अब नहीं हो पाती आलू की व्यावसायिक खेती
घोसी (मऊ) : जनपद में इन दिनों आलू की फसल खोदी जा रही है। बावजूद इसके आलू की कीमत में कमी नहीं हो रही। कारण यह कि किसान बस स्वयं के चंद माह के ही उपभोग के लिए आलू की बोआई करने लगा है। जबकि कभी सब्जियों के राजा यानी आलू की व्यावसायिक खेती हर किसान करता था।
बीते डेढ़ दशक से खेत वही, किसान वही पर व्यवस्था बदल गयी है। जनपद में एक साथ पीसीएफ के दो एवं डीसीएफ का एक कोल्ड स्टोरेज बंद होने से कैश क्राप आलू की पैदावार सिमट गई है। मधुबन एवं कोपागंज ब्लाक सहित स्थानीय क्षेत्र के कुछ हिस्सों में सब्जियों की बेहद उम्दा खेती की जाती है पर इनके भी भंडारण की न तो व्यवस्था है ना इसकी नयी तकनीक से किसान वाकिफ है। जनपद में सेमरीजमालपुर में चार हजार एमटी एवं टड़ियांव में 3800 एमटी की भंडारण क्षमता के कोल्ड स्टोरेज पीसीएफ ने स्थापित किया। उधर दोहरीघाट में डीसीएफ ने भी एक कोल्ड स्टोरेज खोला। घर के नजदीक ही भंडारण की व्यवस्था का कमाल यह कि जनपद आलू की खेती में अग्रणी हो गया। शीतगृह में भंडारण हेतु किसान लाइन लगाते थे। वर्ष 97-98 में ऐसी नौबत आई कि प्रबंधन की खामी एक साथ तीनों शीतगृहों में किसानों के आलू सड़ गए। किसानों को मुआवजा पाने हेतु चक्काजाम तक करना पड़ा पर बात न बनी। उधर विभिन्न कारणों से शीतगृह भी बंद हो गए। अब हाल यह कि शीतगृह किसान सेवा केंद्र में तब्दील हो गए हैं। यहां से किसानों को खाद एवं बीज बेचा जाता है तो धान व गेहूं की खरीद की जाती है।
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किराया से अधिक बिजली बिल
घोसी (मऊ) : बिजली बिल पर शासन द्वारा अनुदान प्राप्त करने की मंशा कभी पूरी न हुई। पीसीएफ ने गुणा गणित किया तो भंडारण के रूप में प्रति कुंतल 70 रुपया का किराया बिजली के बिल से कम था। जनरेटर हेतु डीजल की व्यवस्था भी जैसे-तैसे होती थी। उधर 97-98 में किसानों को मुआवजा देने में लाखों की धनराशि की व्यवस्था भी न हो सकी। ऐसे में पीसीएफ ने शीतगृह संचालन से तौबा कर लिया। जनरेटर हेतु डीजल की व्यवस्था भी जैसे-तैसे होती थी।
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कमर टूटी तो अब तक हिम्मत न जुटी
घोसी (मऊ) : वर्ष 97-98 में किसानों का आलू सड़ा तो क्षतिपूर्ति से पीसीएफ ने हाथ खड़ा कर लिया। किसानों को वास्तविक देय राशि का आंकड़ा भी अब विभाग भूल गया है या फिर आंकड़े धूल चाटती फाइलों में कैद है। सूत्रों की मानें तो सेमरी जमालपुर को 18 लाख से अधिक एवं टड़ियांव को 2.5 लाख तक एवं दोहरीघाट शीतगृह को लगभग 4 लाख की राशि का भुगतान करना था। अब तक न उक्त राशि मिली ना किसान दोबारा आलू की व्यावसायिक खेती की हिम्मत ही न जुटी।
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