'उतरन' के बाजार में बिकती है गरीबों की 'गर्मी'
सुमन लाल कर्ण, मेरठ ठंड किसी से भेदभाव नहीं करती। अमीर हो या गरीब, ठंड सबके हाड़ कंपाती है। यह अल ...और पढ़ें

सुमन लाल कर्ण, मेरठ
ठंड किसी से भेदभाव नहीं करती। अमीर हो या गरीब, ठंड सबके हाड़ कंपाती है। यह अलग बात है कि धन्ना सेठों के घर मखमली कंबल और हीटर की 'गर्मी' ठंड को पांव पसारने नहीं देती, लेकिन गरीबों की ठंड आज भी प्रेमचंद्र की कहानी 'पूस की रात' की तरह है। भले ही पूस की रात में खेत की रखवाली करते 'हल्खू' की तरह आज के गरीब ठंड से बचने के लिए कुत्ते से लिपटने को मजबूर नहीं हैं, लेकिन गरीबों का एक बड़ा तबका है जो अमेरिका या सऊदी अरब के रईसों की 'उतरन' के भरोसे ठंड काटता है। वे 'उतरन' के बाजार में 'गर्मी' खरीदते हैं।
गरीबों के लिए 'उतरन' का बाजार
महंगाई के इस जमाने में जहां गरीबों को दो जून की रोटी का बंदोबस्त करना मुश्किल है, सर्दी से परिवार परिवार के लोगों को बचाने के लिए गर्म कपड़े का इंतजाम कहां से करें। दिलचस्प है कि गरीबों की इस समस्या ने नए तरह के बाजार को जन्म दिया है। विदेशी अमीरों द्वारा परित्यक्त गर्म कपड़े या 'उतरन' ने 'बाजार' का रूप ले लिया है। एक बड़ा तबका है जो इसे खरीदता है और इसी के भरोसे सर्दी काटता है। मेरठ में बन रही बहुमंजिला इमारतें, छोटी-बड़ी फैक्ट्री, लोहे का सामान व खेल सामग्री के कारखाने आदि में काम करने वाले मजदूर इसे खरीदते हैं। मध्यम वर्ग भी इसमें अच्छी-खासी दिलचस्पी दिखा रहा है। परिचितों से नजरें बचाते हुए उतरन के बाजार में उन्हें भी ब्रांडेड गर्म कपड़े छांटते देखा जा सकता है। बाद में कौन पूछता है कि उतरन है या शो-रूम से खरीदी है।
क्रांसवेज से माइक्राफींस तक के परिधान
उतरन के बाजार में फ्रांस, सिंगापुर, अमेरिका, जापान, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया आदि देशों के मशहूर इंटरनेशनल ब्रांड के कपड़े मिलते हैं। मसलन क्रांसवेज, हांस साफ्टवीयर, जरसीज, चार्टर क्लब, मोंट बेल, माइक्रोफीन, एक्वा ब्लू, सेंट जांस आदि ब्रांड के हाफ जैकेट, जैकेट, लोअर, स्वेटर, कार्डिगन आदि मिलते हैं। बच्चे, युवा, महिलाएं व बुजुर्ग, हरेक की पसंद और फैशन के गर्म कपड़े मिलते हैं। इसका दाम बेहद मामूली है। इसकी रेंज 100 रुपये शुरू होती है और 400-500 रुपये तक में बेहद फैशनेबल और गर्म कपड़े मिल जाते हैं। बेगमपुल से सटे जवाहर मार्केट में इसकी कई दुकानें हैं। वहीं ठेलों पर चलती-फिरती दुकानें दर्जनों की तादाद में हैं। दुकानदार शफीक बताते हैं कि माल विदेश से आता है। वह दिल्ली और पानीपत से वह माल लाते हैं। दुकानदार मनोहर ने बताया कि गरीब ही नहीं अच्छे परिवार के लोग भी उतरन खरीदते हैं। अंतर यह है कि गरीब मजबूरी में इसे खरीदते हैं, जबकि खाये-पीए लोग 'ब्रांड' के लिए।

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