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    यूपी में तो 'फेल' हो चुके हैं मौलाना बुखारी

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    Updated: Mon, 30 Jan 2012 06:28 PM (IST)

    राजनीति में दखलअंदाजी बुखारी परिवार की पुरानी रवायत रही है लेकिन जहां तक वोटरों का भरोसा जीत पाने की बात है, उत्तार प्रदेश में के 2007 विधानसभा चुनाव ...और पढ़ें

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    लखनऊ [जाब्यू]। राजनीति में दखलअंदाजी बुखारी परिवार की पुरानी रवायत रही है लेकिन जहां तक वोटरों का भरोसा जीत पाने की बात है, उत्तर प्रदेश में के 2007 विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि दिल्ली के शाही मस्जिद के पेश इमाम मौलाना अहमद बुखारी जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग दलों को समर्थन देने वाले दिल्ली के शाही इमाम ने 2007 में जब अपनी पार्टी बनाकर विधानसभा चुनाव में ताकत की अजमाइश करनी चाही तो उन्हें मुंह की खानी पड़ी। उनके 54 उम्मीदवारों में से 51 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी। सिर्फ एक उम्मीदवार को जीत मिली थी, वह थे हाजी याकूब कुरैशी, जिनकी जीत में पार्टी से ज्यादा खुद का योगदान था।

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    आक्रामक तेवर और मुलायम विरोधी चेहरा : मौलाना बुखारी अपने आक्रामक बयानों के लिए जाने जाते रहे रहे हैं। बुखारी परिवार के साथ मुलायम सिंह की कभी नहीं पटी। वजह थी कि मुलायम सिंह ने इस परिवार को कोई अहमियत नहीं दी क्योंकि मुस्लिम वोटों के लिए उन्हें किसी मुस्लिम धार्मिक नेता की जरूरत ही नहीं महसूस हुई। मौलाना अहमद बुखारी को उत्तर प्रदेश की राजनीति में जब अपने को स्थापित करने की धुन सवार हुई तो उनके निशाने पर मुलायम सिंह यादव ही रहे। यह उनकी सियासी मजबूरी भी थी क्योंकि मुसलमानों के बीच मुलायम सिंह की गहरी पैठ मानी जाती है। मुसलमानों को मुलायम से दूर कर अपने पाले में लाने के लिए तमाम मौकों पर मौलाना बुखारी को सपा प्रमुख को आरएसएस का एजेंट बताने से भी गुरेज नहीं होता था। मुलायम सिंह की पिछली सरकार में जब इलाहाबाद के मदरसे में मुस्लिम लड़कियों के साथ बलात्कार हुआ था तो मौलाना बुखारी ने उस घटना को लेकर सपा सरकार की जमकर घेराबंदी की थी। आतंकवाद के नाम पर उप्र के जेलों में बंद मुसलमानों को लेकर भी मौलाना बुखारी ने तत्कालीन मुलायम सरकार को कठघरे में खड़ा किया था।

    मौलाना बुखारी को जब यह यकीन हो चला कि मुसलमानों के बीच उनकी स्वीकार्यता हो गई है तो पश्चिमी उप्र के मौलाना हाजी याकूब कुरैशी के साथ मिलकर उन्होंने उप्र यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नाम से एक राजनीतिक दल की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष हाजी याकूब कुरैशी के भाई हाजी यूसुफ कुरैशी थे। मौलाना बुखारी फ्रंट के संरक्षक बने। मुस्लिम बहुल सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए। मौलाना अहमद बुखारी को लग रहा था कि उनके नाम पर मुसलमानों को एकतरफा वोट यूनाईटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट को मिलेगा लेकिन यह ख्वाब ही साबित हुआ। फ्रंट पिट गया। मौलाना बुखारी व हाजी याकूब कुरैशी के रास्ते भी जुदा हो गए। मौलाना बुखारी ने इस फ्रंट से नाता भी खत्म कर लिया। मौलाना बुखारी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में भी मुलायम सिंह यादव का विरोध किया।

    दामाद की राजनीति में स्थापित होने की चाहत : मौलाना बुखारी के दामाद मोहम्मद उमर खां सहारनपुर जिले के निवासी हैं लेकिन कारोबार दिल्ली में ही हैं। पैसे वाले हैं, इसलिए राजनीति में स्थापित होना चाहते हैं। सपा उनकी पहली पसंद थी। उन्होंने श्वसुर के जरिये सपा से टिकट के लिए जुगत किया तो मुस्लिम वोटरों के बिखरने की आशंका से परेशान चल रहे मुलायम सिंह को भी मौलाना बुखारी का साथ लेने से कोई गुरेज नहीं हुआ।

    अपनों को करना पड़ा किनारे : मौलाना के दामाद को सहारनपुर की बेहट सीट से टिकट देने पर सपा के अंदर खासा बवाल हुआ। मुलायम सिंह यादव को काजी रशीद मसूद जैसे कद्दावर नेता को गंवाना पड़ा लेकिन मुलायम सिंह यादव इस बात पर अड़े रहे कि उन्होंने बुखारी से उनके दामाद को टिकट देने की हामी भर दी है तो अब उससे बदल नहीं सकते।

    बहरहाल एक-दूसरे को कतई पसंद न करने वाले चेहरे एक साथ खड़े हैं तो उत्सुकता का विषय तो है ही इस पूरे घटनाक्रम से एक-दूसरे को कितना नफा नुकसान होगा।

    मैं तो समर्थन मांगने निकला हूं : मुलायम

    लखनऊ। मौलाना बुखारी का समर्थन लेने के नाम पर मुलायम सिंह यादव ने रविवार को चुनावी सभाओं में सफाई दी। मुलायम की रविवार को बहराइच, श्रावस्ती और सिद्धार्थनगर में चुनावी सभाएं थीं। मुलायम सिंह ने कहा कि चुनाव के मौके पर वह तो हर एक का समर्थन लेने के लिए निकले हैं। जो भी उन्हें समर्थन दे रहा है, उसका स्वागत है। मौलाना बुखारी तो बड़ा नाम हैं। मौलाना बुखारी के मुददे पर आजम खां की नाराजगी की चर्चा को भी उन्होंने खारिज किया। कहा वह और आजम साथ-साथ हैं।

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