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सुप्रीम कोर्ट की भर्ती पर रोक के कारण ओडिशा में विश्वविद्यालय पर छाया संकट, संस्थानों को नहीं मिल रही राहत

ओडिशा के सरकारी विश्वविद्यालयों में फैकल्टी के 50 फीसदी से ज्यादा पद खाली हैं जबकि ओडिशा विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम 2020 को लेकर राज्य सरकार के उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के बीच झगड़ा जारी है संस्थानों के लिए तत्काल कोई राहत नहीं दिख रही है।

By Jagran NewsEdited By: Versha SinghPublished: Sat, 04 Mar 2023 08:07 AM (IST)Updated: Sat, 04 Mar 2023 08:07 AM (IST)
सुप्रीम कोर्ट की भर्ती पर रोक के कारण ओडिशा में विश्वविद्यालय पर छाया संकट

संतोष कुमार पांडेय, अनुगुल। ओडिशा के सरकारी विश्वविद्यालयों में फैकल्टी के 50 फीसदी से ज्यादा पद खाली हैं जबकि ओडिशा विश्वविद्यालय (संशोधन) अधिनियम, 2020 को लेकर राज्य सरकार के उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के बीच झगड़ा जारी है, संस्थानों के लिए तत्काल कोई राहत नहीं दिख रही है।

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दो नवनिर्मित विश्वविद्यालयों कोरापुट जिले में विक्रम देब, क्योंझर में धरणीधर को छोड़कर राज्य में पंद्रह सार्वजनिक विश्वविद्यालय हैं, जिनमें दो कानून विश्वविद्यालय, एक मुक्त विश्वविद्यालय और एक संस्कृत विश्वविद्यालय शामिल हैं।

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार सरकार ने विश्वविद्यालयों के लिए प्रोफेसरों, सहायक प्रोफेसरों और एसोसिएट प्रोफेसरों के 1,686 पद स्वीकृत किए हैं, लेकिन उनमें से 960 (57 प्रतिशत) पद खाली हैं।

तटीय क्षेत्र में रमा देवी में स्वीकृत 138 में से 77 पद और रावेनशॉ में कुल 267 पदों में 156 पद खाली हैं। मधुसूदन लॉ यूनिवर्सिटी में सिर्फ तीन स्थायी संकाय सदस्य हैं और 45 अतिथि संकाय सदस्यों के साथ कार्य करता है।

दक्षिणी क्षेत्र में, बरहमपुर में 182 में से 89 पद खाली हैं और उत्तरी ओडिशा में, महाराजा श्रीराम चंद्र भंज देव विश्वविद्यालय और फकीर मोहन विश्वविद्यालय में स्वीकृत 115 और 117 पदों के मुकाबले क्रमशः 64 और 43 पद खाली हैं।

पश्चिमी ओडिशा में, संबलपुर विश्वविद्यालय में 153 संकाय पद स्वीकृत हैं, लेकिन 63 पद खाली हैं और गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय में 144 में से 72 पद खाली हैं। कालाहांडी के नए विश्वविद्यालयों में स्थिति और भी खराब है। जबकि राजेंद्र विवि में 126 में से 115 पद खाली हैं।

कालाहांडी विश्वविद्यालय में स्वीकृत 112 में से 108 संकाय पद अब भी खाली हैं और इन दोनों विश्वविद्यालयों में अधिकांश मौजूदा संकाय सदस्यों को अन्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों से तैनात किया गया है।

जेएनयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अजीत मोहंती (जिन्होंने विश्वविद्यालयों के अधिनियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी) ने कहा कि इस चरण को राज्य के विश्वविद्यालयों के लिए सबसे खराब चरणों में से एक कहा जा सकता है।

ओयू (संशोधन) अधिनियम 2020 पर सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश से पहले, यूजीसी ने कई महीनों तक देश भर में फैकल्टी की भर्ती रोक दी थी। जब इसने रोक हटा ली तो ओडिशा सरकार ने विश्वविद्यालयों के अधिनियम में संशोधन किया और केवल ओडिशा लोक सेवा आयोग (ओपीएससी) के माध्यम से भर्ती अभियान शुरू किया, जब यूजीसी ने राज्य में फिर से प्रक्रिया पर रोक लगा दी। जबकि सुप्रीम कोर्ट को इस साल फरवरी में मामले की सुनवाई करनी थी।

इस मामले पर अभी तक कोई अपडेट नहीं आया है। ओड़िशा के उच्च शिक्षा मंत्री रोहित पुजारी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के स्टे हटाने के बाद ही भर्तियां शुरू की जा सकती हैं। वहीं अगर देखें तो नियम कानून के चक्कर मे विद्यार्थियों का भविष्य संकट में है।

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