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'ग्रेटर साउथ एशिया' के जरिए भारत का वर्चस्‍व कम करने में जुटा पाक

सार्क में भारत के वर्चस्‍व को कम करने के लिए पाक अब ग्रेटर साउथ एशिया के ख्‍वाब को हकीकत में बदलना चाहता है। हालांकि वह यह भी जानता है कि इस क्षेत्र में भारत की स्थिति बेहद मजबूत है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 12 Oct 2016 12:37 PM (IST)Updated: Wed, 12 Oct 2016 07:31 PM (IST)
'ग्रेटर साउथ एशिया' के जरिए भारत का वर्चस्‍व कम करने में जुटा पाक

इस्लामाबाद। सार्क सम्मेलन काेे लेकर अलग-थलग पड़ेे पाकिस्तान ने अब भारत को साधने के लिए इसमें नए देशों को जोड़ने की कवायद कर रहा है। ग्रेटर साउथ एशिया के तहत वह इस काम को अंजाम देने में भी जुट गया है। पाकिस्तानी अखबार डॉन के मुताबिक न्यूयॉर्क में मौजूद पाकिस्तान के एक संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने अपने पांच दिवसीय वॉशिंगटन दौरे में इस तरह के विचार सामने रखेे हैं। पाकिस्तान के इस ग्रेटर साउथ एशिया में चीन, ईरान और पड़ोसी मध्य एशियाई देश शामिल हैं।

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पाक-चीन कॉरिडोर को बताया अहम

पाक सांसद मुशाहिद हुसैन सैयद ने चाइना-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर को साउथ एशिया और सेंट्रल एशिया को जोड़ने वाला अहम आर्थिक रूट करार दिया। उन्होंने कहा कि ग्वादर पोर्ट चीन और कई सेंट्रल एशियाई देशों के लिए सबसे नजदीकी गर्म पानी वाला बंदरगाह है। भीषण सर्दी में भी न जम पाने की वजह से इसका भौगोलिक महत्व बेहद अहम हो जाता है। इस दौरान उन्होंने भारत से भी इसमें जुड़ने की अपील की है।

अन्य देशों से रिश्ते बेहद मजबूत

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, सार्क के सदस्य आठ देशों में अफगानिस्तान और बांग्लादेश के साथ भारत के मजबूत रिश्ते हैं। वहीं, भूटान सभी तरफ से भारत से घिरा ऐसा देश है जो भारत का विरोध करने की स्थिति में नहीं है। अखबार के आकलन के मुताबिक मालदीव्स, नेपाल और श्रीलंका के पाकिस्तान से अच्छे रिश्ते हैं, लेकिन वे इतने बड़े नहीं कि भारत का विरोध कर सकें।

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पाक तलाश रहा नए समीकरण

अखबार ने एक वरिष्ठ डिप्लोमैट के हवाले से बताया है कि पाकिस्तान बेहद सक्रियता के साथ नए क्षेत्रीय गठजोड़ की संभावनाएं तलाश रहा है। उनके मुताबिक, पाकिस्तान मानता है कि सार्क में भारत का हमेशा दबदबा रहेगा, इसलिए पाकिस्तान ग्रेटर साउथ एशिया के बारे में सोच रहा है। पाकिस्तान को लगता है कि नई व्यवस्था की वजह से भारत अपने फैसले आगे से उस पर थोप नहीं पाएगा। अखबार के मुताबिक चीन भी भारत के बढ़ते प्रभाव से चिंतित जरूर है लिहाजा इस प्रस्तावित व्यवस्था से चीन को कोई आपत्ति नहीं होगी। वह नई व्यवस्था से ईरान और मध्य एशियाई देशों के जुड़ने में अहम भूमिका निभा सकता है।

ग्रेटर साउथ एशिया की राह मुश्किल

हालांकि, एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि सार्क के वर्तमान सदस्य इस आइडिया का शायद ही समर्थन करें। अपनी सीमाओं से दूर जमीनी रूट से जुड़ने में बांग्लादेश, नेपाल या श्रीलंका को कोई खास दिलचस्पी नहीं होगी। बांग्लादेश और श्रीलंका के खुद के बंदरगाह हैं। नई व्यवस्था से अफगानिस्तान को फायदा है, लेकिन उसके भारत से बेहतर रिश्तों को देखते हुए यह मानना मुश्किल है कि वह पाकिस्तान के आइडिया को सपोर्ट करेगा। अखबार ने एक अन्य डिप्लोमेट के हवाले से लिखा है कि अगर पाक के ग्रेटर साउथ एशिया का सपना पूरा हो भी जाता है तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि नए देश पाकिस्तान का भारत के साथ विरोधों को लेकर उसका साथ देंगे। क्योंकिे ईरान जैसे देश खुद पाकिस्तान से नाराज हैं।

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सार्क में पाक को मुंह की खानी पड़ी

गौरतलब है कि पिछले माह पाकिस्तान में होने वाली 19वीं सार्क बैठक में भारत समेत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और भूटान जैसे देशों इसमें शामिल होने से मना कर दिया था। जिसके चलते इसको रद करना पड़ा था। इसके चलते अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में लगातार उसको मुंह की खानी पड़ी है।

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