ब्रज के संत ने तलहटी में झाडू लगाते हुए बिता दिया जीवन
ब्रजसंत पं. गयाप्रसाद की 12 ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, हाथरस : ब्रज संत शिरोमणि पं. गया प्रसाद की कृष्ण कन्हैया से अलौकिक भक्ति की कलयुग में शायद ही कोई मिसाल हो। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 65 साल गिरिराज की तलहटी में झाड़ू लगाते हुए गुजार दिए। इस दौरान उनके मुख से नटखट नंदलाल के हठीले अंदाज का जिक्र सुन लोग भावविह्वल हो जाते थे।
जीवन परिचय : फतेहपुर जनपद के गांव कल्याणीपुर के रामाधीन मिश्र के घर कार्तिक शुक्ल पष्ठी वर्ष 1892 में ज्येष्ठ पुत्र के रूप में जन्मे पं. गया प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। फिर विद्या अध्ययन के लिए फतेहपुर के गांव एकडला में अपनी मौसी के घर चले गए। वहां वेद शास्त्रों में पारंगत पं. गौरी दत्त त्रिपाठी से उन्होंने यज्ञोपवीत व गायत्री मंत्र की दीक्षा ली। उनसे ही व्याकरण, संस्कृत साहित्य, ज्योतिष, कोष, कर्मकांड आदि का ज्ञान अर्जित किया। इस दौरान उनके पिता परिस्थितिवश जीविकोपार्जन के लिए परिवार को लेकर हाथरस आ बसे।
त्याग की प्रतिमूर्ति :
पं.गया प्रसाद में हाथरस आने के बाद भी ज्ञान की ललक थी। उन्होंने यहां आचार्य पं. दीनानाथ के सानिध्य में शास्त्रों का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने शहर में श्रीमद भागवत कथा का वाचन शुरू कर दिया। जागेश्वर पहुंचकर पं. गया प्रसाद ने कथा की दक्षिणा लेना बंद कर दिया। शरीर पर एक मारकीन की धोती और अंगोछा ही उनकी शोभा बन गए। नंगे पैर, नंगे सिर, गर्मी, जाड़ा या बरसात में एक ही बाना धारण करने का संकल्प ले लिया। सोने के लिए उन्होंने धरती चुनी।
जीवन में परिवर्तन : वृंदावन से लाडली शरण की रास मंडली शहर में उस दौरान आई थी। पंडित जी के परम मित्र पं. जनार्दन चतुर्वेदी के मंदिर में रासलीला हुई। पंडित जी उसे देखने के लिए गए। वहां भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप ने अपने कंठ की माला उतारकर पंडित जी के गले में डाल दी। यहीं से पंडित जी के जीवन में परिवर्तन आया। पंडित जी उस रात सोए नहीं। पूरी रात रोते व्यतीत हुई। जब रास मंडली वृंदावन लौट गई तो पंडित जी भी वहीं पहुंच गए। रास मंडली वहां से नाथद्वारा (राजस्थान) गई तो पंडित जी भी साथ गए। वहां श्रीकृष्ण व श्रीनाथजी में एक रूपता समझकर उन्हीं में तन्मय हो एक माह तक वहीं आराधना की।
गोवर्धन में वास : वर्ष 1936 में पं. गया प्रसाद श्रावण के अधिमास में गोवर्धन की परिक्रमा के लिए गए तो फिर वहीं गिरिराज की सेवा में लीन हो गए। वैराग्य तो पहले ही धारण कर चुके थे। राधाकुंड के पास मिर्ची महाराज की बगीची में रहने लगे । गोवर्धन में दानघाटी के पास लक्ष्मी नारायण के मंदिर के एक कमरे में रहकर पंडित जी ने अपना जीवन गिरिराज की तलहटी में झाड़ू लगाने और अपने लाडले बालकृष्ण की लीलाओं में मग्न रहते हुए व्यतीत किया।
फैला यश
पं.गया प्रसाद की त्याग, तपस्या का यश सर्वत्र फैला। बगैर दंड व गेरुआ वस्त्र के संन्यासी, छापा तिलक के बगैर ही परम वैष्णव गया प्रसाद ब्रज वासियों के गिरिराज वारे बाबा हो गए। पंडित जी ने गिरिराज को न छोड़ने का संकल्प ले रखा था। वे ब्रज रज का चंदन लगाते थे।
महाप्रयाण : करीब 101 वर्ष की अवस्था में गुरु पूर्णिमा के दिन पं. गया प्रसाद अस्वस्थ हुए। इस दौरान उनके अनुयायियों ने इलाज के लिए बाहर ले जाने की कोशिश की मगर पंडित जी की गिरिराज को न छोड़ने की प्रतिज्ञा आड़े आ गई। कुछ दिन बाद ही भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी वर्ष 1994 को पंडित जी गिरिराज की तलहटी दानघाटी में अपने जीवन धन प्रियतम प्रभु की नित्य लीला में लीन हो गए। फिर गोशाला में ही उनकी समाधि बना दी गई। सुंदरकांड पाठ के साथ दो दिवसीय महोत्सव शुरू
जासं, हाथरस : ब्रजसंत पं.गया प्रसाद जी की जयंती पर गुरुवार से दो दिवसीय महोत्सव की शुरुआत श्रीकृष्ण गोशाला में हो गई है। गुरुवार को सुंदर कांड पाठ का आयोजन किया गया। शुक्रवार को अभिषेक व अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
गुरुवार की सुबह गिरिराज महाराज की पूजा अर्चना के साथ बाबा की समाधिस्थल पर वाद्य यंत्रों के साथ सुंदरकांड का पाठ किया गया। पं. श्याम शर्मा राशन वालों ने बताया कि शुक्रवार की सुबह साढ़े दस बजे से गिरिराज महाराज का वेदमंत्रों के साथ अभिषेक होगा। इसके बाद भगवान सत्य नारायण की कथा होगी। उन्होंने सभी भक्तों से समय से पधारने की अपील की है। इस मौके पर पं. रामजीलाल शर्मा, पं. श्याम गंगावासी, पं.अमित कुमार मिश्र, महावीर प्रसाद गौतम, पीसी वर्मा, पं. विशाल वल्लभ मिश्र, पं. प्रवीन मिश्र आदि मौजूद रहे। छप्पन भोग व महाआरती आज
जासं, हाथरस : बाबा की जयंती पर शुक्रवार को गोशाला व गोपालधाम में अलग-अलग कार्यक्रम होंगे। पं. भोला शंकर शर्मा ने बताया कि शुक्रवार को प्रात: काल प्रभातफेरी निकलेगी। जो गोशाला पहुंचकर गोपूजन के बाद गोपाल धाम पर विश्राम लेगी। यहां पर गोवर्धन से गिरिराज की शिला आएंगी। सुबह दस बजे से अभिषेक होगा। शाम को छप्पन भोग फूल बंगला के अलौकिक दर्शन, हरिनाम संकीर्तन होगा। रात को 11 बजे से महाआरती होगी। कार्यक्रमों में कोविड की गाइड लाइन का पूरा ध्यान रखा जाएगा।

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