ओडिशा में सफल खारे पानी का मगरमच्छ संरक्षण कार्यक्रम चुनौतियों का कर रहा सामनाः रिपोर्ट्स
भारत का खारे पानी का मगरमच्छ संरक्षण कार्यक्रम जो पिछले 48 वर्षों की सफलता की कहानियों में से एक है वह वर्तमान में नई चुनौतियों का सामना कर रहा है। ओडिशा के भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान में बढ़ता संघर्ष संरक्षण प्रबंधन वर्तमान में बहस का सबसे नया मुद्दा है। केज प्रजनन के माध्यम से मगरमच्छ संरक्षण कार्यक्रम भारत में 1974-75 के आसपास उस समय शुरू हुआ था।

संतोष कुमार पांडेय, अनुगुल। भारत का खारे पानी का मगरमच्छ संरक्षण कार्यक्रम, जो पिछले 48 वर्षों की सफलता की कहानियों में से एक है वह वर्तमान में नई चुनौतियों का सामना कर रहा है। केरल और तमिलनाडु से लेकर केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में खारे पानी के मगरमच्छों के स्थानीय विलुप्ति को सूची से हटाने के पिछले प्रस्तावों तक, यह उस बिंदु पर पहुंच गया है जहां वैज्ञानिक प्रबंधन इस पर चर्चा व ध्यान देने की मांग कर रही है।
मगरमच्छ संरक्षण कार्यक्रम 1974-75 में हुआ था शुरू
ओडिशा के भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान में बढ़ता संघर्ष संरक्षण प्रबंधन वर्तमान में बहस का सबसे नया मुद्दा है। एस्टुरीन मगरमच्छों के बढ़ते घनत्व और लगातार बढ़ते मानवजनित दबाव के कारण पिछले वर्ष मगरमच्छों के हमलों में कम से कम 10 मौतें हुई हैं।
केज प्रजनन के माध्यम से मगरमच्छ संरक्षण कार्यक्रम भारत में 1974-75 के आसपास उस समय शुरू हुआ जब अंधाधुंध हत्या और निवास स्थान के नुकसान ने एस्टुरीन मगरमच्छों की आबादी को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा दिया।
भारत सरकार द्वारा संचालित कार्यक्रम ओडिशा में 1975 में यूएनडीपी और खाद्य व कृषि संगठन (एफएओ) के सहयोग से शुरू किया गया था। भितरकनिका को वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित करने सहित अन्य उपायों के साथ, इसने अगले दो दशकों में आबादी के पुनरुद्धार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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अब सामने आ रही नई चुनौतियां
जैसे 1974 में लगभग 96 मगरमच्छों से बढ़कर 1995 में 1,000 मगरमच्छों से अधिक की संख्या पार कर गई तब वन विभाग को प्रजनन कार्यक्रम रोकना पड़ा। हालांकि पहले किए गए सुरक्षा उपाय मगरमच्छों की वृद्धि में सहायक बने रहे और 1,793 की गिनती के साथ, भितरकनिका अब भारत की खारे पानी के मगरमच्छों की लगभग 70% आबादी का घर है। हालांकि, जो मुख्य समस्या सामने आई है वह खारे पानी के मगरमच्छों का घनत्व है जो पहले ही प्रति वर्ग किमी पानी में पाँच से छह मगरमच्छों के घनत्व को पार कर चुका है।
इसने मुख्य व समान रूप से बढ़ती मानवीय गतिविधियों और भारत के एक जीवंत मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र, भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान और उसके आसपास ब्रम्हाणी और खरास्रोता नदियों के साथ-साथ स्थानीय नालों और जल-निकायों पर लोगों की बढ़ती निर्भरता ने नई चुनौतियों को जन्म दिया है।
सीमांत गांवों में अपर्याप्त घरेलू पाइप जल कनेक्शन के साथ-साथ सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवहार के हिस्से के रूप में नदी पर प्राकृतिक निर्भरता से मगरमच्छों की आबादी मानव बस्तियों के पास दिखाई देती है। जवाब में, ओडिशा वन विभाग ने नदी पर निर्भर गांवों में संघर्ष को रोकने के लिए कई जन जागरूकता कार्यक्रम चलाए।
यहां विशेषज्ञों का मानना है कि भितरकनिका में मौजूदा स्थिति स्थायी तरीके से मानव-मगरमच्छ सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करने के लिए उचित हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करती है। ओडिशा के बरहमपुर विश्वविद्यालय के दो शोधकर्ता शेषदेव पात्रो और सुनील कुमार पाढ़ी ने 'भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान, भारत के आसपास खारे पानी के मगरमच्छ और मानव संघर्ष: संरक्षण सीमाओं के निर्धारण के लिए एक बढ़ती चिंता' शीर्षक वाले अपने अध्ययन में रणनीति पर फिर से विचार की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
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संरक्षण नीति पर पुनर्विचार की जरूरत
शोध के अनुसार, परिदृश्य एक खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है जहां हमें इन प्रजातियों की संरक्षण रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा और इन सरीसृपों और उनके आसपास के निवासियों के सह-अस्तित्व के लिए एक उपयुक्त प्रबंधन योजना विकसित करनी होगी।
अध्ययन में लेखकों का कहना है कि मुहाना मगरमच्छों के संरक्षण और प्रबंधन रणनीति में अभयारण्य की वहन क्षमता का निर्धारण, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को कम करना, अतिरिक्त आबादी को अन्य व्यवहार्य स्थलों पर स्थानांतरित करना और स्थानीय जागरूकता शामिल होनी चाहिए।
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के सरीसृप विज्ञानी और वैज्ञानिक प्रत्यूष महापात्रा का मानना है कि जब संघर्ष को रोकने के लिए आवश्यक उपायों की बात आती है तो रणनीतियों को स्थानीय और मामले-विशिष्ट बनाने की आवश्यकता होती है।
उनका कहना है कि इन सरीसृपों के व्यवहार के बारे में जागरूकता बढ़ाना बेहद महत्वपूर्ण है और वे मानव-मगरमच्छ संघर्ष से बचने की योजना बना रहे हैं, लेकिन मगरमच्छों को स्थानांतरित करने के लिए त्वरित प्रतिक्रिया टीमों के निर्माण की आवश्यकता को भी रेखांकित करते हैं। इसके अलावा घनत्व और स्पिलओवर आबादी क्षेत्रों का मानचित्रण करना आवश्यक है। इन टीमों को दो से तीन घंटे के भीतर जवाब देना होगा और बुनियादी ढांचे से लैस होना होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि समय पर हस्तक्षेप बेहद महत्वपूर्ण है अन्यथा यह संरक्षण को प्रभावित कर सकता है जैसा कि दक्षिणी भारतीय राज्यों में हुआ है जहां खारे पानी के मगरमच्छ प्रजातियों की उपस्थिति कम हो गई है।

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