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    दुर्योधन व कर्ण को मानते कुलदेवता

    By Edited By: Updated: Fri, 08 Jun 2012 01:13 AM (IST)

    जागरण प्रतिनिधि, त्यूणी: देश में धार्मिक मान्यताओं के अंदाज भी निराले हैं। स्वर्गा रोहिणी यानि बंदर पूंछ इलाके से सटे अढ़ौर पट्टी के लोग जहां दुर्योधन (सोमेश्वर) को व नजदीक स्थित सिंगतूर पट्टी के लोग कर्ण को कुल देव मानते हैं। इस क्षेत्र के चार दर्जन से अधिक ग्रामीण इलाकों के अधिकांश लोग किसी दूसरे देवता को नहीं मानते।

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    वेद पुराणों के अनुसार हमारे देश में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास है। देशभर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित मठ-मंदिरों में धार्मिक मान्यताएं भी अलग-अलग है। देवभूमि उत्तराखंड में भी कुछ ऐसा ही है। जौनसार-बावर क्षेत्र की दुर्गम तहसील त्यूणी और पड़ोसी राज्य हिमाचल-प्रदेश की सीमा से सटे जिला उत्तरकाशी के अढ़ौर और सिंगतूर पट्टी के लोगों की धार्मिक मान्यताएं भी जुदा है। द्वापरयुग का जिक्र होते ही द्रोपती चीरहरण का प्रसंग याद आता है। स्वर्गा रोहिणी जिसे बंदर पूंछ भी कहते हैं से सटे अढ़ौर, बडासू व पंजगांई पट्टी के लगभग तीन दर्जन गांवों में दुर्योधन(सोमेश्वर) की पूजा होती है। वहीं, इससे सटे सिंगतूर व गडूगाड़ पट्टी के दो दर्जन से अधिक गांवों में कर्ण की पूजा होती है। अढ़ौर पट्टी के लोग दुर्योधन और सिंगतूर पट्टी के लोग कर्ण को अपना कुल देवता मानते हैं। अढ़ौर पट्टी के बुजुर्गो को छोड़ नई पीढ़ी के लोग अब दुर्योधन को सोमेश्वर देवता कहते हैं। जागरुकता के चलते क्षेत्र के लोगों में ये बदलाव आया है। बुजुर्ग आज भी सोमेश्वर को दुर्योधन देवता कहते हैं, जबकि युवा वर्ग दुर्योधन को सोमेश्वर कहते हैं। स्थानीय निवासी सुरेशानंद, विक्रम सिंह, सैदर सिंह, पूरणचंद आदि लोगों का कहना है कि दुर्योधन देवता वरदानी है। वहीं, सिंगतूर पट्टी के लोगों का कहना है कि दानवीर कर्ण के मंदिर में आकर श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

    इन गांव में है मंदिर

    अढ़ौर, बडासू व पंजगांई पट्टी के सौड़, जखोल, कोटगांव व फिताड़ी समेत आधा दर्जन गांव में दुर्योधन (सोमेश्वर) के मंदिर हैं। वहीं, सिंगतूर पट्टी के देवरा गांव में कर्ण का मंदिर है। दुर्योधन के मंदिर में श्रावण-माघ माह में पांडव नृत्य आयोजित किया जाता है। 22 गते अषाढ़ माह में यहां जातरा मेला लगता है, जबकि देवरा गांव स्थित कर्ण के मंदिर में भांदौ में मेला लगता है।

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