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यहां भूजा चढ़ाने से पूरी होती है मुराद, हर समुदाय के लोग टेकते हैं माथा

Bhujakhia Pir Baba Hindu and Muslim भुजाखिआ पीर बाबा की मजार पर लोग भारी संख्या में आते हैं और मन्नतें मांगते हैं। 24 25 और 26 मार्च को बाबा का तीन दिवसीय 77वां उर्स धूमधाम से कोविड नियम को मानते हुए मनाया जाएगा।

By Babita KashyapEdited By: Published: Wed, 24 Mar 2021 09:52 AM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 09:52 AM (IST)
यहां भूजा चढ़ाने से पूरी होती है मुराद, हर समुदाय के लोग टेकते हैं माथा
सभी धर्म और समुदाय से जुड़े लोग बाबा के पवित्र मजार पर आते हैं और मन्नतें मांगते हैं

बालेश्वर, लावा पांडे। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना इसका एक ज्वलंत उदाहरण बालेश्वर के सुन्हट नामक स्थान पर स्थित भुजाखिआ पीर बाबा के पवित्र मजार पर देखने को मिलता है। यहां पर क्या हिंदू क्या मुसलमान क्या सिख क्या ईसाई सभी धर्म और समुदाय से जुड़े लोग बाबा के पवित्र मजार पर आते हैं और मन्नतें मांगते हैं। माथा टेकते हैं तथा भूजा यानी की मुरमुरे (चावल से बना सूखा आहार) लड्डू खाजा इत्यादि सूखा मीठा का भी प्रसाद चढ़ाकर बाबा का पूजा अर्चना करते हैं।

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 तीन दिवसीय 77 वां उर्स का आयोजन

 शहर के विभिन्न स्थानों से चादर शोभायात्रा निकालकर लोग बाबा के मजार तक पहुंचते हैं तथा यहां पर मन्नते मांगते हैं। चादर चढ़ाते हैं जिसमें हजारों की तादाद में लोग शामिल होते हैं। प्रतिवर्ष मार्च महीने के आखिरी बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को बाबा का उर्स मनाया जाता है। आज से यानी की 24 , 25 और 26 मार्च को बाबा का तीन दिवसीय 77 वां उर्स धूमधाम से मनाया जाएगा लेकिन कोविड नियम को मानते हुए यह उर्स मनाया जाएगा।  

 100 वर्ष पूर्व आये थे बाबा

हिंदू और मुसलमान के एकता के प्रतीक भुजाखिआ पीर बाबा के मजार पर हर जाति के लोग भारी संख्या में आते हैं और मन्नतें मांगते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि बाबा के मजार पर 500 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक का चादर लोग शान से चढ़ाते हैं। करीब 100 वर्ष पूर्व एक बाबा यहां पर आकर रहा करते थे तथा उस वक्त हैजा जैसी महामारी पूरे इलाके में फैल गई थी और लोग उससे मर रहे थे। लेकिन बाबा अपने आशीर्वाद से लोगों को ठीक किया करते थे। क्या हिंदू क्या मुसलमान सभी धर्म और संप्रदाय के लोग बाबा के पास आते थे और हैजा जैसे महामारी से ठीक हो कर जाते थे। जिसके चलते बाबा पूरे इलाके में प्रसिद्ध हो गए। जिसके बाद  भारी तादाद में बाबा के पास लोगों का आना- जाना बढ़ गया।

 इसके बाद से बाबा यही रहते थे और मुढ़ी यानी की भूजा खाकर अपना समय गुजारते थे। आज बाबा के मजार पर केवल ओडिशा के विभिन्न जिलों से नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य राज्यों से भी भारी तादाद में भक्त आते हैं , मन्नते मांगते हैं और भुजा चढ़ाते हैं।  भक्तों का मानना है कि भुजा चढ़ाने से उनकी मुराद पूरी होती है। आज यदि यह कहा जाए कि भुजाखिआ पीर बाबा हिंदू-मुसलमान एकता के प्रतीक हैं तो शायद कम नहीं होगा।


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