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    झूंपा लाहिड़ी बुकर की दौड़ में बरकरार

    भारतीय मूल की अमेरिकी लेखिका झूंपा लाहिड़ी इस साल के बुकर पुरस्कारों की दौड़ में और आगे बढ़ गई हैं। जुलाई में चयनित उपन्यासों की सूची में अंतिम 13 में स्थान बनाने वाला उनका उपन्यास 'द लोलैंड' अंतिम छह में स्थान बनाने में सफल रहा है। अगले महीने 15 अक्टूबर को लंदन में इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की घोषणा की जाएगी।

    By Edited By: Updated: Tue, 10 Sep 2013 10:04 PM (IST)

    लंदन। भारतीय मूल की अमेरिकी लेखिका झूंपा लाहिड़ी इस साल के बुकर पुरस्कारों की दौड़ में और आगे बढ़ गई हैं। जुलाई में चयनित उपन्यासों की सूची में अंतिम 13 में स्थान बनाने वाला उनका उपन्यास 'द लोलैंड' अंतिम छह में स्थान बनाने में सफल रहा है। अगले महीने 15 अक्टूबर को लंदन में इस प्रतिष्ठित पुरस्कार की घोषणा की जाएगी।

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    गौरतलब है कि पिछले साल हिलेरी मैनेटल की पुस्तक 'ब्रिंग अप द बॉडीज' ने खिताब जीता था। 'द व्हाइट टाइगर' के लिए भारतीय लेखक अरविंद अडिग 2008 में यह पुरस्कार जीत चुके हैं।

    'द लोलैंड' कोलकाता के दो भाइयों की कहानी पर आधारित है। बुकर पुरस्कार जीतने वाले लेखक को 50 हजार पौंड (करीब 45 लाख रुपये) दिए जाएंगे। 1967 में लंदन में जन्मीं और अमेरिका के न्यूयॉर्क में रह रहीं लाहिड़ी के माता-पिता पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे। लंदन के साहित्यिक हलकों में लाहिड़ी का उपन्यास चर्चा में है। बर्मिघम के जिम क्रेस का उपन्यास 'हार्वेस्ट' भी 2013 के बुकर की दौड़ में है। लाहिड़ी को वर्ष 2000 में पुलित्जर पुरस्कार भी मिल चुका है। उनका पहला उपन्यास नेमसेक भी चर्चित रहा था और मीरा नायर ने इसी नाम से फिल्म भी बनाई थी।

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