30 जून को दुनिया के वक्त में जुड़ेगा एक एक्स्ट्रा सेकंड
30 जून को वर्ल्ड क्लॉक में जब 23 बजकर 59 मिनट और 59 सेकंड होंगे तब दुनिया के वक्त में एक नया सेकंड जोड़ दिया जाएगा और इसके बाद 2015 के कुल सेकंड्स 31,536,001 करोड़ हो जाएंगे। इस एक एक्स्ट्रा सेकंड को लीप सेकंड कहा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना
न्यूयॉर्क। 30 जून को वर्ल्ड क्लॉक में जब 23 बजकर 59 मिनट और 59 सेकंड होंगे तब दुनिया के वक्त में एक नया सेकंड जोड़ दिया जाएगा और इसके बाद 2015 के कुल सेकंड्स 31,536,001 करोड़ हो जाएंगे। इस एक एक्स्ट्रा सेकंड को लीप सेकंड कहा जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया के वक्त में इस 1 सेकंड का जोड़ा जाना धरती की धिमी हो रही रफ्तार के लिए जरूरी है।
लेकिन कुछ कम्प्यूटर एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस एक लीप सेकंड की वजह से उन सिस्टम्स पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ेगा जो दुनियाभर में इंटरनेट को पावर देते हैं। एक अंग्रेजी वेबसाइट के अनुसार, वैज्ञानिकों का तर्क है यह एक्स्ट्रा सेकंड इसलिए जरूरी है क्योंकि धरती के घूमने की रफ्तार एक दिन में एक सेकंड के दो हजारवें हिस्से के बराबर कम हो रही है और इसकी रफ्तार को एटोमिक टाइम के अनुसार करना जरूरी है।
एटोमिक टाइम की गणना परमाणु के अंदर होने वाली वाइब्रेशन से आंकी जाती है और इसे सबसे भरोसेमंद माना जाता है क्योंकि परमाणु अत्यंत संगत फ्रिक्वेंसिज पर रीजोनेट करते हैं। इस वजह से लीप सेकंड का उपयोग धरती के घूमने के समय को एटोमिक समय से मिलाए रखने के लिए किया जाता है। यह निर्णय हर बार तब लिया जाता है जब धरती का समय एटोमिक समय से आधा सेकंड पीछे हो जाता है इसलिए इसे कम की बजाय आधा सेकंड बढ़ा दिया जाता है।
नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के डेनियल मैकमिलन के अनुसार, डायनासोर काल में धरती का एक दिन 23 घंटे का होता था लेकिन 1820 में धरती को घूमने के लिए पूरे 24 घंटे लगने लगे। 1820 से मीन सोलर डे 2.5 मिलसेकंड बढ़ गया है। 1972 से लेकर 2015 तक में यह 26वीं बार होगा जब लीप सेकंड जोड़ा जाएगा।
लीप सेकंड जोड़े जाने को लेकर रैकस्पेस के चीफ टेकनोलॉजी ऑफिसर के अनुसार, 'वक्त काफी तेजी से जटिल होता जा रहा है'। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि सभी एक ही तरह से और एक ही वक्त पर समय में लीप सेकंड नहीं जोड़ेगें। कुछ सिस्टम्स में कम्प्यूटर की क्लॉक 1 मिनट की बजाय 60 सेकंड दिखाती है या फिर 59 सेकंड को ही दो बार दिखा देती है। इस वजह से कम्प्यूटर लीप सेकंड को वक्त के पीछे जाने की तरह देखता है और इस वजह से उसमें एरर आती है या फिर सीपीयू ओवरलोड हो जाता है।
2012 में भी ऐसा ही हुआ था जब सब-सिस्टम्स कन्फ्यूज हो गए थे और कुछ सर्वर्स पर हायपरऐक्टिवविटी होने लगी थी। कुछ कंपनियां जिनमें रेडीट, लिंक्डइन और येल्प शामिल हैं के कम्प्यूटर इसके अनुसार खुद को ढाल नहीं पाए थे और क्रैश होने लगे थे। लेकिन इस बार कंपनियों का कहना है कि वो सभी तैयार हैं। वहीं गूगल ने इसका अलग समाधान खोज रखा है। गूगल पिछले साल में फ्रेक्शन ऑफ सेकंड जोड़ देगी जिससे उन्हें लीप सेकंड के लिए सडन जंप नहीं करना पड़ेगा, इसे लीप स्मीयर कहा जाता है।
गूगल के साइट रिलायबलिटी इंजीनियर्स नोआ मैक्सवेल और माइकल रॉथवेल के अनुसार हमारे पास लीप सेकंड से निपटने का एक अच्छा रास्ता है और हम एक सेकंड की पुनरावृत्ति करने की बजाय एक्स्ट्रा सेकंड को स्मीयर कर देंगे।
लेकिन नेटवर्क टाइम प्रोटोकॉल के चीफ मेंटेनर हार्लन स्टेन के अनुसार इस कदम की अपनी अलग समस्याएं होंगी। 30 जून को दोपहर को जो लोग स्मीयर करने वाले हैं वो अपनी घड़ी को आधे सेकंड के लिए बंद कर देगें। इस वजह से जो चीजें प्रीसाइज टाइम पर निर्भर होंगी वो आधे सेकंड के लिए रूक जाएंगी।
कुछ देशों का लीप सेकंड से निपटने का अपना तर्क है। उदाहरण के लिए अमेरिका लीप सेकंड से छुटकारा पाने के लिए वर्ल्ड क्लॉक को सिन्क्रोनाइज किए बिना ही चलने देना चाहता है। हालांकि, इस वजह से भले ही लीप सेकंड से छुटकारा मिल जाएगा लेकिन ऐसे में घड़ी सिन्क्रोनाइजेशन से 2 मीनट या एक घंटे तक आगे या पीछे चलने लगेगी, इस वक्त को बिना किसी भयानक परीणामों के सिस्टम में जोड़ना वर्चुअली संभव नहीं होगा।
लीप सेकंड के बिना सन 2100 तक समय का अंतर तीन मिनट का हो जाएगा वहीं 2700 तक यह आधे घंटे पर पहुंच जाएगा। वहीं ब्रिटेन का मानना है कि लीप सेकंड के लिए कुछ नियम कायदे हों जैसे इसे ग्रीनविच मीन टाइम के समय जोड़ा जाए। यह वो वक्त होता है जब सूर्य ग्रीनविच रेखा से गुजरता है।
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