तो क्या सरकार नहीं चाहती हरियाली
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तीन साल से बजट न देने के पीछे क्या है मंशा
मनरेगा से कराया जा रहा है पौधरोपण
फोटो-13सी.- आजमगढ़: जीजीआईसी के सामने टूटा ट्री गार्ड व सूखा पौधा।
14सी.- आजमगढ़: कभी यहां लगाये गये थे हजारों पौधे: जिला कारागार के पीछे कांशीराम आवास परिसर में आज नहीं नगर आता एक भी पौधा।
15सी.- आजमगढ़: हरबंशपुर वन विभाग के बाहर लगे पौधों का बुरा हाल।
आजमगढ़: क्या सरकार सचमुच प्रदेश को हरा-भरा बनाना चाहती है। यदि हां तो पिछले तीन साल से वन विभाग को बजट क्यों नहीं दिया गया। विभागीय सूत्रों की मानें तो इस बार भी पूरे प्रदेश को मात्र 9 करोड़ का बजट मिला है। सरकार मनरेगा के भरोसे प्रदेश को हरा-भरा बनाने का सपना देख रही है जबकि इस योजना का उद्देश्य ही काम लेना नहीं बल्कि काम देना है। परिणाम सामने है। मनरेगा के तहत पौधरोपण तो हो जा रहा है लेकिन पौधों के रख-रखाव के उचित इंतजाम न होने के कारण पौधे सूख जा रहे हैं। दिन-प्रतिदिन पेड़ों की कमी होती जा रही है। परिणाम लोग प्राकृतिक आपदा के रूप में भुगत रहे हैं।
जरा सोचिए, पर्यावरण संरक्षण आज के समय में सबसे गंभीर मुद्दा है। वातावरण असंतुलन का सबसे बड़ा कारण प्रदूषण है। प्रदूषण का प्रमुख कारण पेड़-पौधों की लगातार घट रही संख्या मानी जा रही है। सरकार भी वन क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए प्रयास करने का दावा कर रही है लेकिन जो सच है उससे साफ है कि सरकार की मंशा बिल्कुल भी ठीक नहीं है। पिछले तीन सत्र में सरकार की तरफ से वन विभाग को फूटी कौड़ी नहीं मिली है। विभाग के एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि हमें मनरेगा के तहत काम कराने का आदेश मिला है। इससे अच्छा खासा बजट भी मिल रहा है लेकिन यह योजना काम लेने नहीं काम देने की है। इसका साठ प्रतिशत धन हर हाल में मजदूरी पर खर्च होना है। शेष धन से ट्री-गार्ड बन जाता है अथवा पौधे लगा दिए जाते हैं लेकिन उनकी सिंचाई के लिए धन कहां से आए। सिंचाई नहीं होगी तो पौधे सूखेंगे ही। वर्तमान सत्र में अभी फूटी कौड़ी भी नहीं मिली है। अब नर्सरियों में तैयार पौधों की सिंचाई कैसे की जाय। सिंचाई नहीं होगी तो पौधे सूख जाएंगे। इसके बाद सरकार और अधिकारी यह नहीं मानेंगे कि बजट न मिलने से ऐसा हुआ। बल्कि विभाग पर ही तोहमत ठोंक देंगे और स्पष्टीकरण मागेंगे कि पौधे सूखे कैसे। वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक ऐसा विभाग है जिससे सरकार को कोई लाभ नहीं होता है। धन अपने पास से देना पड़ता है। इसलिए यह विभाग सरकार के एजेंडे से बाहर हो चुका है। सरकार की नीति है कि जान गंवा देंगे लेकिन जान बचाने के लिए कुछ नहीं करेंगे जबकि इन्हें इस बात का एहसास होना चाहिए कि मरने के बाद भी लकड़ी की जरूरत पड़ती हैऔर वह किसी पेड़ की हत्या करके ही प्राप्त की जाती है।
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