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    30 साल बाद दुनिया में कहीं नहीं रहेगा ऊर्जा संकट

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    Updated: Fri, 09 Aug 2013 04:18 PM (IST)

    लंदन। दक्षिण फ्रांस में नाभिकीय संलयन के जरिये बड़े पैमाने पर ऊर्जा तैयार करने के लिए विस्तृत वैज्ञानिक प्रयोग जल्द ही इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्पेरिमेंटल रिएक्टर [आइटीइआर] में शुरू होने जा रहे हैं। सूर्य में पैदा होनी वाली ऊर्जा का प्रमुख कारण भी नाभिकीय संलयन ही है। इससे प्राप्त होने वाली ऊर्जा न केवल किफायती है बल्कि पर्यावरण अनुकू

    लंदन। दक्षिण फ्रांस में नाभिकीय संलयन के जरिये बड़े पैमाने पर ऊर्जा तैयार करने के लिए विस्तृत वैज्ञानिक प्रयोग जल्द ही इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्पेरिमेंटल रिएक्टर [आइटीइआर] में शुरू होने जा रहे हैं। सूर्य में पैदा होनी वाली ऊर्जा का प्रमुख कारण भी नाभिकीय संलयन ही है। इससे प्राप्त होने वाली ऊर्जा न केवल किफायती है बल्कि पर्यावरण अनुकूल भी है। साथ ही इससे बेहद कम रेडियोधर्मी कचरा उत्पन्न होता है। ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी नहीं होता है। लेकिन इस प्रक्रिया से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को संभालना बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम है। इसे हासिल करने में अभी तीस साल का समय और लग सकता है।

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    दक्षिण फ्रांस के केडेरेक में शुरू होने वाली इस परियोजना में आइटीइआर में करीब दस लाख उपकरण जोड़े जाएंगे। यह परियोजना चूंकि बेहद खर्चीली है, इसलिए इसके शुरू होने में देरी हो रही है। नाभिकीय संलयन वह प्रक्रिया है, जिसमें दो परमाणु तेज गति से आपस में टकराते हैं और जुड़कर बड़े पैमाने पर ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। आइटीइआर में जहां ये प्रयोग होने हैं, इसके लिए तैयारी की जा रही है। इसका डिजाइन ऑक्सफोर्डशायर के कूलहम यूरोपीय पायलट प्रोजेक्ट जेट की तर्ज पर तैयार किया गया है। इसमें बेहद गर्म गैसों को नियंत्रित करने वाला प्लाज्मा भी शामिल है क्योंकि नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया में तापमान 20 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इसी उच्च तापमान पर ड्यूटेरियम और ट्राइटियम के परमाणु आपस में टकरा कर मिलते हैं और ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। यह पूरी प्रक्रिया एक बड़े चुंबकीय क्षेत्र में होगी, जो एक रिंग के आकार का होगा। इसके लिए 28 चुंबकों को आपस में जोड़ा जा रहा है।

    यूरोपीय यूनियन के कई देशों के अलावा, चीन, भारत, जापान, रूस, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका इस महत्वपूर्ण परियोजना में भागीदार हैं। यूरोपीय यूनियन ने इस प्रयोग के लिए इमारत और आधारभूत ढांचे के निर्माण के लिए धन मुहैया कराया है।

    अनुमान है कि इसमें करीब 13 अरब डॉलर का खर्च आएगा। इस प्रयोग के दौरान खाली चैंबर में मौजूद गैस प्लाज्मा तभी बनेगा, जब रिएक्टर के अंदर का तापमान 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस पहुंच जाएगा। यह तापमान सूर्य के केंद्र के तापमान से दस गुना अधिक है। इस प्रयोग में इस्तेमाल की जाने वाली एक-एक मशीन का वजन 600 टन से अधिक है। शुरुआत में समझा जा रहा था कि इस रिएक्टर में पहला प्लाज्मा वर्ष 2005 तक तैयार हो जाएगा, लेकिन इसमें लगातार देरी को देखते हुए इसकी समय सीमा नवंबर, 2020 रखी गई है।

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