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    करोड़ों खर्च पर हरियाली नहीं

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    Updated: Sat, 06 Sep 2014 07:55 PM (IST)

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    योगेंद्र सिंह भदौरिया, गुड़गांव : अरावली पहाड़ी को हरियाली की चादर से ढंकने के लिए लाखों-करोड़ो रुपयों की राशि खर्च किए जाने के बावजूद सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आ रहे है। हालात यह है कि गांव घाटा की पहाड़ी को हरा-भरा बनाने के लिए निगम के खजाने से हर माह लगभग सवा करोड़ रुपयों की राशि खर्च की जा रही है, जिसमें केवल पेड़-पौधों को पानी व मजदूरों को

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    भोजन दिया जा रहा है। करोड़ो की राशि खर्च करने के बाद हरियाली नहीं छाने व बिना टेंडर दो एजेंसियों को इस काम की जिम्मेदारी सौंपी जाने से निगम व निगम के अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं। योजना पर करोड़ो की राशि खर्चने के बाद योजना सिरे नहीं चढ़ पाने से जहां एक ओर निगम का खजाना लगातार खाली हो रहा है, वहीं दूसरी ओर दो कंपनियों की चांदी हो रही है।

    जल संरक्षण एवं पौधरोपण की योजना अच्छी है लेकिन पहाड़ी पर पौधे लगाकर उन्हें बढ़ा करना उतना ही मुश्किल काम है जितना कि रेगिस्तान में पानी निकालना। तत्कालीन निगमायुक्त डा. प्रवीण कुमार ने फरीदाबाद रोड स्थित घाटा गांव में बरसाती पानी को रोकने व संरक्षण करने के लिए छोटे-छोटे गड्ढे बनवाने के साथ ही पौधों को लगाने व पानी देने का काम शुरू करवाया था। इसके साथ ही योजना पर काम रहे लगभग 2 हजार मजदूरों को निगम के खजाने से खाना व चाय देने का इंतजाम किया गया था। योजना का पूरा काम केवल 2 एजेंसियों को सौंपा गया था, जिसके लिए ना ही किसी प्रकार की टेंडर सूचना जारी की गई और ना ही निगम की बैठक में इसका जिक्र किया गया। बिना किसी प्रस्ताव के योजना को शुरू करना और उस पर इतनी बड़ी धनराशि का खर्च किए जाने से निगम के अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहा है। आश्चर्य की बात है कि पूर्व निगमायुक्त पीसी मीणा ने शहर में सफाई का काम कर रही परफेक्ट एजेंसी को काम में लापरवाही बरतने के कारण उससे काम छीनने के साथ ही ब्लैक लिस्ट भी कर दिया गया था। बाद में इसी कंपनी के संचालक ने किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर काम करने वाली एजेंसी के माध्यम से घाटा गांव में काम ले लिया। वहीं एक अन्य एजेंसी को मेयर टीम के एक सदस्य की सिफारिश पर काम दे दिया गया। मात्र कोटेशन के आधार पर इन दो एजेंसियों को हर माह लगभग सवा करोड़ रुपयों का काम दिया गया। एजेंसी किस प्रकार काम कर रही उसकी मानिटरिंग के नाम पर महज खानापूर्ति की जा रही है। निगम के अन्य अधिकारी भी मामले में चुप्पी बनाकर चुपचाप बिल पास कर रहे हैं।

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    तीन अधिकारी कर रहे बिल पास

    घाटा गांव की पहाड़ी को हरा-भरा बनाने के लिए हर माह लगभग सवा करोड़ रुपयों के बिल पास किए जा रहे हैं। ताज्जुब की बात तो यह है कि इन बिलों को पास करने का अधिकार जेई, एसडीओ व कार्यकारी अभियंता के पास होता है, लेकिन यहां के अधिकारियों के पास ना ही योजना के बिल पहुंच पाते हैं और ना ही फाइल।

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    पारदर्शी तरीके से काम क्यों नहीं

    इस योजना के पीछे निगम की मंशा क्या थी यह तो किसी को नहीं पता,

    लेकिन जल संरक्षण व पौधरोपण की योजना अच्छी है। इसके लिए यदि निगम टेंडर काल करता तो आज उस पर सवाल नहीं उठते। पारदर्शी तरीके से काम करने के लिए टेंडर के साथ ही निगम सदन में भी इस योजना को रखना चाहिए था ताकि पूरे शहर को इसकी जानकारी मिलती।

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    कारपोरेट आफिस से अधिक रेट

    कारपोरेट आफिसों में स्टाफ के सदस्यों को खाने के लिए प्रति व्यक्ति के अनुसार लगभग 35 से 50 रुपये दिए जाते हैं। दूसरी ओर घाटा गांव की पहाड़ी में काम करने वाले मजदूरों को कारपोरेट आफिस से भी कहीं ज्यादा 70 रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से खाने के लिए दिए जा रहे हैं।

    इससे साफ पता चलता है कि किस प्रकार अधिकारी अपने चहेतों को फायदा पहुंचाते हुए निगम का खजाना खाली कर रहे हैं।

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    सवाल यह भी उठ रहे हैं

    सिटीजन काउंसिल के प्रधान आरएस राठी का कहना है कि निगमायुक्त के अधिकार के अनुसार पचास लाख रुपये व निगम सदन को एक करोड़ रुपये तक के काम करवाने का अधिकार है। किस अधिकार से अधिकारियों ने एक करोड़ रुपये से ज्यादा राशि के काम अपने हिसाब से पास कर दिए। इसके लिए आडिट व एकाउंट ब्रांच के अधिकारी भी दोषी हैं। इस पूरे मामले की जांच के लिए वह विजिलेंस से लेकर चंडीगढ़ पत्र लिखेंगे। ताकि जनता के पैसे की बर्बादी करने वालों का खेल सबके सामने आए। साथ ही काली सूची में डाली गई एजेंसी के संचालक किस हक से दूसरी एजेंसी के नाम से काम करा रहे इसकी भी जांच होनी चाहिए।

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    अब नहीं चलेगा यह खेल

    ''यह पूरी तरह फिजूलखर्ची है और अब यह खेल आगे नहीं चलेगा। वहां करीब एक सौ से डेढ सौ मजदूर लगाए जाएंगे, ताकि जो काम किया गया है उसका रखरखाव किया जा सके। इसके साथ ही आगे सभी काम पूरे पारदर्शी तरीके से किए जाएंगे।''

    - विकास यादव, निगमायुक्त, गुड़गांव।