कहींका ईट, कहीं का रोड़ा
राजगांगपुर, जागरण संवाददाता:
सीमेंटनगरी राजगांगपुर में रेलवे स्टेशन का आधुनिकीकरण शहरवासियों के लिए किसी मजाक से कम नहीं है। आधुनिकीकरण का काम कई वर्षों से चलने के बाद भी यह संपूर्ण होने का नाम ही नहीं लेता। वहींजो भी थोड़ा-बहुत आधुनिकीकरण का काम पूरा हुआ है, उससे यहां के यात्रियों की सुविधा बढ़ने के बजाय उनकी तकलीफों में इजाफा ही हुआ। स्टेशन का फुट ओवरब्रिज का जीता-जागता उदाहरण है। जिसमें आधुनिकीकरण के नाम पर कहीं का ईंट और कहीं का रोड़ा जोड़कर ओवरब्रिज का जीर्णोद्धार तो कर दिया गया, लेकिन ओवरब्रिज की दशा ऐसी है कि यहां से गुजरने वाले यात्री यह बोलकर तौबा करते हैं कि इससे तो पुराना ब्रिज ही लाख गुना अच्छा था।
राजगांगपुर स्टेशन का आधुनिकीकरण करने का काम तकरीबन चार-पांच सालों पूर्व शुरू हुआ था। लेकिन इसकी कच्छप गति के साथ साथ बेतरतीब काम यहां के लोगों के लिए जी का जंजाल बनता जा रहा है। आधुनिकीकरण के नाम पर स्टेशन में फुट ओवरब्रिज का आधा हिस्सा हटाकर वहां नया हिस्सा लगाया गया है। जबकि आधे पुराने हिस्से को पुन: ठोंक-पीटकर नये हिस्से के साथ किसी प्रकार जोड़कर कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा वाली कहावत को चरितार्थ किया गया है। इस ब्रिज में ऊबड़खाबड़ तरीके से टाइल्स लगाने से यहां से जल्दी में जाना किसी भी यात्री के लिए खतरनाक हो सकता है। इसके समेत ब्रिज की सीढि़यां कहीं छोटी तो कहीं बड़ी बना दी है। इन समस्याओं का समाधान करने की मांग पर स्थानीय लोगों के आंदोलन के बाद डीआरएम समेत अन्य वरीय अधिकारियों ने वहां पहुंचकर भरोसा तो दिया, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। जिससे ऐसा लगता है कि रेलवे ने आधुनिकीकरण के नाम पर यहां के लोगों का मजाक बना रखा है।
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