1973 में कैंपस में थी छह कारें
यशपाल शर्मा, चंडीगढ़: सत्तर के दशक में पंजाब विश्वविद्यालय के परिसर में मात्र छह कारें हुआ करती थीं। छात्रों के पास स्कूटर, साइकिल व मोटरसाइकिल बढ़ी मुश्किल से दिखते थे। सड़कें काफी चौड़ी थी और भीड़ का नामोनिशान नहीं था। हरियाली की भरमार थी। आधुनिक परिवेश व पैसे की चकाचौंध ने सबकुछ बदलकर रख दिया है। यह कहना है पंजाब विश्वविद्यालय के 1973 बैच के छात्र रहे व वर्तमान में पीयू के गांधियन पीस स्टडीज विभाग के चेयरमैन प्रो. एमएल शर्मा का। विश्वविद्यालय की दूसरी एलुमनी मीट के दौरान उन्होंने अतीत से जुड़ी यादें दैनिक जागरण के साथ सांझा की।
प्रो. एमएल शर्मा ने बताया कि उन दिनों (1973 में एमए लोक प्रशासन के छात्र) गुरु-शिष्य का रिश्ता बहुत प्रगाढ़ हुआ करता था। छात्र, शिक्षकों का दिल से सम्मान करते थे। दूर से देखकर ही छात्र पैर छूने के लिए दौड़े आते थे। अब वह प्यार व सहज भाव नहीं रह गया। शिक्षक आज के दौर में छात्रों को दिख भी जाए तो सम्मान करने के बजाए कन्नी काटते हैं। छात्र ही नहीं, शिक्षक भी इसके लिए दोषी हैं। पाश्चात्य सभ्यता ने पूरा परिपेक्ष्य बदल दिया है। शिष्य अब गुरुओं का दिल से सम्मान नहीं करते। पंजाब विश्वविद्यालय भी आधुनिकता की चकाचौंध में डूब चुका है। अब हर तीसरे छात्र व शिक्षक के पास अपना वाहन है। लंबी-लंबी गाड़ियों में छात्र पढ़ने आते हैं। पढ़ाई कम व मौज-मस्ती अधिक हो रही है। चुनिंदा छात्र ही लक्ष्य निर्धारित कर मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं।
भारत-पाक रिश्तों में हो सुधार
1942 में पंजाब विश्वविद्यालय (लाहौर में था कैंपस) में लॉ के छात्र रहे सरदार नरेंद्र सिंह की आंखें एलुमनी मीट के दौरान पुराने साथियों को ढूंढती रहीं, लेकिन कोई नहीं मिला। लाहौर में जन्मे नरेंद्र सिंह भारत-पाक रिश्तों में सुधार की वकालत करते हैं।
पुरानी यादें होती हैं ताजा
पंजाब कैडर की आइएएस व 1965 में पंजाब विश्वविद्यालय से बीए ऑनर्स अंग्रेजी की छात्र रहीं रूपेन देओल बजाज ने एलुमनी मीट के आयोजन को अद्भुत करार दिया। उन्होंने कहा कि पुराने साथियों से मिलकर बहुत खुशी हुई। पहली मीट को वह मिस कर गई थी, जिसका उन्हें ताउम्र अफसोस रहेगा। आइएएस बनने के बारे में सोचा नहीं था, साथियों को देख फार्म भर दिया और पास हो गई।
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