National Consumer Commission Order: बचपन में HIV संक्रमित हुए युवक को 24 साल की आयु में मिलेगा मुआवजा, जानें क्या है मामला
जन्म के तीन दिन बाद हार्निया के आपरेशन के दौरान चढ़ाए गए खून से एचआइवी संक्रमित हुए बच्चे में संक्रमण का पता सात साल की आयु में लगा और अब 24 साल की आयु में उसे मुआवजा मिलेगा।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। जन्म के तीन दिन बाद हार्निया के आपरेशन के दौरान चढ़ाए गए खून से एचआइवी संक्रमित हुए बच्चे में संक्रमण का पता सात साल की आयु में लगा और अब 24 साल की आयु में उसे मुआवजा मिलेगा। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने इलाज में लापरवाही पर दिल्ली के कलावती सरन चिल्ड्रेन अस्पताल और डाक्टर अजय कुमार को 10 लाख रुपये एचआइवी संक्रमित पीडि़त युवक को मुआवजा देने के राज्य उपभोक्ता आदेश पर अपनी मुहर लगाई है। मुआवजे का भुगतान छह सप्ताह के भीतर करना होगा नहीं तो नौ फीसद की दर से ब्याज देना होगा।
राष्ट्रीय आयोग ने फैसले में कहा है कि इस समय बच्चा करीब 24 वर्ष का है। निश्चित तौर पर वह अनकहे कष्ट झेल चुका है और भविष्य में भी वह एचआइवी संबंधित दंश और भेदभाव झेलता रहेगा। मुआवजे को पैसे के आधार पर नहीं मापा जा सकता। हमारा मानना है कि उसे प्राथमिकता के आधार पर पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं (नियमित एआरटी इलाज) और एचआइवी संक्रमितों के लिए चल रही विभिन्न कल्याणकारी सरकारी योजनाओं के लाभ मिलना चाहिए।
ये आदेश राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के अध्यक्ष जस्टिस आरके अग्रवाल और सदस्य डाक्टर एसएम कांतिकर की पीठ ने पिछले सप्ताह दिया। केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, अस्पताल और डाक्टर की ओर से दाखिल अपील खारिज करते हुए इलाज में लापरवाही पर मुआवजा देने के राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को सही ठहराया है। इस मामले में जन्म के तीन दिन बाद ही डायफ्रेग्मेटिक हार्निया को ठीक करने के लिए बच्चे का 13 जून 1998 को डाक्टर अजय कुमार ने कलावती सरन चिल्ड्रेन अस्पताल में आपरेशन किया।
आपरेशन के दौरान बच्चे को दो बार 13 जून और 16 जून 1998 को 50 एमएल और सौ एमएल खून चढ़ाया गया। खून सुचेता कृपलानी अस्पताल के ब्लड बैंक से लाया गया था। 23 जून को बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। इसके बाद बच्चे को लगातार कुछ न कुछ दिक्कतें चलती रहीं और अस्पताल आना जाना लगा रहा। शुभ चिंतकों की सलाह पर बच्चे के माता-पिता ने सफदरजंग अस्पताल में बच्चे का एचआइवी टेस्ट कराया और नौ जनवरी 2006 को उसके एचआइवी पाजिटिव - एड्स होने की रिपोर्ट आयी। वह तब से एम्स और सफदरजंग के निरीक्षण में है। इलाज में लापरवाही का आरोप लगाते हुए बच्चे की ओर से मां ने दिल्ली के राज्य उपभोक्ता आयोग में शिकायत दाखिल कर 22 लाख रुपये मुआवजा 18 फीसद ब्याज सहित दिलाने की मांग की।
राज्य आयोग ने 11 सितंबर 2012 को दिये आदेश में कालावती सरन अस्पताल और डाक्टर अजय कुमार को जिम्मेदार मानते हुए 10 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। अस्पताल और डाक्टर का कहना था कि चढ़ाए गए खून से बच्चे को एचआइवी संक्रमण नहीं हुआ है इस बीच और जगह से भी बच्चे का इलाज हुआ है हो सकता है कि संक्रमण कहीं और से हुआ हो।
राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि अपीलकर्ता ब्लड बैंक का रजिस्टर और खून के एचआइवी निगेटिव होने की टेस्ट रिपोर्ट पेश करने में नाकाम रहे जिसमें साबित होता कि खून एचआइवी निगेटिव था। हालांकि आयोग ने यह भी कहा कि कहीं और से एचआइवी संक्रमण होने की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता, इसलिए निश्चित निष्कर्ष के साथ यह यह कहना मुश्किल होगा कि बच्चे को खून चढ़ाने से संक्रमण हुआ।
आयोग ने कहा कि घटना के दो दशक से ज्यादा बीत चुके हैं, अब किन्तु परन्तु की चर्चा से एचआइवी संक्रमित के साथ अन्याय होगा। राष्ट्रीय आयोग ने कहा कि अभी भी दुनिया भर में एचआइवी एक दंश है। संक्रमित लोगों के साथ अलग तरह का बर्ताव होता है। इसमें संदेह नहीं कि बच्चे को एचआइवी संक्रमण हुआ और उसे जीवन भर उसके साथ रहना होगा इसलिए मामले की विशिष्ट तथ्यों और बीमारी की प्रकृति पर विचार करते हुए न्याय के हित में हम राज्य आयोग के मुआवजा देने के फैसले को सही ठहराते हैं। बातचीत में पीडि़त युवक की मां कहा कि मेरे बच्चे को संक्रमण अस्पताल में आपरेशन के दौरान चढ़ाए गये खून से हुआ है क्योंकि मेरे परिवार में किसी और को यह संक्रमण नहीं है मेरे तीन और बच्चे हैं न तो उन्हें संक्रमण है और न ही हम दोनों पति पत्नी को।
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