नेपाल की तलहटी में गिद्धों का कलरव
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श्रावस्ती, प्रकृति के सफाई कर्मी कहे जाने वाले गिद्धों की संख्या वैसे तो पूरे देश में घट रही है। इस स्थिति से पर्यावरणविदों के साथ ही सरकार भी चिंतित है, लेकिन नेपाल के तलहटी इलाके में गिद्धों को सुरक्षित प्राकृतिक प्रवास मिलता दिख रहा है। इन दिनों सोहेलवा और ककरदरी जंगल क्षेत्र के इर्द-गिर्द बहुतायत संख्या में इनके झुंड देखे जा सकते हैं। पर्यावरणविद और वन अधिकारी गिद्धों की आमद को देखकर काफी उत्साहित हैं।
गौरतलब है कि लुप्तप्राय जंतुओं की प्रथम सूची में दर्ज गिद्ध आज देशभर में दुर्लभ हो चले हैं, ऐसे में गिद्धों की नेपाल सीमा पर वापसी से कुछ अच्छे संकेत उभर रहे हैं। ककरदरी जंगल क्षेत्र के मुलीमपुर, जगतापुर, मछरिहवा और पतिझिया समेत आधा दर्जन गांवों के आसपास गुरुवार से गिद्धों के झुंड दिखाई दे रहे हैं। सोहेलवा के रेंजर ओपी मिश्र बताते हैं कि विशुनापुर लोहटी, मोतीपुर कला, रनियापुर, बनकटी और मदारगढ़ सीमावर्ती गांवों के आसपास भी गिद्धों का बसेरा है। सोहेलवा वन रेंज में लगभग एक हजार से अधिक गिद्धों की संख्या होगी। गिद्धों के लुप्तप्राय होने के पीछे कोई इकलौती ठोस वजह नहीं है। माना जाता है कि पालतू पशुओं को बुखार और सूजन से छुटकारा दिलाने के लिए डाइक्लोफेनाक इस्तेमाल की जाती रही है। गिद्ध मांसाहारी होते हैं। जानवरों के शवों पर पलने वाले इन पक्षियों के खाद्य श्रृंखला में डाइक्लोफेनाक के अंश पहुंचने से गिद्धों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया। वे बताते हैं कि डाइक्लोफेनाक की वजह से गिद्ध जैसे बड़े पक्षियों के गुर्दे खराब हो जाते है। जिससे तकरीबन एक माह में इनकी मौत हो जाती है। भारत सरकार ने इस दवा पर प्रतिबंध लगा रखा है। उन्होंने बताया कि प्रतिबंध का ही असर है कि अब गिद्ध दिखने लगे हैं। प्रभारी प्रभागीय वनाधिकारी कर्ण सिंह गौतम वन क्षेत्र के आसपास गिद्धों की मौजूदगी यहां के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए शुभ लक्षण मानते हैं। राप्ती नदी व जंगल के आसपास क्षेत्रों में गिद्धों का बसेरा देखकर वे काफी उत्साहित हैं, होना भी चाहिए क्योंकि मौजूदा समय में पूरे देश में गिद्ध लुप्तप्राय होते जा रहे हैं। लगातार घट रही गिद्धों के तादाद के इस दौर में गिद्धों की वन क्षेत्र में उम्मीद की नई किरण दिखी है। उन्होंने बताया कि श्रावस्ती वन क्षेत्र में भी लगभग एक हजार गिद्धों की संख्या होगी। उन्हें संरक्षण देने के लिए पूरे प्रयास किए जा रहे हैं। पर्यावरण प्रेमी मैथलीशरण श्रीवास्तव मानते हैं कि गिद्धों के लुप्त होने के बाकी कारणों की भी पड़ताल जरूरी है, जाहिर है बढ़ते शहरीकरण, पेड़ों की कटाई और प्रदूषण भी गिद्धों पर भारी पड़ रहा है।
गिद्धों के लिए अनुकूल हैं तराई के जंगल
पक्षियों के चुनिंदा प्राकृतिक स्थलों में शुमार श्रावस्ती के जंगल आज भी कई लिहाज से गिद्धों के लिए अनुकूल हैं। सेमल और हल्दू के पेड़, राप्ती और पहाड़ी नालों के ताजा पानी के अलावा खाने के लिए जानवरों के पर्याप्त शव भी यहां पाए जाते हैं। जिन पर ये पक्षी पलते है। प्राकृति के इन सफाईकर्मी पक्षियों की अनुपस्थिति में मृत पशुओं के शवों को ठिकाने लगाना एक समस्या बन गई है।
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