यानी 12 जुलाई को वे रथ पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देंगे।

    बदल गया रथयात्रा का स्वरूप

    पुरी को जगन्नाथ धाम कहा जाता है। हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि में विष्णु के दशावतारों में से एक महाप्रभु जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथयात्रा निकाली जाती है। इस दिन अपने भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा एवं सुदर्शन के साथ तीन अलग-अलग रथों पर सवार होकर जगन्नाथ महाप्रभु मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाते हैं। इस यात्रा में भक्त रथ की रस्सी खींचने को लालायित रहते हैं। कोरोना संक्रमण के कारण पिछले वर्ष से रथयात्रा का स्वरूप बदल गया है। बिना भक्तों के ही रथयात्रा निकाली जा रही है। इस बार भी ऐसा ही होगा। हालांकि, ओडिशा सरकार ने टीवी जैसे संचार माध्यमों से महाप्रभु के दर्शन की व्यवस्था कर रखी है।

    भोई सेवक करते हैं तीनों रथों का निर्माण

    प्रतिवर्ष भोई सेवक तीनों नये रथ बनाते हैं। पुराने रथों को तोड़ दिया जाता है। रथों के निर्माण के लिए हर वर्ष वसंत पंचमी से लकड़ी संग्रह का काम दशपल्ला के जंगलों में शुरू हो जाता है। रथ निर्माण का कार्य वंश परंपरानुसार भोई सेवायतगण अर्थात श्रीमंदिर से जुड़े बढ़ई ही करते हैं। कुल 205 सेवायत इसमें सहयोग करते हैं। जिस प्रकार पांच तत्वों के योग से मानव शरीर का निर्माण हुआ है, उसी प्रकार पांच तत्वों काष्ठ, धातु, रंग, परिधान तथा सजावटी सामग्री के योग से इन रथों का निर्माण होता है। यह रथयात्रा घोष यात्रा, गुंडिचा यात्रा, पतित-पावन यात्रा, जनकपुरी यात्रा, नवदिवसीय यात्रा तथा दशावतार यात्रा के नाम से चर्चित है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ कलियुग के एकमात्र पूर्णदारुब्रह्म हैं। उन्हें भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक माना जाता है। रथ निर्माण का कार्य अक्षय तृतीया (इस बार 15 मई) से आरंभ होता है, जिसमें करीब दो महीने का समय लगता है।