खोजा गया जानवरों से बात करने का तरीका
कैसा हो अगर आप अपने पालतू जानवरों से उनकी खुशी और जरूरतों के बारे में उन्हीं की भाषा में बात कर सकें। स्कॉटलैंड के एक वैज्ञानिक ने ऐसी पद्धति तैयार करने का दावा किया है, जिससे मनुष्य जानवरों से बातचीत कर सकेगा। प्रोफेसर इयान डंकन ने बताया कि उनका उद्देश्य जानवरों से बात करने वाले काल्पनिक चरित्र डॉक्टर डॉलिट्ल की तरह
लंदन। कैसा हो अगर आप अपने पालतू जानवरों से उनकी खुशी और जरूरतों के बारे में उन्हीं की भाषा में बात कर सकें। स्कॉटलैंड के एक वैज्ञानिक ने ऐसी पद्धति तैयार करने का दावा किया है, जिससे मनुष्य जानवरों से बातचीत कर सकेगा।
प्रोफेसर इयान डंकन ने बताया कि उनका उद्देश्य जानवरों से बात करने वाले काल्पनिक चरित्र डॉक्टर डॉलिट्ल की तरह जानवरों से बातचीत करना था लेकिन मेरी पद्धति पूरी तरह वैज्ञानिक है। कनाडा स्थित गूलफ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डंकन ने कहा, 'इस पद्धति के जरिये हम जानवरों से उनकी परेशानी और खुशी के संबंध में सवाल पूछ सकते हैं। सभी प्रजातियों के जानवरों के साथ व्यवहार का तरीका अलग-अलग होता है। लेकिन इस पद्धति के तहत हम जानवरों के सामने उनकी खुशियों और परेशानियों के संबंध में कई विकल्प पेश कर सकते हैं। अगर जानवर बार बार एक ही विकल्प को चुनता है तो इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि वे क्या चाहते हैं।' उन्होंने कहा कि वह काफी वर्षो के परीक्षण के बाद अपनी पद्धति को सार्वजनिक करने के लिए तैयार हैं। वह 'साइंस ऑफ एनिमल थिंकिंग एंड इमोशन' शीर्षक से वाशिंगटन में आयोजित होने वाली एक कांफ्रेंस में अपनी इस खोज को पेश करेंगे।
इसलिए किसी शख्स को बार बार काटते हैं मच्छर
न्यूयॉर्क। क्या आपने कभी गौर किया कि एक मच्छर अन्य की तुलना में किसी एक व्यक्ति को क्यों बार-बार काटता है। दरअसल शरीर से निकलने वाली एक खास गंध मच्छरों को ज्यादा आकर्षित करते हैं।
रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कार्बन डाई ऑक्साइड, शरीर की ऊष्मा और शरीर की गंध जैसे विभिन्न संवेदी संकेतों की आपसी क्रिया का अध्ययन किया। उन्होंने जीनोम तकनीक की मदद से पीला बुखार (येलो फीवर) फैलाने वाले एडीज एजिप्टी प्रजाति के ऐसे म्यूटेंट मच्छरों का इस्तेमाल किया जिसमें जीआर3 नाम की एक विशेष जीन को हटा दिया गया था। जीआर3 के बिना मच्छर कार्बनडाइ ऑक्साइड गैस को पहचान नहीं पाते।
शोध के दौरान शोधकर्ताओं ने एक कमरे में मनुष्य की त्वचा के तापमान वाली एक इलेक्ट्रिक प्लेट की ओर इन मच्छरों के व्यवहार का अध्ययन किया। सामान्य मच्छर इस प्लेट की तरफ तब तक आकर्षित नहीं हुआ जब तक की उसमें से कार्बन डाई ऑक्साइड नहीं निकलने लगी। जबकि म्युटेंट मच्छर इस प्लेट की तरफ टूट पड़े। शोधकर्ताओं की टीम ने मनुष्य की श्वास और त्वचा की गंध में पाए जाने वाले लेक्टिक अम्ल और कार्बन डाई ऑक्साइड के संबंधों का भी अध्ययन किया।
प्रमुख शोधकर्ता कॉनोर मैकमेनिमैन ने कहा, यह स्पष्ट हो गया है कि बिना कार्बन डाई ऑक्साइड के शरीर की गंध और ऊष्मा का प्रभाव किसी भी कीट पतंगे पर कम हो जाता है। वह मनुष्य से दूर चले जाते हैं।
अब झूठ को पकड़ेगा सॉफ्टवेयर!
लंदन। अब झूठ बोलने वालों की खैर नहीं। वैज्ञानिकों ने एक ऐसी कृत्रिम खुफिया प्रणाली विकसित की है जो लिखित या मौखिक गवाही के दौरान झूठ को सटीकता से पकड़ लेगी। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह सॉफ्टवेयर पुस्तकों की नकली ऑनलाइन समीक्षा की भी पहचान कर लेगा।
ब्रिटेन के कोलचेस्टर में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एसेक्स के भाषाविद् मैसिमो पोएसियो और इटली के ट्रेंटो में स्थितसेंटर फॉर माइंड/ब्रेन साइंस के थोमासो फार्नसिएरी ने इस प्रणाली को विकसित किया है। प्रणाली को स्टाइलोमेट्री तकनीक की मदद से विकसित किया गया है जो इस बात की गणना करता है कि कोई खास शब्द किसी पैराग्राफ में कितनी बार आया है। न्यू साइंटिस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक उपलब्ध तकनीक से इस बात का पता लगाया जाता है कि किसी खास टुकड़े को किसने लिखा है, लेकिन यह सॉफ्टवेयर पता लगाएगा कि इसमें लिखी गई चीजें सच हैं या झूठ।
सॉफ्टवेयर झूठ को सटीकता से पकड़ लेता है यह सुनिश्चित करने के लिए मैसिमो और थोमासो ने इसमें इटली कीअदालत में दिए गए उन गवाहों के बयानों को फीड किया, जिसके बारे में माना जाता है कि उन्होंने झूठी गवाही दी। शोधकर्ताओं ने कहा कि बचाव पक्ष या गवाह झूठ बोल रहे हैं, सॉफ्टवेयर ने इसके संकेत 75 प्रतिशत बिल्कुल सटीक दिए।
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