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    अब पता चल जाएगा कितनी है पौधों की प्यास, किसान जरूरत के अनुसार दें सकेंगे पानी

    By AbhishekEdited By:
    Updated: Thu, 20 Feb 2020 09:49 AM (IST)

    आइआइटी और यूके की लीसेस्टर विवि के शोध से भारत के किसान खुशहाल होंगे।

    अब पता चल जाएगा कितनी है पौधों की प्यास, किसान जरूरत के अनुसार दें सकेंगे पानी

    कानपुर, जेएनएन। आइआइटी कानपुर और यूके की लीसेस्टर यूनिवर्सिटी का शोध किसानों के लिए खुशहाली का रास्ता साबित हो सकता है। इसमें उन्होंने न सिर्फ बेवजह पानी की बर्बादी रोकने का तरीका बताया है, बल्कि पौधों की प्यास की सटीक जानकारी दी है। रिसर्च और आंकड़े कृषि विभाग को दिए जाएंगे। आइआइटी के आउटरीच सभागार में रिसर्च को लेकर विभिन्न तकनीकी संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए।

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    बेवजह सिंचाई में नहीं बर्बाद होगा पानी

    आइआइटी के प्रो. नीरज सिन्हा ने बताया कि ये आंकड़े बहुत काम के हैं। इससे पता चल जाएगा कि कौन सी फसल को किस समय पानी की जरूरत है। ऐसे में बेवजह सिंचाई नहीं करनी पड़ेगी और पानी की बर्बादी रुकेगी। आंकड़े दूसरे राज्यों के अलग हो सकते हैं, फिलहाल बड़े स्तर पर शोध की जरूरत है।

    पौधों की प्यास की हुई जानकारी

    बनी और बनसिटी गांव में आइआइटी और लीसेस्टर यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों ने दो साल से अधिक समय तक शोध किया। थर्मल सेंसर कैमरे युक्त ड्रोन से पौधों के अंदर की गर्मी देखी। उन्हें पानी दिया गया। फिर से मॉनीटङ्क्षरग की तो थर्मल इमेजिंग में अंतर नजर आया। यह प्रक्रिया अलग अलग मौसम के अनुरूप की गई।

    इसरो के साथ होगा काम

    आइआइटी और यूके की लीसेस्टर यूनिवर्सिटी फसलों के हर दिन का बढऩा, फल देना या फिर सूख जाने के कारणों पर नजर रख सकेंगे। यह शोध भविष्य में पानी की उपलब्धता को देखते हुए किया जा रहा है। विशेषज्ञ पानी की अधिकता और कमी से फसलों पर पडऩे वाले असर को परखेंगे। इसके लिए गांवों में थर्मल इमेजिंग मॉनीटङ्क्षरग सेंसर लगाए गए हैं, जो देखेंगे की पौधों को कितनी प्यास है। आइआइटी के विशेषज्ञ पानी की उपलब्धता और फसलों की आवश्कता को लेकर इसरो के साथ काम करेंगे। यह शोध कई शहरों में होगा। जल्द ही दोनों संस्थानों के बीच करार किया जाएगा।

    वैज्ञानिकों ने बताईं ये बातें

    टेरी से आए डॉ. सुमित शर्मा ने बताया कि पराली के जलाने से हो रहे प्रदूषण को रोकने की तैयारी है। किसानों को जागरूक किया जा रहा है। स्पेस एप्लीकेशन सेंटर से आए डॉ. सत्यमूर्ति ने बताया कि भूगर्भ जल, तालाब, नदियों की जियोलॉजिकल मैपिंग की जा रही है। उनकी ऑनलाइन मॉनीटङ्क्षरग होगी। यूके की यूनिवर्सिटी के प्रो. डैरेन ग्रैंट ने भविष्य की योजनाओं की जानकारी दी।

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